पीलीभीत: सरकारी अस्पतालों में संसाधन बढ़े न स्टाफ

पीलीभीत: सरकारी अस्पतालों में संसाधन बढ़े न स्टाफ

पीलीभीत, अमृत विचार। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में मरीजों के लिए ऑक्सीजन की समस्या आई तो सरकार ने ऑक्सीजन उत्पादन प्लांटों पर ताकत झोंक दी। ऐसे में जिले में पांच ऑक्सीजन प्लांट दिए गए थे मगर, मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी सालों से चली आ रही है। इसके …

पीलीभीत, अमृत विचार। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में मरीजों के लिए ऑक्सीजन की समस्या आई तो सरकार ने ऑक्सीजन उत्पादन प्लांटों पर ताकत झोंक दी। ऐसे में जिले में पांच ऑक्सीजन प्लांट दिए गए थे मगर, मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी सालों से चली आ रही है।

इसके चलते कोरोना की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा मौतें इलाज न मिलने के अभाव में हुई थीं। इतना ही नहीं विशेषज्ञ न होने के कारण मरीजों को हायर सेंटर रेफर करना पड़ रहा है। गंभीर मरीजों के सामने निजी अस्पतालों के अलावा कोई भी विकल्प नहीं है। ऐसे में कमजोर वर्ग बेहतर इलाज के लिए कर्जदार होने को विवश है।

इधर, अधिकारियों का तर्क है कि वे लगातार जिले में डॉक्टरों की तैनाती के लिए शासन में पत्राचार कर रहे हैं मगर शासन स्तर से कोई जवाब नहीं मिल रहा है। जिले में संयुक्त चिकित्सालय के अलावा आठ सीएचसी-पीएचसी मिलाकर कुल 29 स्वास्थ्य केंद्र हैं। इसमें आठ सीएचसी और 21 पीएचसी शामिल हैं। इधर, सात ब्लॉकों में 278 हेल्थ सेंटर भी संचालित हो रहे हैं।

करीब दस साल पहले और अब के आंकड़ों पर गौर करें तो जिला अस्पताल में पहले जहां करीब 500 से 800 तक प्रतिदिन ओपीडी थी। जैसे-जैसे आबादी बढ़ी वैसे वैसे जिला अस्पताल की ओपीडी में मरीजों की संख्या भी बढ़ने लगी है। वर्तमान में ओपीडी में प्रतिदिन एक से दो हजार रुपये तक की ओपीडी पहुंच रही है।

सीएचसी पीएचसी के मरीज भी जिला अस्पताल दिखाने के लिए आते हैं। यहां डॉक्टरों के 27 पद सृजित है। इनमें सिर्फ 16 डॉक्टर ही मौजूद हैं। अस्पताल में कॉडियोलॉजिस्ट, ईएमओ, फिजिशियन, हड्डी रोग विशेषज्ञ, न्यूरो सर्जन, डेंटल, टीबी की बीमारी के विशेषज्ञों की आवश्यकता है। जो अभी तक पूरी नहीं हो सकी है। वर्तमान में सिर्फ एक फिजीशियन के सहारे मरीजों का इलाज किया जा रहा है। उनके छुट्टी पर जाने के बाद मरीजों को भटकना पड़ता है।

सीएचसी-पीएचसी भी बदहाल

जिला अस्पताल ही नहीं बल्कि सीएचसी-पीएचसी पर भी स्वीकृत पदों के सापेक्ष 70 फीसदी भी डॉक्टर तैनात नहीं है। लिहाजा मरीजों को बेहतर इलाज देने का दावा करने वाला स्वास्थ्य विभाग खुद ही विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है। आंकड़ों के अनुसार जिले की सीएचसी पीएचसी पर कुल 114 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, इनमें 45 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के हैं। 114 में सिर्फ 80 डॉक्टरों ने ज्वाइन किया था मगर 30 डॉक्टर बिना सूचना दिए ही गैरहाजिर चल रहे हैं। ऐसे में सरकारी अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों को बेहतर इलाज मिलने में अड़चन आती है। इस वजह से वह निजी अस्पतालों की ओर जाने को विवश रहते हैं।

एक या दो चिकित्सक कर रहे हैं इलाज
शासनादेश के अनुसार जिले में प्रत्येक पीएचसी-सीएचसी पर एक विशेषज्ञ चिकित्सक, एक फिजिशियन, एक सर्जन, एक एनेस्थेटिस्ट, एक रेडियोलॉजिस्ट और एक गायनोकोलॉजिस्ट तैनात होने चाहिए मगर, ज्यादातर सीएचसी पर एक चिकित्साधिकारी की ही तैनाती है। प्रमुख सीएचसी पर एक या दो विशेषज्ञ हैं। शेष कार्य एएनएम और पैरामेडिकल स्टाफ के भरोसे ही चल रहा है।

कोविड अस्पताल में नहीं हुई तैनाती

भले ही कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के बाद चौथी से निपटने का अभ्यास किया जा रहा हो मगर जिला महिला अस्पताल की एमसीएच विंग में 100 बेड कोविड अस्पताल में डॉक्टरों की मूल तैनाती नहीं हो सकी है। अब तक वहां के आईसीयू ओपीडी में चिकित्सक की तैनाती नहीं हो सकी है। इन्हीं डॉक्टरों को कोविड अस्पताल में लगाया जा रहा हैं। जिला अस्पताल के ही डॉक्टरों से ही वहां काम कराया जा रहा है। ऐसे में अगर चौथी लहर ने दस्तक दी तो विषम परिस्थितियां बन सकती हैं।

 

– जिले की आबादी                   करीब 24 लाख
–  सीएचसी- पीएचसी                    29

– चिकित्सक के पद स्वीकृत           114
-चिकित्सक तैनात                         50,  शेष नहीं ले रहे चार्ज
– प्रतिदिन दो हजार होती है जिला अस्पताल की ओपीडी।
– जिला अस्पताल में स्वीकृत 27 पद के सापेक्ष 16 चिकित्सक।

कोरोना महामारी के दौरान सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को हाईटेक किया जा चुका है मगर, डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। शासन में पत्राचार किया जा चुका है। डॉक्टर नहीं मिल पा रहे हैं। स्टाफ मिलने के बाद ही समाधान हो सकेगा। —डॉ. आलोक कुमार, सीएमओ।

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