बरेली में दम तोड़ता बेंत का कारोबार, टैक्स बढ़ने से व्यापार में आई भारी गिरावट

बरेली में दम तोड़ता बेंत का कारोबार, टैक्स बढ़ने से व्यापार में आई भारी गिरावट

बरेली, अमृत विचार। बरेली में बेंत का काम दम तोड़ता जा रहा है। किसी समय मे बरेली की पहचान बांस और बेंत के सामान के कारोबार से होती थी। लेकिन अब इसकी यह पहचान धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। जिसका बड़ा कारण बढ़ता टैक्स बताया जा रहा है। वहीं पहले के मुकाबले दामों में …

बरेली, अमृत विचार। बरेली में बेंत का काम दम तोड़ता जा रहा है। किसी समय मे बरेली की पहचान बांस और बेंत के सामान के कारोबार से होती थी। लेकिन अब इसकी यह पहचान धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। जिसका बड़ा कारण बढ़ता टैक्स बताया जा रहा है। वहीं पहले के मुकाबले दामों में भी इजाफा इसका कारण बना है।

बरेली में अब से 15 साल पहले पहले शाहदाना, कुमार टॉकीज, सिकलपुर आदि जगह बांस और बेंत का बम्बर काम होता था। उस समय इस काम मे आने वाले सामान पर टैक्स नहीं लगता था। लेकिन जैसे- जैसे इस काम में टैक्स लगना शुरू हो गया। बचत कम होने से लोगों ने अन्य काम शुरू कर दिया। कुमार टॉकीज पर 14 बांस और बेंत के सामान की दुकानों में से केवल तीन दुकान ही रह गईं।

बांस का सामान बनाने वाले कारीगर राजू ने बताया कि पहले के मुकाबले कच्चे दामों में दुगने से ज्यादा का फर्क है। जो कच्चा सामान पहले 200 रुपए की कीमत का था अब 1000 रुपए में मिल रहा है। ज्यादातर सामान वह असम से मंगाते है। उनके पास सोफा सेट 9500 से शुरू होकर 30 हजार रुपए कीमत तक का है। चार कुर्सियों के सेट की कीमत 7 हजार से लेकर 9.50 हजार तक कीमत तक बताई जा रही है। उनके पास झूले, हैंगिग सेड, फ्लॉवर पॉट आदि बेंत का सामान है।

वहीं शानदार केन फर्नीचर के नाम से बेंत का सामान बेचने वाले राजू ने बताया कि उनके पिता हाजी साबिर अली बेंत का सामान बेचते थे। पहले टोकरी आदि बना कर बेचते थे इस समय सोफे, कुर्सी, झूले आदि बेच रहे हैं। जब से बेंत के और बांस के सामान और टैक्स लगा है। व्यापार की कमर टूट गई है। 12 फीसदी कर देने के बाद मजदूरी किराया आदि देने के कारण अब काम से गुजारा नहीं हो रहा।

लखनऊ, दिल्ली से लेकर पंजाब तक जाता है सामान
शहर में भले ही बेंत और बांस के काम ने दम तोड़ दिया है। लेकिन इसका काम करने वाले कारोबारी बताते हैं कि शहर से माल पंजाब, दिल्ली, लखनऊ आदि जगह जाता है। लेकिन भाड़ा ज्यादा होने से खरीदार को माल के जाने में दिक्कत होती है।

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