'रामपुर रियासत के नवाबों की पसंद थे ढाई सौ तरह के पकवान'
कराची में प्रकाशित ‘रामपुर का शाही दस्तरख्वान’ किताब में दर्ज हैं रामपुरी पकवानों के नाम और उनकी रेसिपी, वर्ष 1948 में उर्दू भाषा में प्रकाशित पुस्तक का हिन्दी में कराया जाएगा अनुमवाद

रामपुर, अमृत विचार। रामपुर रियासत के नवाब स्वादिष्ट व्यंजनों के शौकीन थे। उनकी रसोई में सबसे बेहतरीन शेफ हुआ करते थे। पकवानों की रेसिपी लिखित में नहीं होती थी, बल्कि बाप अपने बेटे और फिर वो अपने बेटे को बताते थे, ताकि उनके हाथों के पकवानों का स्वाद का राज किसी और के हाथ नहीं लगे। यही वजह थी कि शाही बावर्चीखाने की कमान खानसामा इनायत अली खां के बाद उनके बेटे शफीक उर्रहमान खां, फिर उनके बेटे हाजी मोहम्मद रशीद खां, इनके बाद इनके भाई हनीफ और बेटे लताफत अली खां के पास रही। अलबत्ता, वर्ष 1948 में पाकिस्तान के कराची शहर में रामपुर का शाही दस्तरखान नाम से उर्दू भाषा में पुस्तक प्रकाशित हुई थी जिसका अब हिन्दी भाषा में अनुवाद प्रकाशित कराय जाएगा।
नवाब खानदान के करीबी काशिफ खां ने बताया कि रामपुर के शाही दस्तरख्वान के व्यंजन दुनिया भर में मशहूर हैं। लोग इन खानों के स्वाद की खोज के लिए लाइब्रेरी में किताबें तलाश करते हैं लेकिन, रामपुर के शाही घराने में बनने वाले ढाई सौ तरह के पकवानों के नाम और रेसिपी पर पुस्तक 1948 में कराची में छापी गई थी जो बहुत अहम है। उन्होंने बताया कि गालिब एकेडमी दिल्ली के सहयोग से कराची के अस्मत बुक डिपो ने रामपुर के पकवानों पर एक पुस्तक छापी है, जिसका नाम रामपुर का शाही दस्तरख्वान है। किताब में रकाबदार लताफत अली खां रामपुरी ने 32 तरीकों के कबाब, 65 तरह की सब्जियों, 8 प्रकार की दालों, 5 तरह से मछली के कबाब बनाने, 26 तरह के हलवों, 27 तरह से पुलाव जर्दे, 66 प्रकार की मिठाइयों और 13 प्रकार से रोटी बनाने बनाने की रेसिपी बताई है।
किताब में रामपुर के शाही पकवानों का विवरण
रकाबदार लताफत अली खां रामपुरी ने जिन खानों के पकाने का विवरण पेश किया है उनमें मुर्ग मुसल्लम, पसंदा कबाब, मिस्री कबाब, सुलतानी दाल, गुलत्थि गुलज़ार, शाही बर्फी, नर्गिसी कोफ्ता पुलाव, बकरे का दमपुख्त, रान देग रामपुरी, कुंदन कोरमा और मुर्ग दूधिया कोरमा शामिल है।
1948 में कराची में प्रकाशित पुस्तक रामपुर का शाही दस्तरख्वान काफी अहम दस्तावेज है। यह फिलहाल उर्दू में है, जिसको हिंदी में प्रकाशित कराने का प्रयास करेंगे ताकि, नवाबों का जायका आम लोगों तक पहुंच सके। दुनियाभर में रामपुर के पकवानों के चर्चे हैं। लेकिन जानकारी के अभाव में शेफ शाही दौर का स्वाद पेश नहीं कर पाते हैं। यह किताब जायकेदार पकवान तैयार करने में मददगार साबित होगी। –नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां, पूर्व मंत्री
जो खाने शाही दस्तरख्वान पर होते थे, उनकी रेसिपी और पकाने के तरीके अब चंद लोगों को ही पता हैं, इसलिए यह किताब बहुत अहम है। इस किताब में न सिर्फ रेसिपी है, बल्कि व्यंजन तैयार होने में आने वाले समय और उस दौर के हिसाब से व्यय का भी ब्यौरा दिया गया है। रामपुर का शाही दस्तरख्वान एक किताब नहीं, बल्कि दस्तावेज है। इसको हिंदी में भी छापा जाना चाहिए।–काशिफ खां, सह–संयोजक, इंटैक रुहेलखंड चैप्टर
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