शादी के जरिए धर्मांतरण से जुड़े कानूनों के खिलाफ लंबित मामलों की स्थिति बताएं: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अंतर्धार्मिक विवाहों के चलते धर्मांतरण को नियंत्रित करने वाले राज्यों के विवादित कानूनों के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की स्थिति पर सोमवार को जानकारी मांगी और कहा कि अगर ये सभी समान प्रकृति के हैं तो उन्हें शीर्ष अदालत में स्थानांतरित किया जा सकता है।
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उच्चतम न्यायालय ने अपनी रजिस्ट्री से कहा कि वह उसे गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा राज्य के धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2003 की धारा पांच के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील की स्थिति से भी अवगत कराए। इस धारा के तहत शादी के जरिए धर्म बदलने के लिए जिलाधिकारी की पूर्व अनुमति जरूरी है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) 'सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस' और उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश से कहा कि वे विवाह के माध्यम से धर्मांतरण से संबंधित राज्य के कानूनों को चुनौती देने वाले मामलों की स्थिति से उसे अवगत कराएं।
पीठ ने कहा, “आप एक नोट दायर करें जो कानून, अध्यादेश और संशोधन को चुनौती देने वाले मामलों की स्थिति और संबंधित उच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही के स्तर का संकेत दें। हम मामले का संक्षिप्त विवरण चाहते हैं। हमने निर्णायक दृष्टिकोण नहीं अपनाया है, लेकिन अगर सभी मामले एक जैसे होंगे तो उन्हें यहां स्थानांतरित करेंगे या अगर कार्यवाही आगे के चरण में होगी तो हम उच्च न्यायायल को कार्यवाही करने देंगे।”
शीर्ष अदालत ने एनजीओ और राज्य सरकारों से दो सप्ताह में अपना नोट दाखिल करने को कहा। शुरुआत में, एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा कि शुरुआत में संगठन ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कानूनों को और मध्य प्रदेश तथा हिमाचल प्रदेश के समान कानूनों से संबंधित अध्यादेश को चुनौती दी थी जो अब कानून बन गए हैं।
उन्होंने कहा कि 17 फरवरी 2021 को हुई पिछली सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने एनजीओ को उसकी लंबित याचिका में हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश को पक्षकार बनाने की अनुमति दी थी। सिंह ने कहा, “ अलग-अलग राज्यों द्वारा बनाए गए ये कानून कमोबेश एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं और शीर्ष अदालत के कई ऐतिहासिक फैसलों का उल्लंघन करते हैं। वे अंतर्धार्मिक जोड़ों को शादी करने और धर्म परिवर्तन करने के लिए अनिवार्य रूप से अधिकारियों की अनुमति लेने का निर्देश देते हैं।”
उन्होंने कहा, “ वे न सिर्फ किसी भी धर्म को मानने के अधिकार में हस्तक्षेप करते हैं बल्कि जीवन साथी चुनने के अधिकार में भी दखल देते हैं। इन कानूनों ने जोड़ों पर ही स्वेच्छा से शादी और धर्मांतरण करने को साबित करने की जिम्मेदारी भी डाल दी है।” सिंह ने कहा कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने पहले धर्मांतरण पर एक पुराने कानून के विभिन्न प्रावधानों को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि यह निजता के क्षेत्र में आते हैं, लेकिन राज्य सरकार ने 2019 में रद्द किए गए प्रावधानों को वापस लाकर और भी सख्त बना दिया।
केविएट दायर करने वाले एक व्यक्ति की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह ने कहा कि मध्य प्रदेश और गुजरात उच्च न्यायालयों ने मुद्दे पर विस्तृत आदेश पारित किए हैं और वह मध्य प्रदेश में इससे जुड़े एक मामले में पेश हो रही हैं। उन्होंने कहा, “ विभिन्न अदालतों में लंबित ये मामले मिलते जुलते हैं और अगर यह अदालत उन्हें अपने पास स्थानांतरित कर ले तो यह उचित रहेगा।
” जयसिंह ने कहा कि गुजरात सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ इस अदालत में अपील दायर की है, इसलिए अन्य सभी मामलों को इस अदालत में लाया जा सकता है और एक साथ सुना जा सकता है। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में कई याचिकाएं दायर की गई हैं और सभी सुनवाई के विभिन्न चरणों में हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में आधा दर्जन मामले लंबित हैं और कार्यवाही विभिन्न चरणों में है। पीठ ने कहा कि वह फिलहाल कोई आदेश पारित नहीं कर रही है, लेकिन वह चाहेगी कि सभी पक्ष विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों पर एक छोटा सा नोट दायर करें, ताकि प्रथम दृष्टया यह देखा जा सके कि इस मुद्दे पर उचित फैसला करने के लिए क्या रास्ता अपनाया जाए।
शीर्ष अदालत ने प्रमुख याचिकाकर्ता विशाल ठाकरे को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कानूनों को चुनौती देने वाली अपनी याचिका वापस लेने की भी अनुमति दी और उनसे कहा कि वह उचित बदलाव कर नई याचिका दायर करें।
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