गोरखपुर: पढ़ाई को लेकर जुनून, रोजाना नाव चलाकर पढ़ने जाती है छात्रा

गोरखपुर। जिले में राप्ती, रोहिन ,गोर्रा नदियों का तांडव और ऊपर से बाढ़ में उफनाती नदी के लहरों के बीच बसे गांव।ऐसे में जिंदगी बचाने की कशमश में दिन और रात कब बीत जा रहे कुछ पता नहीं। लेकिन इसी बाढ़ ग्रस्त इलाके में पढाई को लेकर जोश से लबरेज एक बिटिया प्रतिदिन नाव खेकर …
गोरखपुर। जिले में राप्ती, रोहिन ,गोर्रा नदियों का तांडव और ऊपर से बाढ़ में उफनाती नदी के लहरों के बीच बसे गांव।ऐसे में जिंदगी बचाने की कशमश में दिन और रात कब बीत जा रहे कुछ पता नहीं। लेकिन इसी बाढ़ ग्रस्त इलाके में पढाई को लेकर जोश से लबरेज एक बिटिया प्रतिदिन नाव खेकर लगभग एक किलोमीटर की दूरी तय कर स्कूल जाती है। बात कर रहे है जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर के फासले पर बसे बहरामपुर गॉंव के 11वीं की छात्रा संध्या की, जिसके जज्बे को हर कोई सलाम कर रहा है।
संध्या उन बच्चों और उनके माता-पिता के लिए प्रेरणास्रोत है, जो मुसीबतों से घबराकर घर बैठ जाते हैं। बाढ़ से घर घिरा होने और घर के अंदर तक पानी लगा होने पर भी संध्या का हौसला कम नहीं हुआ। वो अपने सपने को पूरा करने के लिए अन्य लड़कियों की तरह बाढ़ से डरकर घर नहीं बैठना चाहती है। वो नदी की इन्ही लहरों से लड़कर अपने सपनों को पूरा करना चाहती है। यही वजह है कि अकेले ही नाव खेकर वो स्कूल जाने के लिए उफनाती राप्ती में निकल पड़ी।
गोरखपुर शहर के निचले इलाके से लेकर ग्रामीण क्षेत्र भी बाढ़ की चपेट में है। यही वजह है कि जब स्कूल-कालेज खुले, तो बहुत से अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजने की हिम्मत नहीं की। गोरखपुर के बहरामपुर दक्षिणी की रहने वाली संध्या साहनी ने गांव और रास्ते के बाढ़ग्रस्त होने और कोरोना के डर से पढ़ाई से समझौता नहीं किया। वह पढ़-लिखकर रेलवे में नौकरी करना चाहती हैं।
15 साल की संध्या शहर के बैंक रोड के अयोध्या दास राजकीय कन्या इंटर कालेज में कक्षा 11वीं की छात्रा है। संध्या चाहती हैं कि वह रेलवे की नौकरी करे। उनके वहां पर बांध बना दिया जाए, तो उनके साथ कई बच्चियों को बाढ़ की वजह से स्कूल नहीं छोड़ना पड़ेगा।उसकी फोटो वायरल होने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की कॉल आने और घर आने का वायदा करने पर वो काफी खुश है। वो कहती हैं कि वो आएं और देखें कि वो किस हाल में रह रही हैं।
दिलीप साहनी के तीन बेटों में इकलौती बेटी संध्या है।पिता दिलीप साहनी बताते हैं कि वे पढ़े-लिखे नहीं हैं। वे बढ़ई का काम करके घर का खर्च चलाते हैं। बाढ़ग्रस्त होने की वजह से उनके घर की हालत बुरी है। बाढ़ की वजह से कहीं बाहर न निकल पाने के चलते काम धंधा भी पूरी तरह से चौपट है। लेकिन वो इकलौती बेटी को पढ़ा-लिखाकर कुछ बनाना चाहते हैं। वे कहते हैं कि वे ज्यादा नहीं जानते हैं कि वो क्या बनना चाहती हैं, लेकिन उसका सपना पूरा हो जाए।