कानपुर, [महेश शर्मा]। प्रयागराज छोड़कर कुख्यात अपराधी अतीक अहमद ने कानपुर में राजनीतिक रूप से जमीनी मजबूती के लिए धमाकेदार एंट्री मारी थी। 2017 में उसे समाजवादी पार्टी से टिकट भी मिल गया था। पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के कारण उसे बैरंग प्रयागराज लौटना पड़ा। उसका पत्ता काटकर हसनरूमी को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था। छावनी से टिकट के चलते अतीक सुर्खियों में आ गया था।
सैकड़ों गाड़ियों के बीच काफिला गुजरने से दूर तक जाम लग गया था। (फाइल फोटो)
पूरे 320 गाड़ियों का काफिला लेकर उसने जाजमऊ से एंट्री मारी। वर्तामान सपा विधायक हसन रूमी और अमिताभ वाजयेपी को छोड़कर बाकी सभी सपा के स्थानीय नेता उसके स्वागत में जाजमऊ पहुंचे थे। प्रयागराज से वह 168 गाड़ियों का काफिला लेकर चला था पर कानपुर आते-आते यह संख्या 320 पहुंच गयी। वह कानपुर संसदीय क्षेत्र से भी सपा की टिकट पर चुनाव लड़ना चाहता था।
अतीक ने बुलाया था, मैं नहीं गया-रूमी
छावनी विस क्षेत्र से सपा विधायक हसन रूमी बताते हैं कि 2017 के चुनाव में उनका टिकट होने वाला था कि ऐन मौके पर अतीक को छावनी से लड़ाने का फैसला ले लिया गया। मैने (रूमी) लखनऊ में डेरा डाल दिया। उधर अतीक ने महंगी कारों के काफिले के साथ कानपुर में जोरदार एंट्री ली। अमिताभ और मुझे छोड़कर पार्टी के स्थानीय लोग स्वागत को गए। अतीक ने मुझे फोन किया। मैने साफ कह दिया कि लखनऊ में हूं। नेताजी का आदेश होगा तो तुरंत आ जाऊंगा। बाद में उसका टिकट काटकर अध्यक्ष जी ने मेरा टिकट किया था। सपा-कांग्रेस के समझौते में सीट कांग्रेस को मिल गयी थी। रूमी कहते हैं कि अतीक के काफिले 250 से 300 के बीच कारें थीं।
भाजपा का गढ़ फतह करने को अतीक को भेजा गया था
छावनी विधानसभा क्षेत्र भाजपा का गढ़ हुआ करता था। परिसीमन से पहले सतीश महाना यहां से भाजपा की टिकट पर जीतते रहे। बाद में परिसीमन में महाना महराजगंज क्षेत्र से लड़ने चले गए।इस गढ़ को फतह करने के लिए समाजवादी पार्टी ने अतीक अहमद पर दांव खेला था। उसने लाल बंगला में चुनाव दफ्तर खोल और एक मकान भी खरीदा था। हालांकि बाद में उसे वापस प्रयागराज भेज दिया गया था। उसके मुकाबले भाजपा ने ठाकुर रघुनंदन भदौरिया को उतारा था।
मरहूम मुश्ताक सोलंकी के जनाजे में आया था
अतीक अहमद सपा विधायक इरफान सोलंकी के मरहूम पिता विधायक रहे हाजी मुश्ताक सोलंकी के जनाजे में शामिल होने के लिए कानपुर आया था। फोटो जर्नलिस्टों के कैमरे की आंख से नहीं बच पाया। सोलंकी परिवार से उसके करीबी रिश्ते जगजाहिर थे। हाजी की लोकप्रियता और श्रीप्रकाश जायसवाल के मुकाबले चुनाव लड़कर डेढ़ लाख से ज्यादा वोट पाने को देख अतीक की कानपुर लोकसभा सीट पर काबिज होने को लार टपकने लगी थी। वह चाहता था लोकसभा चुनाव यहीं से लड़े पर नेताजी (स्व.मुलायम सिंह यादव) ने यह अवसर नहीं दिया।
अतीक समेत गुर्गों को शरण मिलती थी
एसटीएफ कानपुर में अतीक अहमद के कनेक्शन का पता लगाने में जुटी है। कानपुर से राजनीति के मंसूबों के कारण अतीक यहां संबंध बनाने शुरू कर दिए थे। मुस्लिम क्षेत्रों में उसके नेटवर्क का पता लगाया जा रहा है। पुलिस सूत्र बताते हैं कि 2014 से लेकर 2019 तक अतीक और उसके गुर्गों का कानपुर आना-जाना रहा था। तब कानपुर को इंटर-स्टेट गिरोहों का गढ़ माना जाता था। 273 गिरोहों का आना-जाना था। इन गिरोहों के आपसी संबंध थे। इनके कनेक्शन इस्लामिक स्टेट से भी बताए जाते हैं। ये सब अतीक की दम पर फूलते थे। वही नियंत्रित करता था। अब ये गिरोह लगभग समाप्त हैं।
करौली बाबा का दावा, अतीक के शूटरों पकड़वा सकता हूं बशर्ते…
करौली सरकार से अपनी पहचान बनाने वाले संतोष सिंह भदौरिया उर्फ करौली बाबा का दावा है कि वह धार्मिक अनुष्ठान के माध्यम से अतीक के शूटरों को पकड़वा सकते हैं। उनका कहना है कि पुलिस चाहे तो उनकी मदद ले सकती है। करौली बाबा का एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें वह एक चैनल वाले से अतीक से बातचीत करते हुए दिख रहे हैं। वह कहते हैं कि पुलिस उनसे पूछे तो सही। करौली बाबा कहते हैं कि दुनिया में किसे नहीं ढ़ूंढ़ा जा सकता है। वह कहते हैं कि ओम शिव बैलेंस में बहुत शक्ति है। बैलेस पर पूछने पर बाबा कहते हैं कि वह ओम अतीक तो नहीं कहते हैं न। शिव में बहुत शक्ति है।
शिवपाल मेहरबान तो अतीक पहलवान
2017 के विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के विरोध के बाद भी चाचा शिवपाल ने अतीक का टिकट कानपुर छावनी क्षेत्र से करवा दिया था। मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल की बात को तवज्जो दी पर अखिलेश के विरोध के कारण टिकट काटकर हसन रूमी को दिया गया। बाद में कांग्रेस से समझौते में यह सीट कांग्रेस को चली गयी। रूमी नामांकन वापस नहीं ले पाए थे। अतीक बैकफुट पर चले गए। अतीक के आपराधिक इतिहास की वजह से नेताजी ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था।