बरेली: ऐसी भी एक दीवानगी…पहले आजादी के दीवाने बने फिर राजनेता बन किया जनकल्याण

बरेली: ऐसी भी एक दीवानगी…पहले आजादी के दीवाने बने फिर राजनेता बन किया जनकल्याण

बरेली, अमृत विचार। आज हम सभी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं। हर घर तिरंगा लहरा रहा है। यह दृश्य 15 अगस्त 1947 की सुबह की अनुभूति तो नहीं करा रहा, मगर देश को आजादी मिलने के उस दिन के गर्व भरे अहसास को दिलों में जरूर जगा रहा है। ब्रिटिश हुकूमत से …

बरेली, अमृत विचार। आज हम सभी आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहे हैं। हर घर तिरंगा लहरा रहा है। यह दृश्य 15 अगस्त 1947 की सुबह की अनुभूति तो नहीं करा रहा, मगर देश को आजादी मिलने के उस दिन के गर्व भरे अहसास को दिलों में जरूर जगा रहा है। ब्रिटिश हुकूमत से भारत को आजादी दिलाने में बरेली जनपद के भी सेनानियों ने अपना सब कुछ बलिदान कर दिया था।

दीवानों ने भारत माता को अंग्रेजी बेड़ियों से आजादी दिलाने के बाद बरेली की नींव भी मजबूत करने का काम किया था। प्रशासन के आंकड़ों पर गौर करें तो उनके रिकार्ड में जनपद भर के 398 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का इतिहास दर्ज है, जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए आजादी के लिए वर्षों तक चले कई आंदोलन में भाग लिया। उनका लंबा वक्त जेल की सलाखों में गुजारा था। बाद में वे भारत को आजादी दिलाने वाले दीवाने भी बने।

रिकार्ड देखने पर 20 से अधिक ऐसे सेनानियों की गाथा सामने आई, जिन्होंने लोकसभा और विधानसभा का सदस्य, जिला परिषद और नगर पालिका बरेली के चेयरमैन और सदस्य के रूप में भी लंबे समय तक कार्य किया और बरेली की समृद्धि की ओर से ले जाने का काम किया।

गौर करने की वाली बात यह है कि बरेली की पृष्ठभूमि भी सेनानियों से भरी पड़ी है। 398 आंकड़ा तो सरकारी है और न जाने कितने ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे, जिन्होंने अपना खून बहाकर आंदोलन को धार दी थी। जिला प्रशासन के रिकार्ड से लिए गए कुछ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की संक्षिप्त गाथा के कुछ अंश, जिन्होंने राजनेता बनकर भी जनकल्याण के हक में काम किया था…

