नहाय-खाय से शुरू होगा छठ का महापर्व, जानें नियम और विधि

कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है। इस व्रत में भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। यह व्रत संतान की लंबी उम्र, उज्जवल भविष्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए करते हैं। इस व्रत को महिलाओं सहित पुरूषों भी रखते हैं। यह व्रत चौबीस …
कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है। इस व्रत में भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। यह व्रत संतान की लंबी उम्र, उज्जवल भविष्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए करते हैं। इस व्रत को महिलाओं सहित पुरूषों भी रखते हैं। यह व्रत चौबीस घंटो से अधिक समय तक निर्जला रखा जाता है। यह पर्व चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तिथि को प्रातः सूर्योदय के समय अर्घ्य देने के बाद आरंभ किया जाता है।
व्रत और तारीख
इस बार एवं पर्व का आरंभ 8 नवंबर दिन सोमवार को नहाय-खाय से आरंभ होगा इसके अगले दिन यानी 9 नवंबर दिन मंगलवार को खरना करके व्रत शुरू किया जाएगा और 10 नवंबर दिन बुधवार को छठ व्रत मुख्य पूजन किया जाएगा। इसके अगले दिन सप्तमी 11 नवंबर दिन बृहस्पतिवार को प्रातः सूर्योदय के समय जल देकर छठ व्रत का समापन किया जाएगा।
व्रत के नियम
व्रत धारण करने वाली महिलाएं जमीन पर सोती हैं। गेहूं और चावल को धाेकर सुखाया जाता है। गेहूं को चक्की पर पीसकर आटे से ठेकुआ बनाया जाता है। पिसे हुए चावल का लड्डू बनाकर छठी मैया को अर्पित किया जाता है। छठ व्रत में मुख्य प्रसाद ठेकुआ होता है। यह गेहूं के आटे, गुड़, देशी घी से अर्ध्य के लिए मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर बनाया जाता है। अर्ध्य दान गाय के दूध से करते हैं। इयके अलावा पूजा की साम्रगी में सामर्थ्य के अनुसार मौसमी फलों नारियल, पपीता, केला, सेब, कंद, अनार, सुथनी, ईख, सिंघाड़ा, शरीफा, कंदा, अनानास, संतरा, नीबू, पत्तेदार हल्दी व अदरक, कोहड़ा, बोरो, मूली, अल्ता के पात, पानी सुपारी, मेवा आदि और गाय के दूध से अर्ध्य दान किया जाता है।
छठ पूजा का पहला दिन- नहाय-खाय
छठ पर्व में साफ-सफाई का विशेष महत्व होता है। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को छठ पर्व का प्रथम दिन होता है। इस दिन व्रती प्रातः काल जल्दी उठकर साफ-सफाई करते हैं और स्नानादि करने के पश्चात छठ पर्व का आरंभ किया जाता है।
छठ पूजा का दूसरा दिन- खरना
कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को छठ व्रत का दूसरा दिन होता है। इस दिन को खरना या लोहंडा भी कहा जाता है। इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर साठी के चावल, दूध और गुड़ की खीर बनाई जाती है। संध्या के समय नदी या सरोवर पर जाकर सूर्य को जल दिया जाता है और इसके बाद छठ का कठिन व्रत आरंभ हो जाता है।
छठ पूजा का तीसरा दिन
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानि छठ पूजा के तीसरे दिन व्रती महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं। साथ ही छठ पूजा का प्रसाद तैयार करती हैं। शाम के समय नए वस्त्र धारण कर परिवार संग किसी नदी या तलाब पर पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देते हैं। तीसरे दिन का निर्जला उपवास रातभर जारी रहता है।
छठ पूजा का चौथा दिन
छठ पूजा के चौथे दिन पानी में खड़े होकर उगते यानी उदयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसे उषा अर्घ्य या पारण दिवस भी कहा जाता है। अर्घ्य देने के बाद व्रती महिलाएं सात या ग्यारह बार परिक्रमा करती हैं। इसके बाद एक दूसरे को प्रसाद देकर व्रत खोला जाता है। 36 घंटे का व्रत सूर्य को अर्घ्य देने के बाद तोड़ा जाता है। इस व्रत की समाप्ति सुबह के अर्घ्य यानी दूसरे और अंतिम अर्घ्य को देने के बाद संपन्न होती है।
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