यहां जलमग्न है द्वापरयुग में बना मां कचुला देवी मंदिर, चर्म रोग और सर्पदोष से मुक्ति पाने को लगता है श्रद्धालुओं का तांता

यहां जलमग्न है द्वापरयुग में बना मां कचुला देवी मंदिर, चर्म रोग और सर्पदोष से मुक्ति पाने को लगता है श्रद्धालुओं का तांता

देवभूमि उत्तराखंड की महिमा अपरंपार है। यहां की प्राकृतिक वादियां हों या फिर देवों के धाम, देश-दुनिया के लोगों को आकर्षित करते हैं। आत्मिक शांति के बीच प्रकृति का दीदार और शक्तिपीठों के दर्शन कर हर कोई खुद को खुशनसीब मानता है। हिमालय की चोटियों पर स्थित देवस्थलों की ख्याति के बारे में आपने बहुत …

देवभूमि उत्तराखंड की महिमा अपरंपार है। यहां की प्राकृतिक वादियां हों या फिर देवों के धाम, देश-दुनिया के लोगों को आकर्षित करते हैं। आत्मिक शांति के बीच प्रकृति का दीदार और शक्तिपीठों के दर्शन कर हर कोई खुद को खुशनसीब मानता है।

हिमालय की चोटियों पर स्थित देवस्थलों की ख्याति के बारे में आपने बहुत सुना होगा लेकिन नैनीताल जिले के भीमताल में देवी मां का एक मंदिर ऐसा भी है जो पूरी तरह से जलमग्न है। कचुला देवी मंदिर भीमताल में सरोवर के पूर्वी तट पर विद्यमान है। यहां साल भर श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है। लेकिन नवरात्रि में मां के दर्शनों के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है।

मां कचुला देवी मंदिर का प्रवेश द्वार।

चर्म रोग और सर्पदोष से मुक्ति को पहुंचते हैं लोग
मंदिर से जुड़ी आस्था के कई कारण हैं। ऐसा कहा जाता है कि चर्म रोग से ग्रसित व्यक्ति अगर सच्चे मन से मां कचुला देवी मंदिर के पास जल में स्नान कर ले तो वह रोग मुक्त हो जाता है। यही नहीं सर्पदोष से मुक्ति के लिए मां के दरबार में अर्जियां लगती हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि मां के दरबार में आकर हर बिगड़ा काम बन जाता है। ग्रहों की बिगड़ी चाल भी मां के आशीर्वाद से ठीक हो जाती है।

द्वापरयुग में हुई मंदिर की स्थापना
मान्‍यता है कि कचुला देवी मंदिर की स्थापना द्वापरयुग में नाग वंशियों ने कराई थी। इस मंदिर के ठीक ऊपर स्थित चोटी पर नागराज कड़कोटक का प्राचीन मंदिर है। कड़कोटक की चोटी समुद्र सतह से करीब 2200 मीटर की ऊंचाई में स्थित है। भीमताल से कड़कोटक की दूरी करीब चार किमी है। स्कंद पुराण के मानस खंड में कड़कोड़क नाग का वर्णन मिलता है। कचुला देवी नागराज की माता के रूप में जानी जाती हैं।

जलमग्न मां कचुला देवी मंदिर को दर्शाने के लिए श्रद्धालुओं ने लगाया ध्वज।

मां कचुला के पास नागराज कड़कोटक आते हैं दूध पीने
क्षेत्र के लोग बताते हैं कि नागराज कड़कोटक प्रतिदिन मां का दूध पीने यहां आते थे। कचुला देवी मंदिर में आज भी दो जल धाराएं निकलकर सरोवर के जल में समा जाती हैं। इसके जल को मानसरोवर के समान माना जाता है। मान्यता है कि सरोवर के पवित्र जल में स्नान करने से चर्म रोग समेत अन्य बीमारियां दूर हो जाती हैं। 2012 में कई वर्षों के बाद कचुला देवी के जलमग्न मंदिर के दर्शन हुए थे।

भीमताल झील का मनोहारी नजारा।

जलमग्न मंदिर के स्थान पर लगाया ध्वज
वर्तमान में श्रद्धालुओं ने जलमग्न कचुला देवी मंदिर के स्थान पर मंदिर को दर्शाने के लिए एक ध्वज लगा दिया है। वैसे तो साल भर मां के दर्शनों के लिए यहां देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं। लेकिन नवरात्रि व सावन के महीने में यहां सुबह से शाम तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। महिला श्रद्धालु अटल सौभाग्य और सुख शांति के लिए पंचमी के दिन कचुला देवी मंदिर में सुंदरकांड का पाठ करने को उमड़ती हैं।