  • अब्दुल रऊफ निवासी आजमनगर, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ दिनों के लिए नजरबंद रहे, उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे।
  • अब्दुल वाजिद आनरेरी मजिस्ट्रेट का पद त्यागकर कांग्रेस में शामिल होने के बाद 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और एक वर्ष कैद की सजा हुई। सेंट्रल असेंबली के सदस्य रहने के साथ बरेली नगर पालिका के अध्यक्ष भी रहे।
  • अधो नारायन निवासी पूरनमल बजरिया, 1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने पर छह माह कैद हुई, 1930 में नमक सत्याग्रह आंदाेलन में छह माह जेल गए। व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन करने पर एक साल कैद हुई। भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने पर 9 अगस्त 1942 काे पकड़े और 1943 में छोड़े गए। यह नगर पालिका बरेली के सदस्य भी रहे।
  • गाेपीनाथ साहू पुत्र कंटी लाल निवासी कूंचा रतनगंज, 1930 और 1940 में छह और नौ माह की सजा हुई। भारत छोड़ो आंदोलन के सिलसिले में 9 अगस्त 1942 को नजरबंद हुए, 1944 में जेल से छूटे। बाद में नगर पालिका बरेली के सदस्य रहे और जिला व कांग्रेस शहर कमेटी के अध्यक्ष भी रहे।
  • चिरंजीव लाल गुप्ता पुत्र रामजीमल निवासी मोहल्ला जकाती, 1918 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय अधिवेशन में बतौर बरेली के प्रतिनिधि शामिल हुए। 1920 में बरेली जिला कांग्रेस के उप मंत्री रहे। राजकीय और अराजकीय समितियों के सदस्य भी रहे। श्रमजीवी पत्रकार भी थे।
  • जियाराम सक्सेना निवासी बमनपुरी, असहयाेग आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता रहते हुए 1922 में 3 वर्ष की कैद हुई। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहने के साथ नगर पालिका बरेली के चेयरमैन भी रहे।
  • टिकैत राम वर्मा पुत्र बंशीधर निवासी महावीर टोला कूंचा मुंशी भागीरथ, 1920 में असहयोग आंदोलन में शामिल हुए। स्कूलों और कालेजों का बायकाट कर आंदोलन को सफल बनाने को कौमपरस्त अखबार निकाल लोगों को एकजुट किया। जेल भी गए। 1930 से 1931 तक शहर कांग्रेस कमेटी बरेली के प्रधान भी रहे थे।
  • दामोदर स्वरूप सेठ पुत्र बहादुर लाल सेठ निवासी बिहारीपुर, आरंभ से ही क्रांतिकारी थे। प्रसिद्ध काकोरी केस के मुकदमे के अभियुक्त थे। कई बार जेल गए। वह अंतरित संसद के सदस्य रहने के साथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान भी रहे थे।
  • दुर्राब सिंह पुत्र कंधर सिंह निवासी उरला थाना आंवला, व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन के दौरान छह माह की कैद हुई। जिला परिषद के सदस्य भी रहे।
  • नौरगंलाल पुत्र शंकर लाल निवासी बमनपुरी, सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने पर छह माह कैद हुई। सत्याग्रह आंदोलन में शामिल होने पर एक वर्ष तक जेल रहे। भारत छोड़ो आंदोलन में 9 अगस्त 1942 में जेल गए और 1944 से सेंट्रल जेल बरेली से छूटे थे। जिला भ्रष्टाचार निरोधक समिति के अध्यक्ष रहने के साथ 1962 से लेकर 1967 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रहे थे।
  • पृथ्वी राज सिंह निवासी बुधौली थाना भुता, डिप्टी कलेक्टर का पद त्यागकर कांग्रेस में शामिल हुए। 19 वर्षों तक जिला कांग्रेस कमेटी बरेली के अध्यक्ष रहे। नमक सत्याग्रह आंदोलन में छह माह की सजा हुई। 1937 में विधानसभा के सदस्य भी रहे थे।
  • प्रताप चंद्र आजाद पुत्र रंगीलाल सिन्हा निवासी रामबाग, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए। 1947 में उत्तर प्रदेश छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहने के साथ जिला परिषद बरेली के अध्यक्ष भी रहे।
  • ब्रज मोहन लाल शास्त्री पुत्र भजन लाल निवासी कूचा सीताराम, असहयोग आंदोलन में पढ़ाई छोड़ी। 1930 में आईपीसी की धारा 124 में दो वर्ष की सजा हुई। भारत छोड़ो आंदोलन में 30 माह तक नजरबंद रहे। बाद में नगर और जिला परिषद के अध्यक्ष रहे। उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रहे।
  • बाबूराम पुत्र भोलानाथ निवासी ग्राम चठिया बरेली, सत्याग्रह आंदोलन में नौ माह सजा काटी। भारत छोड़ाे आंदोलन में 18 माह जेल में रहे। आजादी मिलने के बाद 1957 में विधानसभा सदस्य भी चुने गए थे।
  • मोती सिंह वकील निवासी बुधौली फरीदपुर, असहयोग आंदोलन में भाग लेने पर 1921 में छह माह की सजा काटी। बरेली जिला बोर्ड के चेयरमैन भी रहे थे।
  • शिवराज बहादुर पुत्र मुंशी हजारी लाल निवासी बीजाऊ तहसील नवाबगंज, 1941 में वह आजाद प्रेस में सरकार विरोधी इश्तहार छापने में पकड़े गए और मुकदमा चला। इसके बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रहे।
  • सतीश चंद्र पुत्र बृजलाल निवासी नया टोला आलमगिरीगंज, 1936 में कांग्रेस से जुड़े। 1940 व 1941 और 1942-44 में आजादी की लड़ाई में भाग लिया। 1940 से 42 तक अंतरित संसद के सदस्य रहे। कई बार लोकसभा सदस्य चुने गए और केंद्रीय मंत्रीमंडल में मंत्री भी रहे।

