बरेली: अपने अंदाज, फिक्र से तीन पीढ़ियों के दिलों में ‘राहत’

बरेली, अमृत विचार। बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं…। मशहूर शायर राहत इंदौरी जब भी अपने किसी शेर को पढ़ते तो महफिल झूठ उठती थी। मंगलवार को जैसे ही उनके इंतकाल (निधन) की खबर आम हुई। सोशल मीडिया पर गम पसर गया। उनके शेर …

बरेली, अमृत विचार। बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं…। मशहूर शायर राहत इंदौरी जब भी अपने किसी शेर को पढ़ते तो महफिल झूठ उठती थी। मंगलवार को जैसे ही उनके इंतकाल (निधन) की खबर आम हुई। सोशल मीडिया पर गम पसर गया। उनके शेर गूंज उठे। लोगों ने अपने तरीके से उन्हें याद किया। करीब 45 साल राहत इंदौरी के साथ मुशायरों का मंच साझा करने वाले उर्दू अदब के मशहूर शायर प्रोफेसर वसीम बरेलवी ने उनके निधन पर कहा कि ‘राहत इंदौरी की मौत ने मेरा वजूद हिला दिया है। कोरोना ने मेरा सबसे चहेता भाई छीन लिया।’

प्रोफेसर वसीम बरेलवी कहते हैं कि 45 सालों में राहत इंदौरी की शोहरत की चमक कभी भी फीकी नहीं पड़ी। बल्कि मुशायरे के सफर के साथ शोहरत बढ़ती गई। उन्होंने गजल पढ़ने का अपना अनोखा अंदाज पैदा किया। अपनी फिक्र (चिंतन) अंदाज से उन्होंने तीन पीढ़ियों के दिलों पर राज किया। मंच से जब भी पढ़ते थे, पूरे मन से उनहें सुना जाता था। मैं, 1965 से मुशायरे के मंच साझा पर आया। उनका सफर 1975 के आस-पास शुरू हुआ। उसी वर्ष उज्जैन के एक मुशायरे में हम दोनों मंच पर रहे। तब से जो रिश्ता बना। उसमें आज तक बेपनाह मुहब्बत और सम्मान बना रहा।

उनके साथ की बात करूं तो जितना समय मैंने राहत इंदौरी के साथ सफर में बिताया, शायद इतना तो परिवार को भी नहीं दिया होगा। उनका यूं जाना न सिर्फ साहित्य, उर्दू और मुशायरे के मंच का नुकसान है, बल्कि मेरा जाति नुकसान भी है। अभी 28 फरवरी को इंदौर में एक मुशायरे में जाना हुआ। घर पर दावत रखी। रात करीब 2:30 बजे हम लोगों ने साथ में खाना खाया था। इस दुख की घड़ी में उनके परिवार, चाहने वालों को सब्र मिले, यही दुआ करता हूं। हम सब उनकी मगफिरत की दुआ करें।

वतन से मुहब्बत की पेश की मिसाल: राहत
पूर्व मंत्री मंत्री अताउर्रहमान ने राहत इंदौरी के निधन पर गम जताया और उन्हें खिराजे अकीदत पेश की। उन्होंने कहा कि राहत इंदौरी वतन से मुहब्बत की मिसाल थे। अपने कलामों से युवाओं को भी यही संदेश दिया। समाज को सही दिशा दिखाते रहे। उनके निधन से दुखी हूं।

“अपनी बेबाक शायरी के माध्यम से राहत इंदौरी ने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया। ताकतवर आवाज और जोशीले अंदाज में उर्दू शायरी का शानदार मंच बनाया। उनके निधन से मन दुखी है। उनका एक शेर है-सच बात कौन है जो सरे आम कह सके, मैं कह रहा हूं मुझ को सजा देनी चाहिए।” -अधिवक्ता मुहम्मद खालिद जीलानी, आरटीआइ कार्यकर्ता

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