विधानसभा चुनाव 2022: योगी का चेहरा नहीं सरकार का कामकाज भी परखेंगे मतदाता
लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने प्रदेश में पिछला विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति के सहारे लड़ा। जिसका फायदा भी पार्टी को अप्रत्याशित रूप से मिला। मोदी-शाह की जोड़ी ने प्रदेश में भाजपा को 14 साल बाद सत्ता दिलाई लेकिन इस बार योगी आदित्यनाथ का चेहरा …
लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने प्रदेश में पिछला विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति के सहारे लड़ा। जिसका फायदा भी पार्टी को अप्रत्याशित रूप से मिला। मोदी-शाह की जोड़ी ने प्रदेश में भाजपा को 14 साल बाद सत्ता दिलाई लेकिन इस बार योगी आदित्यनाथ का चेहरा और उनकी सरकार के कामकाज को मतदाता कसौटी पर कसेंगे। आसन्न चुनावों में अमित शाह की रणनीति के साथ मोदी-योगी सरकार के कामकाज पर वोट पड़ेंगे। ऐसे में 45 फीसदी वोट हासिल करने नामुमकिन तो नहीं लेकिन कठिन जरूर है।
प्रदेश में भाजपा का कोर वोटर महज 15 से 20 फीसदी
पिछले पांच विधानसभा चुनावों को देखे तो भाजपा का प्रदेश में कोर वोटर महज 15 से 20 फीसदी ही रहा। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में मोदी-शाह के करिशमें को अपवाद माने तो वर्ष 2002 में हुए चुनावों में पार्टी को 20.8%, वर्ष 2007 में 16.97% , वर्ष 2012 में 15% वोट ही हासिल हो सके थे। हालांकि वर्ष 2017 के पिछले चुनाव में भाजपा के मतप्रतिशत में जबरदस्त उछाल आया था और यह 39.67% तक पहुंच गया और पार्टी को 312 सीटें हासिल हुई। इस चुनाव में कुल मतदान 61 फीसदी हुआ था। आंकड़ों के लिहाज से इस चुनाव में 20 फीसदी कोर वोटर के अलावा भाजपा ने 20 फीसदी अतिरिक्त वोट भी हासिल करने में सफल रही थी।
बसपा, सपा और कांग्रेस के गठबंधन पर टिकी निगाहें
पिछले चुनाव में बसपा और समाजवादी पार्टी का गठबंधन था जबकि कांग्रेस अकेले मुकाबले में थी। उस दौरान चूंकि समाजवादी पार्टी सत्ता में थी, जिसकी वजह से उसके गठबंधन को सत्ता विरोधी लहर से भी जूझना पड़ा था। वहीं, इस बार अभी तक सपा, बसपा और कांग्रेस के बीच किसी तरह का गठबंधन नहीं हुआ है। जबकि सत्ता में रहने के कारण भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का सामना कर पड़ सकता है।
सुशासन और हिंदुत्व ही होगा मुख्य चुनावी मुद्दा
पिछले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के समक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का कामकाज था। उस दौरान भले ही नोटबंदी और जीएसटी को लेकर विरोधी दलों ने काफी होहल्ला मचाया हो लेकिन हो प्रदेश की जनता केंद्र की मोदी और प्रदेश की अखिलेश सरकार के कामकाज की तुलना करती थी। इसलिहाज से अखिलेश काफी पीछे थे। जिसकी वजह से भाजपा की सरकार बनाने के लिए प्रदेश के लोगों को भाजपा ही उपयुक्त लगी लेकिन इस बार भाजपा की सरकार के कामकाज का भी लोग मतदान से पूर्व आकलन करेंगे। ऐसे में एक बार फिर मोदी और शाह के मुकाबले में योगी और उनकी सरकार के मंत्री एवं विधायकों के कामकाज का आकलन होगा। जिसका खामियाजा भी पार्टी को उठाना पड़ सकता है।
योगी की छवि भी मतदाताओं पर डालेगी असर
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि और उनकी सरकार का कामकाज भी लोगों के सामने है। इस मामले में अपने प्रतिद्वंदी अखिलेश यादव और मायावती के मुकाबले वह फिलहाल काफी आगे हैं। प्रदेश में विशेषकर पूर्वांचल और अवध क्षेत्र में जहां योगी की कट्टर हिंदूवादी नेता की छवि युवाओं को आकर्षित कर रही हैं। वहीं बुंदेलखंड और सेंट्रल यूपी में राममंदिर निर्माण, माफियाओं पर हुई कार्रवाई के प्रशंसकों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। वहीं दूसरी तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था पर प्रभावी नियंत्रण और सरकार के कामकाज को लेकर भी ज्यादा नाराजगी नहीं है। ऐसे में 45 प्रतिशत वोट हासिल करना असंभव नहीं है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भाजपा ही नहीं बल्कि संघ परिवार भी जुटा हुआ है।
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