डाक्टर होकर भी आजादी में कूदे, बाद में विधायक भी बने
दरबारी लाल शर्मा निवासी जगतपुर बारादरी, 1930 में एक वर्ष कैद हुई। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण 1932 में छह माह कैद और 15 रुपये जुर्माना भी हुआ। इंडियन मेडिकल बोर्ड के सदस्य रहे। उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहने के साथ जिला परिषद के अध्यक्ष भी रहे। वहीं कुसुम कुमारी पत्नी दरबारी लाल शर्मा, 1930 में कांग्रेस में शामिल हुईं और नमक सत्याग्रह आंदोलन भाग लेने पर 1930 में ही छह माह कैद हुई। वह जिला परिषद बरेली की सदस्या भी रहीं।

पहले आजादी में सक्रिय भूमिका फिर 1959 में कामनवेल्थ में भारत का प्रतिनिधित्व किया
नवल किशोर पुत्र रघुवर दयाल निवासी आंवला, आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के सचिव रहे। सन 1941-42 के व्यक्तिगत सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण 9 अगस्त 1942 को नजरबंद किए गए। 1944 में जेल से छूटे। जिला बोर्ड बरेली के सदस्य और बोर्ड की जिला समिति के चेयरमैन भी रहे।

1948-1949 में रामपुर से विधानसभा के सदस्य रहे। 1955 से लेकर 1960 तक विधानसभा की प्रक्कलन समिति के सभापति रहे। उत्तर प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस लेजिसलेचर पार्टी के सचिव और यूनिवर्सिटी एजुकेशन कमेटी के वाइस चेयरमैन रहे। 1959 में भारत के प्रतिनिधि के रूप में कामनवेल्थ एसोसिएशन कान्फ्रेंस कैनवेरा (आस्ट्रेलिया) गए। 1961 में गृह तथा कृषि विभाग के उपमंत्री नियुक्त हुए। उत्तर प्रदेश सरकार में शिक्षामंत्री भी रहे थे।

धर्मदत्त वैद्य ने आजादी की अलख जगा यूपी को नई दिशा भी दी
ब्रह्मकुटी, पीलीभीत रोड निवासी धर्मदत्त वैद्य पुत्र पंडित शिव दयाल 1929 में कांग्रेस के सदस्य बने। विदेशी वस्त्र के बायकाट के सिलसिले में 1930 में गिरफ्तार हुए। नौजवान भारत सभा पंजाब के कई वर्षों तक सदस्य रहे। 1937 में रियासत पटौदी में प्रज्ञा परिषद का संगठन कर एक आंदोलन आरंभ किया। 28 सितंबर 1939 को पकड़े गए। दो मामलों में एक-एक वर्ष कैद हुई।

1942 में रुहेलखंड और कुमाऊं में आंदोलन संगठित करने के लिए प्रवेश द्वारा आर्गनाइजर नियुक्त किए गए। इसी सिलसिले में पकड़े और 18 माह तक नजरबंद रहे। 1947 में पाकिस्तान जाकर शरणार्थियों का भारत में वापस लाने के सिलसिले में लायलपुर में कुछ समय तक नजरबंद किए गए। भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तर प्रदेश और जिला बोर्ड बरेली के पदाधिकारी रहे।

नगर कांग्रेस कमेटी में बरेली अध्यक्ष रहे। 1952 से लेकर 1967 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। 1969 में पुन: विधानसभा सदस्य रहे। 1960 से 1962 तक उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री परिषद के सदस्य रहे और 1970 में भी उत्तर प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री रहे थे।

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