दलाई लामा ने चीन में वर्षों के ‘दमन और उत्पीड़न’ के बाद बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान को किया रेखांकित

बोधगया। तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने चीन में बौद्ध धर्म और उसके अनुयायियों के वर्षों तक हुए ‘दमन और उत्पीड़न’ के बाद देश में ‘बौद्ध धर्म में बढ़ती दिलचस्पी’ को रविवार को रेखांकित किया। दलाई लामा भगवान बुद्ध की ज्ञान स्थली बोधगया में अपने भक्तों को संबोधित कर रहे थे। लामाओं ने 87 वर्षीय आध्यात्मिक नेता की दीर्घायु के लिए यहां एक पारंपरिक प्रार्थना सभा का अयोजन किया था।
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नोबेल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा ने कहा, “तिब्बत की बौद्ध परंपरा ने पश्चिम में लोगों का बहुत ध्यान आकर्षित किया है। अतीत में बौद्ध धर्म को एक एशियाई धर्म के रूप में जाना जाता था। लेकिन आज इसका दर्शन और अवधारणाएं, विशेष रूप से मनोविज्ञान से संबंधित दर्शन और धारणाएं, दुनियाभर में फैल चुकी हैं। कई वैज्ञानिक इस परंपरा में रुचि ले रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “यह न केवल तिब्बत... बल्कि चीन के लिए भी मायने रखता है। इसका सीधा असर चीन पर भी पड़ता है, क्योंकि चीन एक बौद्ध देश रहा है, लेकिन चीन में बौद्ध धर्म और बौद्धों का बहुत दमन और उत्पीड़न किया गया।” तिब्बती आध्यात्मिक नेता कहा, “इसलिए चीन और दुनिया में काफी बदलाव हो सकता है।
मैं हमेशा एक बेहतर दुनिया की संभावना को लेकर आशान्वित रहा हूं।” उन्होंने कहा, “तिब्बत जिसे बर्फ की भूमि भी कहा जाता है, कई त्रासदियों से गुजरा है। लेकिन इसके अप्रत्यक्ष रूप से अच्छे नतीजे भी सामने आए। दुनियाभर के लोग अब तिब्बती बौद्ध परंपरा के बारे में जागरूक हो गए हैं।” दलाई लामा को माओत्से तुंग की कम्युनिस्ट क्रांति के एक दशक बाद 1959 में अपनी मातृभूमि को छोड़ना पड़ा था।
भारत में शरण मिलने के बाद वह हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बस गएष जिसे बड़ी संख्या में तिब्बती शरणार्थियों की मौजूदगी के कारण ‘मिनी तिब्बत’ के रूप में जाना जाता है। दलाई लामा बिहार के बोधगया को ‘वज्रस्थान’ मानते हैं। वह कोविड-19 महामारी के कारण दो साल के अंतराल के बाद प्रवचन देने के लिए यहां आए हैं।
तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा, “यह एक संयोग है कि उक्त समारोह ग्रेगोरियन कैलेंडर के पहले दिन हो रहा है, जिसमें मेरे लंबे जीवन के लिए प्रार्थना की जाती है। यह एक तरह से संकेत है कि हम आगे अच्छे समय की ओर बढ़ रहे हैं।”
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