सतर्क रहने की जरूरत

सतर्क रहने की जरूरत

पूरी दुनिया में आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है। आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या और चुनौती बना हुआ है। 22 मार्च को मॉस्को के बाहरी इलाके में स्थित क्रोकस सिटी हॉल पर हुए आतंकवादी हमले में कम से कम 137 लोग मारे गए।

वैश्विक स्तर पर खौफनाक आतंकी संगठन माने जाने वाले इस्लामिक स्टेट खुरासान ने रूस में की गई गोलीबारी की जिम्मेदारी ली। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घोषित किए गए गुट ‘इस्लामिक स्टेट’ का ही अंग है। इस चरमपंथी संगठन को ‘आईएसके’ कहा जाता है जो इस्लामिक स्टेट खुरासान का संक्षिप्त रूप है।

इसका पूरा ध्यान अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान पर केंद्रित है। खुरासान एक समय फारसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था, जो अब ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई मुल्कों में विभाजित है। इसी खुरासान के हवाले से आइसिस से संबद्ध रहा आतंकी संगठन ‘आईएसआईएस-के’ का जन्म हुआ।

सीरिया युद्ध के समय दुनिया को बताया गया कि इनका सफाया किया जा चुका है। मगर, यह एक धोखा था। ये ऐसे आतंकी हैं, जो पाकिस्तान-अफगानिस्तान, सेंट्रल एशिया और दुनिया के विभन्न देशों में पैर पसार चुके हैं। विभिन्न सरकारें और एजेंसियां इनका दुरुपयोग करने में लगी हैं।

ऐसे में क्या भारत को आइसिस-खुरासान से सतर्क रहने की जरूरत नहीं है। मास्को में हुए आतंकी हमले से भारत को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है। आईएस से निपटने के लिए विभिन्न देशों को उन भू-राजनीतिक स्थितियों पर ध्यान देने की जरूरत है जो आईएस को फिर से संगठित होने में मदद कर रही हैं।

जब तक तालिबान विविध आबादी वाले कट्टरपंथी अफगानिस्तान पर अपना एकमात्र पश्तूनों वाला शासन जारी रखेगा और पश्चिम एशिया के कुछ हिस्सों में अस्थिरता, युद्ध एवं अराजकता का माहौल बना रहेगा, तब तक आईएस जैसे समूह फलने-फूलने और हमले करने के रास्ते ढूंढते रहेंगे। 

आतंकवाद को समाप्त करने के लिए वैश्विक स्तर पर ठोस व साझा प्रयास करने की जरूरत है। इसमें आतंकी वित्तपोषण और इससे संबद्ध चुनौतियों के चलते हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकवादियों का समर्थन करने वाले देशों को जवाबदेह ठहराया जाए और इस समस्या से संगठित तरीके से निपटा जाए।

आतंकवाद को वैश्विक घटना मानने के बावजूद आतंकवाद की अंतर्राष्ट्रीय रूप से स्वीकृत परिभाषा देने के लिए पूर्व में किए प्रयास बेकार साबित हुए हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर आतंकवाद की चुनौती को परास्त करना चाहिए। आतंकवाद की एक सार्वभौमिक परिभाषा को स्वीकार करना और आतंकवाद के प्रायोजक राष्ट्रों पर वैश्विक प्रतिबंध लगाना शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।