बाराबंकी: फाग के राग से गूंजने लगी चौपालें, सुबह शाम घरों में गाए जाते हैं होली गीत

बाराबंकी: फाग के राग से गूंजने लगी चौपालें, सुबह शाम घरों में गाए जाते हैं होली गीत

बाराबंकी। बसंत की विदाई बेला चूनर ओढ़े सरसों के खेत और बागों में कोयल की कूक। ऐसे मद मस्त माहौल में जब फाग का राग कानों में मिठास घोलता है तो तो बहारों की मादकता कई गुना बढ़ जाती है। गांव में अपनी लोक संस्कृति की छटा निराली होती है। अपनी कला का प्रदर्शन करने …

बाराबंकी। बसंत की विदाई बेला चूनर ओढ़े सरसों के खेत और बागों में कोयल की कूक। ऐसे मद मस्त माहौल में जब फाग का राग कानों में मिठास घोलता है तो तो बहारों की मादकता कई गुना बढ़ जाती है। गांव में अपनी लोक संस्कृति की छटा निराली होती है। अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए पुरुष व महिलाएं होली के एक पखवाड़े पहले से ही फाग गाना शुरू कर देते हैं । गांव में ये परंपरा अभी भी जीवंत है। होली के उपलक्ष में एक पखवारे पूर्व ही शाम होते ही लोक गायक अपनी रागिनी के सूर छेड़ देते हैं।

यही युवा पूरे जोश से देर रात तक होली गीतों का आनंद लेते रहते हैं। तो महिलाएं अपने घरों में एकत्र होकर होली के गीतों से उसका स्वागत करती हैं। नवविवाहिताएं जिनके पति परदेस कमाने गए हैं। वह विरह की आग में जलती हुई होली गीत गाकर उनके आगमन की प्रतीक्षा करती है। जिनके पिया रूठ गए हैं वह उन्हें मनाने के लिए मनुहार गीत गाती है। नई नवेली अपने पिया की याद में कहती है-

अबकी होली पिया लै चलौ संग मरूगै तोरे गुलाल, अब ना मैं बारी रही, उमरिया हो गई अट्ठारह साल। वही प्रेयसी कहती है कि-डालने अइहौ होली के बहाने , दोनों होंगे रंगीन सुन दीवाने। सुबह गांव के होली पं.चन्द्र प्रकाश मिश्र कहते हैं हम अपनी गायकी में जहां लोक संस्कृति का ध्यान रखते हैं। वहीं युवाओं की धड़कन पढ़ाने वाले भी गीत गाते हैं। होली के मौसम में प्रभात दीक्षित, मधुकर त्रिवेदी, राज नादान लहरी , कौशलेंद्र शरण दीक्षित सहित मुस्लिम समुदाय से मो. रईस मोहम्मद इस्लाम भी इस होली गीतों से क्षेत्र में लोक कला की पहचान बनाए हैं।

होली में अली मिले राम मिले रमजान….

बनीकोडर। होली में अली मिले राम मिले रमजान । विश्व गुरु हो जाएगा फिर से हिंदुस्तान प्रख्यात कवि डॉ सुरेश अवस्थी की यह पंक्तियां चरितार्थ होती है यहां के मुस्लिम हिन्दू मिश्रित आबादी ग्राम जरौली में। जहां हुरियारे गालियां देकर फगवा वसूलते। वहीं होली की स्थापना से लेकर सफाई और होली मिलन तक में मुस्लिम समुदाय के लोग भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ देते हैं। यहां की होली सच्चे अर्थों में आपसी सद्भाव की मिसाल है।

होली के विभिन्न रंग देवा और फतेहपुर तहसील क्षेत्र में भी देखने को मिलते हैं। इनमें मुस्लिम हिन्दू मिश्रित आबादी जरौली की होली खास है। बनीकोडर के ग्राम जरौली में सिर्फ सात सौ से हजार मुस्लिम यहां की कुल आबादी पांच हजार है। लेकिन यहां के मुस्लिम परिवार हिंदुओं को होली का पूरा सहयोग देते हैं। होली के दिन यहां खास तरह का जुलूस निकलता है।

शाम तक जुलूस चलता है

बैंड बाजे के साथ निकलने वाले जुलूस में लोगों की अच्छी खासी शिरकत रहती है और लोग गालियां देकर फगुआ (नेग) वसूलते हैं। जो भगवा देने से मना करता है उससे होरियारे ठिठोली करते हैं। या हुड़दंग होली वाले दिन सुबह 9:00 बजे से शुरू होकर पड़ोस के गांव में पहुंचता है। इसके बाद शाम तक जुलूस चलता है।

जुलूस में शामिल लोगों का मुंह मीठा कराने के अलावा मुस्लिम समुदाय के लोग उनके घर जाकर गुझिया भी खाते हैं। होली की स्थापना से लेकर इसमे घास फूस और लकड़ी डालने तक ले मुस्लिम पूरा साथ निभाते हैं। आपसी सौहार्द का प्रतीक इस होली की चर्चा जिले भर में रहती है। बुजुर्ग बताते हैं भारत में अंग्रेजों के जमाने से यह संस्कृति यहां के लोगों ने जिंदा कर रखी है।

लोकगायिका प्रियंका पान्डे सोशल मीडिया पर मचा रही धमाल

जहां एक ओर पुरातन संस्कृति और लोकगीतों के प्रति लोगों का आग्रह कम होता जा रहा है वहीं शहर की चर्चित लोकसंगीत गायिका प्रियंका पांडेय होली को लेकर तरह तरह के लोकगीतों के माध्यम से देश विदेश तक अपनी संस्कृति को पहुंचाने का पुरजोर प्रयास कर रही है और लोगों द्वारा काफी सराही जा रही है ।

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