ईडब्ल्यूएस आरक्षण वैध

ईडब्ल्यूएस आरक्षण वैध

ईडब्ल्यूएस कोटे में आरक्षण को लेकर पिछले काफी समय से सवाल उठ रहे थे। सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने सरकारी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत करने वाले संविधान में 103वें संशोधन की संवैधानिक वैधता पर मुहर लगा दी है। शीर्ष …

ईडब्ल्यूएस कोटे में आरक्षण को लेकर पिछले काफी समय से सवाल उठ रहे थे। सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने सरकारी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत करने वाले संविधान में 103वें संशोधन की संवैधानिक वैधता पर मुहर लगा दी है।

शीर्ष अदालत ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण के विभिन्न पहलुओं से संबंधित 40 याचिकाओं को सुनवाई के लिए मंजूर किया था। संविधान पीठ का गठन हुआ और सुनवाई शुरू हुई। ईडब्ल्यूएस आरक्षण के विरोधियों का कहना था कि ये संविधान में दिए गए आरक्षण की मूल भावना का उल्लंघन है।

ईडब्ल्यूएस कोटा सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को बाहर करता है और लाभ केवल ‘अगड़े वर्गों’ तक सीमित रखता है। हालांकि सरकार का कहना था कि इसका उद्देश्य सिर्फ आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की मदद करना है। भाजपा के वर्ष 2019 के चुनावी घोषणा पत्र में ‘आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण’ शामिल था, जिसे केंद्र सरकार ने 2019 में संविधान में 103वें संशोधन अधिनिय के तौर पर पारित किया।

इस फैसले को लेकर श्रेय लेने की होड़ भी नजर आ रही है। भाजपा इसे मोदी के मिशन की जीत बता रही है। वहीं कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि यह आरक्षण मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा आरंभ की गई प्रक्रिया का परिणाम है। कांग्रेस का कहना है कि जातीय जनगणना पर सरकार को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए।

गुजरात में पाटीदार आरक्षण समर्थकों ने भी न्यायालय के आदेश का स्वागत किया है। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो रहे हैं, ऐसे में बेंच का ये फैसला याद रखा जाएगा। इस बेंच में चीफ जस्टिस यूयू ललित के अलावा एस रवींद्र भट, दिनेश माहेश्वरी, जेबी पारदीवाला और बेला एम त्रिवेदी शामिल थे। महत्वपूर्ण है कि शीर्ष अदालत ने कहा आर्थिक मापदंड को ध्यान में रखते हुए ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे या समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता।

ईडब्ल्यूएस आरक्षण कोटे की 50 प्रतिशत की सीमा सहित संविधान की किसी भी आवश्यक विशेषता को क्षति नहीं पहुंचाता, क्योंकि कोटे की सीमा पहले से ही लचीली है। कहा जा रहा है कि ये फैसला आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को सक्षम बनाएगा। फैसले का महत्व इस तथ्य में निहित है कि आरक्षण के आधार के रूप में आर्थिक पिछड़ापन अब एक संवैधानिक सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया जाएगा।