कल से पुन: खुलेगा श्रद्धालुओं के लिए पशुपतिनाथ मंदिर

काठमांडू। नेपाल में विश्वप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर शुक्रवार से पुन: श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा। कोरोना महामारी के कारण पशुपतिनाथ मंदिर को गत अप्रैल के अंत में दर्शन के लिए बंद कर दिया गया था। पशुपति क्षेत्र विकास ट्रस्ट(पीएडीटी) के कार्यकारी निदेशक डॉ घनश्याम खातीवाड़ा ने बताया कि कोरोना वायरस के मामलों में लगातार गिरावट …
काठमांडू। नेपाल में विश्वप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर शुक्रवार से पुन: श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा। कोरोना महामारी के कारण पशुपतिनाथ मंदिर को गत अप्रैल के अंत में दर्शन के लिए बंद कर दिया गया था। पशुपति क्षेत्र विकास ट्रस्ट(पीएडीटी) के कार्यकारी निदेशक डॉ घनश्याम खातीवाड़ा ने बताया कि कोरोना वायरस के मामलों में लगातार गिरावट को ध्यान में रखते हुए मंदिर को कल सुबह 05:30 बजे फिर से खोल दिया जायेगा।
चूंकि कोरोना का खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है , इसलिए भीड़ होने से रोकने के लिए दोपहर एक बजे तक ही मंदिर खोले जाने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने बताया कि मंदिर में प्रवेश के दौरान श्रद्धालुओं को मास्क पहनना और संबंधित अधिकारियों द्वारा निर्धारित स्वास्थ्य प्रोटोकॉल का पालन करना अपरिहार्य होगा। मंदिर में एक बार में 25 श्रद्धालुओं को ही प्रवेश की अनुमति होगी।
नेपाल में बागमती नदी के तट पर स्थित है
श्री पशुपतिनाथ मंदिर, नेपाल की राजधानी काठमांडू से 3 किमी उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित है। यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल भगवान पशुपतिनाथ का मंदिर नेपाल में महादेव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है।
भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख
पशुपति मंदिर में चारों दिशाओं में एक मुख है और एक मुख ऊपर की दिशा में भी है। हर मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल मौजूद है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग के पांचों मुखों के गुण अलग-अलग हैं। जो मुख दक्षिण की ओर है उसे अघोर मुख कहा जाता है. पश्चिम की ओर मुख को सद्योजात, पूर्व और उत्तर की ओर मुख को तत्वपुरुष और अर्द्धनारीश्वर कहा जाता है। जो मुख ऊपर की ओर है उसे ईशान मुख कहा जाता है। यह निराकार मुख है। यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख माना जाता है।
पांडवों से जुड़ा है केदारनाथ धाम
इस मंदिर में भोलेनाथ के प्रकट होने के पीछे भी एक अद्भुत पौराणिक कथा है। इसके अनुसार जब महाभारत के युद्ध में पांडवों द्वारा अपने ही रिश्तेदारों का रक्त बहाया गया तब भगवान शिव उनसे बेहद क्रोधित हो गए थे। श्रीकृष्ण के कहने पर वे भगवान शिव से मांफी मांगने के लिए निकल पड़े। गुप्त काशी में पांडवों को देखकर भगवान शिव वहां से विलुप्त होकर एक अन्य स्थान पर चले गए थे। उस स्थान को ही आज केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है।
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