संभल : बिन मां की रजनी पिता संग सड़क पर कर रही जीवनयापन

संभल : बिन मां की रजनी पिता संग सड़क पर कर रही जीवनयापन

अमृत विचार, आदित्य कांत शर्मा। रविवार को मदर्स डे मनाया गया। सब बच्चों ने अपनी मां को तरह-तरह से विश किया, लेकिन बिना मां की आठ वर्षीय रजनी अपने पिता के साथ घोर गरीबी के चलते खराब पड़े नगर पालिका के वाटर कूलर में अपना जीवनयापन करने को मजबूर दिखी। पिता का साया तो उसके …

अमृत विचार, आदित्य कांत शर्मा। रविवार को मदर्स डे मनाया गया। सब बच्चों ने अपनी मां को तरह-तरह से विश किया, लेकिन बिना मां की आठ वर्षीय रजनी अपने पिता के साथ घोर गरीबी के चलते खराब पड़े नगर पालिका के वाटर कूलर में अपना जीवनयापन करने को मजबूर दिखी। पिता का साया तो उसके साथ है, लेकिन मां का साया तो उसके पैदा होते ही उठ गया था। ऐसे में मदर्स डे क्या होता है, उसे ज्ञात नहीं है। खाने को भी कुछ पास नहीं है, दूसरों के रहमो-करम पर जिंदा है।

किसी के द्वारा खाने को मिल जाता तो पिता-पुत्री खा लेते हैं, नहीं मिल पाने की दशा में दोनों को पानी पीकर रहना पड़ता है। रजनी का जीवन इतना कठिन है और मदद के हाथ बहुत दूर। छोटी सी रजनी इसी कारण शिक्षा से वंचित है। ऐसे में उसका सुंदर सा चेहरा मुरझाया रहता है, क्योंकि उसकी उम्र के बच्चे स्कूल भी जाते हैं और खेलते भी हैं, लेकिन रजनी ऐसी छत के नीचे जीवन गुजार रही है जो कभी भी उसके ऊपर से हट सकती है। ऐसे में उसको समाज के लोगों व प्रशासन की एक नजर की तलाश है, जो उसका जीवन बदल दे, जिससे मासूम के जीवन में खुशी आ जाए।

करीब एक माह पूर्व रजनी अपने पिता के साथ चन्दौसी आई थी। पिता के पास न पैसा था, न काम। ऐसे में छत का इंतजाम कैसे हो पाता। पिता-पुत्री दोनों नगर में भटकते रहे, कैथल गेट रामबाग रोड पर उन्हें एक नगर पालिका का खाली वाटर कूलर मिला तो दोनों ने उसमें अपना आशियाना बना लिया। नन्हीं रजनी ने उसकी साफ-सफाई की और सोने का इंतजाम हो गया। चार बाई चार फीट का वाटर कूलर छोटा तो पड़ना ही था, तो पिता ने फुटपाथ पर सोना शुरू कर दिया। आप समझ सकते हैं गर्मी की तपिश उसमें लोहे का वाटर कूलर।

नन्हीं रजनी पर क्या गुजर रही है। जब रहने को न छत हो न पेट भरने को भोजन, न मां का छांव देता आंचल तो ऐसे में आठ वर्ष की मासूम रजनी क्या करे। उसके दुख को तो कोई न सुनने वाला न मिला, न गुजरने वाली आंखों ने इसको देखने की कोशिश की। आस-पास के कुछ लोगों को मासूम पर तरस आ गया तो उसको व पिता को खाने को कुछ दे जाते हैं, जिससे वह दोनों अपना पेट भर लेते हैं।

अमृत विचार की टीम रविवार को मौके पर पहुंची। उसने रजनी व पिता के बारे में जानकारी की तो रजनी का दुख असहनीय लगा। पिता कल्लू से उसके जीवन के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वह जनपद बदायूं के थाना फैजगंज बेहटा के गांव खजुरिया में रहता था। रजनी को जन्म देती ही पत्नी ने साथ छोड़ दिया और उसकी मौत हो गई। कल्लू के चार बेटे व एक बेटी है। जमीन न होने व पत्नी के निधन के कारण परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया।

परिवार व कुनबे के लोगों ने साथ छोड़ दिया। सभी बच्चे अभी छोटे हैं तो काम भी नहीं कर सकते हैं। कल्लू अपने बच्चे को परेशान होता नहीं देख सका, तो उसने अपने चार बेटे गांव में जरूरतमंदों को दे दिए और खुद बेटी को साथ लेकर चन्दौसी चला आया। जब उससे पूछा गया कि बेटी को गांव छोड़कर क्यों नहीं आए तो उसका जबाव था साहब लड़की धन है, इसे में किसी को नहीं दूंगा। पता नहीं कौन कैसा बर्ताव करे। उसे शहर में आए हुए करीब एक माह बीत चुका है। वह रामबाग रोड स्थित श्री बारहसैनी नारी शिशु सदन के बाहर खुले में रहने लगा, जहां पास में ही एक नगर पालिका का खराब वाटर कूलर लगा हुआ है। आठ वर्षीय रजनी को जब छत नहीं मिली तो उसने इसे ही अपना आशियाना बना लिया है।

वह इसी में बैठकर खाना खाती और खेलती है। नींद आने पर इसी में सो जाती है, जबकि पिता सड़क किनारे खुल आसमान में ही रहता है। उसकी मजबूरी देख कोई उसे छतरी दे गया। भरी गर्मी में वह उसके नीचे बैठा रहता है, लेकिन बेटी को वाटर कूलर में रखता है। पिता-बेटी अपना जीवन बहुत कठिनाइयों से गुजार रहे हैं। वह पेट भरने के लिए दूसरों पर आश्रित हैं, क्योंकि राह चलते अथवा आसपास का कोई खाना दे जाता है तो पेट की भूख शांत कर लेते हैं। न मिलने पर भूखे पेट सो जाते हैं। ऐसे में सरकार व शासन प्रशासन भले ही लंबे-चौड़े वादे करें लेकिन इसके सामने सब बेमानी हैं क्योंकि इसे सरकार, शासन प्रशासन की ओर से अभी तक कोई मदद नहीं मिली है।

चार भाई, फिर भी नहीं मिल रहा उनका प्यार, पिता ने जरूरतमंदों को दिया
मासूम रजनी के चार भाई हैं और सभी उससे बड़े हैं। गरीबी के कारण पिता ने चारों को गांव में जरूरतमंदों को परवरिश के लिए दे दिया और रजनी को गांव से शहर लेकर आ गया। इससे रजनी अपने भाइयों के प्यार से भी वंचित हो गई, हालांकि उसे अपने भाइयों की याद आती है। पर वह अपने पिता को भी नहीं छोड़ सकती और अपने आप को पिता के साथ सुरक्षित महसूस कर रही है। अब देखना यह है कि मासूम रजनी रक्षाबंधन पर अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांध पाती है अथवा नहीं।

प्रशासन और संगठन बनें सहारा तो रजनी देख सकेगी सुनहरे भविष्य के सपने 
मासूम रजनी को उसके जीवन को संवारने के लिए प्रशासन के साथ-साथ सामाजिक संगठनों की तलाश है। उसके जीवन में वह रंग घोल सकते हैं। छत मिले, पिता को काम व उसके लिए शिक्षा तब रजनी की बेरंग जिंदगी को रंग मिल जायेंगे। आगे बढ़ने का हौंसला कायम होगा। तब रजनी शायद कठिनाइयों से भरी जिंदगी से निकल भविष्य के सुनहरे सपने बुन सकेगी।