हल्द्वानी:  हाथियों को आबादी क्षेत्र से दूर रखेंगी मधुमक्खियां, उत्तराखंड में पहला ट्रायल

अब तक केरल, उड़ीसा, असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में हो चुका है ट्रायल

हल्द्वानी:  हाथियों को आबादी क्षेत्र से दूर रखेंगी मधुमक्खियां, उत्तराखंड में पहला ट्रायल

भूपेश कन्नौजिया, हल्द्वानी। आज के हालात ऐसे हो चुके हैं कि मानव वन्य जीव संघर्ष की लगातार खबरें सामने आ रही हैं। जंगली जानवरों से खेती-बाड़ी का नुकसान अलग। वहीं इन सब के बीच प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में हाथियों का उत्पात भी कुछ कम नहीं है। इसी क्रम में एक अभिनव प्रयास सामने आया है जो कितना कारगर सिद्ध होगा यह तो वक्त बताएगा लेकिन इसके कामयाबी के ताजा उदाहरण अन्य प्रदेशों में सामने आ चुके हैं।

देश में छह राज्यों में इस नायाब तरीके को लागू कर दिया गया है वहीं उत्तराखंड में यह पहला प्रयास होगा। चलिए बताते आपको इस अनोखी ट्रिक के बारे में जो हाथियों को आबादी से दूर रखेगी। खादी और ग्रामोद्योग आयोग फतेहपुर वन रेंज के चौसला में री-हैब (रिड्यूस इन ह्यूमन अटैक यूजिंग बाय हनी बी) कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है, जो अभी ट्रायल बेसिस पर है।

 रामनगर वन प्रभाग की फतेहपुर रेंज के चौसला में ग्रामीणों को 338 मधुमक्खी बॉक्‍स और शहद निष्कासन यंत्र का नि:शुल्क वितरण किया गया है और इन मधुमक्खियों के बक्सों को आठ ऐसी जगह लगाया गया है जहां से हाथियों का आवागमन अक्सर होता आया है। दरअसल इन सारे बक्सों को एक तार के जरिए जोड़ा गया है और जैसी ही इन पर जोर पड़ेगा यह सारे बक्से एक साथ खुल जाएंगे और हाथियों पर मधुमक्खियां टूट पडेंगी और हाथी वापस जंगल लौट जाएंगे। वहीं इस गतिविधि को कैद करने के लिए ट्रैप कैमरा भी लगाया गया है।

आपको बता दें कि अभी तक हाथियों को रोकने का प्रयास सोलर फेंसिंग या बड़े-बड़े गड्ढे खोदकर किया जाता रहा है, जिससे हाथियों को कई बार गंभीर चोटें भी पहुंचती है, लिहाजा मधुमक्‍खी बॉक्‍स की फेंसिंग लगाकर हाथी को बिना नुकसान पहुंचाए गांव की तरफ आने से रोका जा सकता है। अब बस इंतजार है तो इसके सफल परीक्षण की फुटेज का सामने आना और ग्रामीणों सहित इस प्रोजेक्ट से जुड़े तमाम लोगों को भी यही उम्मीद है कि इस अभिनव प्रयोग के सार्थक परिणाम देखने को मिलेंगे। वहीं स्थानीय निवासी पूर्व जिला पंचायत सदस्य नीरज तिवारी और पूर्व प्रधान चौसला ललित मोहन बोरा सहित अन्य ग्रामीणों का कहना है कि प्रोजेक्ट की मदद से शहद उत्पादन तो होगा ही वहीं सुरक्षा के लिहाज से अगर इसके परिणाम सटीक आते हैं तो इस योजना को हाथियों से प्रभावित इलाकों में इस्तेमाल किया जा सकता है।