पद्म श्री से सम्मानित मिजोरम की गायिका को है आस: स्वदेशी कला के लिए काम करने वाले होंगे प्रेरित 

पद्म श्री से सम्मानित मिजोरम की गायिका को है आस: स्वदेशी कला के लिए काम करने वाले होंगे प्रेरित 

आइजोल। हाल में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित लोक गायिका के. सी. रुनरेमसंगी ने कहा है कि वह तीन दशकों से अधिक समय से देश भर में मिजो गीतों को बढ़ावा दे रही हैं। आइजोल की 59 वर्षीय गायिका रुनरेमसंगी ने बताया कि उन्होंने कम उम्र में गायन और नृत्य को अपने शौक के रूप में लिया था लेकिन धीरे-धीरे संगीत में उनकी रुचि बढ़ती गई क्योंकि लोग उनकी इस प्रतिभा पर ध्यान देने लगे।

उन्होंने बताया, जब में छोटी थी तब मैं चर्च के कार्यक्रमों और शादी समारोहों में मिजो गीत गाती थी। लोग मेरे प्रदर्शन की सराहना करते थे और इससे मुझे संगीत को अपने पेशे के रूप में आगे बढ़ाने का विश्वास मिला। उन्होंने आशा व्यक्त की कि उनका पुरस्कार उन अन्य कलाकारों को प्रेरित करेगा जो स्वदेशी कला और संस्कृति को लोकप्रिय बनाना चाहते हैं।

रुनरेमसंगी मूल रूप से सेरछिप जिले के कीतुम गांव की हैं। वह और उनका परिवार 1986 में आइजोल चला आया था, जो उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। यहां उन्होंने आकाशवाणी में बी ग्रेड के कलाकार के रूप में पंजीकरण कराया। रुनरेमसंगी ने पीटीआई-भाषा को बताया, इन वर्षों में, मैंने आकाशवाणी के लिए लोक, धर्मशिक्षा और प्रेम सहित विभिन्न शैलियों के लगभग 50-60 मिज़ो गीत रिकॉर्ड किए।

वह 1992 में राज्य कला और संस्कृति विभाग से जुड़ीं और उसके बाद मिजो लोक गीतों तथा नृत्य रूपों को सिखाने, प्रदर्शन करने और बढ़ावा देने के लिए उन्होंने देश भर में यात्रा की। मिजो लोक गीत की रानी के रूप में जानी जाने वाली रुनरेमसंगी को संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2017 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

आइजोल। हाल में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित लोक गायिका के. सी. रुनरेमसंगी ने कहा है कि वह तीन दशकों से अधिक समय से देश भर में मिजो गीतों को बढ़ावा दे रही हैं। आइजोल की 59 वर्षीय गायिका रुनरेमसंगी ने बताया कि उन्होंने कम उम्र में गायन और नृत्य को अपने शौक के रूप में लिया था लेकिन धीरे-धीरे संगीत में उनकी रुचि बढ़ती गई क्योंकि लोग उनकी इस प्रतिभा पर ध्यान देने लगे।

उन्होंने बताया, जब में छोटी थी तब मैं चर्च के कार्यक्रमों और शादी समारोहों में मिजो गीत गाती थी। लोग मेरे प्रदर्शन की सराहना करते थे और इससे मुझे संगीत को अपने पेशे के रूप में आगे बढ़ाने का विश्वास मिला। उन्होंने आशा व्यक्त की कि उनका पुरस्कार उन अन्य कलाकारों को प्रेरित करेगा जो स्वदेशी कला और संस्कृति को लोकप्रिय बनाना चाहते हैं।

रुनरेमसंगी मूल रूप से सेरछिप जिले के कीतुम गांव की हैं। वह और उनका परिवार 1986 में आइजोल चला आया था, जो उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। यहां उन्होंने आकाशवाणी में बी ग्रेड के कलाकार के रूप में पंजीकरण कराया। रुनरेमसंगी ने पीटीआई-भाषा को बताया, इन वर्षों में, मैंने आकाशवाणी के लिए लोक, धर्मशिक्षा और प्रेम सहित विभिन्न शैलियों के लगभग 50-60 मिज़ो गीत रिकॉर्ड किए।

वह 1992 में राज्य कला और संस्कृति विभाग से जुड़ीं और उसके बाद मिजो लोक गीतों तथा नृत्य रूपों को सिखाने, प्रदर्शन करने और बढ़ावा देने के लिए उन्होंने देश भर में यात्रा की। मिजो लोक गीत की रानी के रूप में जानी जाने वाली रुनरेमसंगी को संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2017 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 

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