बरेली: इस साल विघ्नहर्ता नहीं हर पाए मूर्तिकारों के विघ्न

बरेली, अमृत विचार। गणेश चतुर्थी शुक्रवार को यानि आज है लेकिन इस साल विघ्नहर्ता भगवान गणेश मूर्तिकारों के विघ्न नहीं हर पाए। पांच महीने से मूर्तिकार कर्ज लेकर तैयारियों में जुटे थे। उनकी माने तो गणेश चतुर्थी के लिए काफी कम मूर्तियों की बिक्री हुई है। जबकि, इस साल से ज्यादा तो पिछले साल आमदनी …
बरेली, अमृत विचार। गणेश चतुर्थी शुक्रवार को यानि आज है लेकिन इस साल विघ्नहर्ता भगवान गणेश मूर्तिकारों के विघ्न नहीं हर पाए। पांच महीने से मूर्तिकार कर्ज लेकर तैयारियों में जुटे थे। उनकी माने तो गणेश चतुर्थी के लिए काफी कम मूर्तियों की बिक्री हुई है। जबकि, इस साल से ज्यादा तो पिछले साल आमदनी हुई थी। इसलिए इस बार ज्यादा मूर्तियां बनाईं लेकिन मूर्तियों के ऑर्डर तक कम मिले। अगर आज मूर्तियां नहीं बिकीं तो अगले साल तक मूर्तियों को संभालकर रखना होगा।
मूर्तिकारों ने बताया कि कोरोना से पहले उन्हें शहर में ही अच्छी संख्या में मूर्ति बनाने के ऑर्डर मिल जाते थे, लेकिन पिछले साल से ऑर्डर मिलना कम हो गए हैं। कोरोना संक्रमण के कारण पिछले साल गणेश महोत्सव मनाने की अनुमति नहीं थी लेकिन इस बार कोविड गाइड लाइन का पालन करते हुए गणेश महोत्सव मनाने की अनुमति है। फिर भी मूर्तियां नहीं बिक रही हैं।
बड़ी मूर्ति बनाने में 1200 रुपये की आती है लागत
मूर्तिकार ने बताया कि एक 4 फुट बड़ी मूर्ति को तैयार करने में 1200 रुपये की लागत आती है जिसमें एक मूर्ति बनाने के लिए चार आदमी लगते हैं तब जाकर कहीं मूर्ति तैयार की जाती है। बरसात से बचाने के लिए पन्नी भी खरीदनी पड़ती है। इतनी मेहनत के बाद मूर्ति को सुरक्षित तैयार कर पाते हैं। इसके बाद भी ग्राहक 2000 रुपये में भी मूर्ति खरीदना नहीं चाहते।
कच्चे कलर से तैयार करते हैं मूर्तियां
गणेश चतुथी पर मूर्ति का विसर्जन रामगंगा नदी में किया जाता है। पहले मूर्तियों में केमिकल वाले रंग का उपयोग किया जाता था। जिसके कारण नदियों का पानी दूषित होने के कारण जलीय जीवों को नुकसान होने लगा। इस कारण मूर्ति बनाने में कच्चे रंग का उपयोग कर रहे हैं। यह रंग 1000 रुपये किलो मिलता है जो राजस्थान से मंगाया जाता है। केमिकल वाला रंग 200 से 300 रुपये किलो में ही मिल जाता है। उन्होंने बताया कि पिछले साल भी कच्चे रंग से ही मूर्तियां तैयार की थीं।
पिछले दो सालों से हमें बहुत दिक्कत हो रही है। पांच महीने पहले इसी आस में मूर्ति बनाई थीं कि इस साल कोरोना कम है तो ज्यादा मूर्तियां बिकेंगी लेकिन इस साल से तो ज्यादा पिछले साल मूर्ति बिकी थीं। -संग्राम सिंह, मिनी बाईपास
पांच महीने से मूर्ति तैयार कर रहे हैं लेकिन मूर्तियों को खरीदने बहुत कम लोग आ रहे हैं। ऐसे में बची मूर्तियों का रखरखाव करने में बहुत दिक्कत होगी। -शिवम, मिनी बाईपास
इस साल मूर्ति की बिक्री कम हो रही है और आर्डर भी कम आए हैं। इस बार चार, पांच मूर्तियों के ही ऑर्डर आए थे। पिछले साल तो इससे ज्यादा मूर्तियां बिक गई थीं। -राजू, कुदेशिया पुल के नीचे
इस बार बहुत हल्की बिक्री हो रही हैं। आज जितनी मूर्ति बिक जाएंगी उतनी ही बिक पाएंगी। इस साल ऑर्डर भी नहीं आया। पिछले साल तो मेरी सारी मूर्तियां बिक गई थीं। -रामस्वरूप, कुदेशिया पुल के नीचे
इस बार बहुत कम लोग मूर्तियां खरीदने आ रहे हैं। इस साल पिछले साल से ज्यादा मूर्तियां तैयार की थीं लेकिन पिछले साल की तूलना में इस साल मूर्तियां बिक पाना मुश्किल है। बची हुई मूर्तियों को पूरे साल सुरक्षित रखने में बहुत दिक्कत होती है। -महेंद्र, पीलीभीत बाईपास रोड
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