यूपी चुनाव: हमेशा चौंकाने वाले रहे हैं हैदरगढ़ सीट के नतीजे, इस बार आसान नहीं होगी भाजपा की राह

यूपी चुनाव: हमेशा चौंकाने वाले रहे हैं हैदरगढ़ सीट के नतीजे, इस बार आसान नहीं होगी भाजपा की राह

हैदरगढ़/बाराबंकी। राजधानी लखनऊ और कांग्रेस के गढ़ अमेठी से सटी हैदर गढ़ विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं का रुख कभी इन दोनों क्षेत्रों से प्रभावित नहीं हुआ। यहां के नतीजे हमेशा चौकानेवाले रहे हैं। आजादी के बाद जब पूरे देश में कांग्रेस का परचम लहरा रहा था यहां के मतदाताओं ने 1957 में निर्दलीय उम्मीदवार को …

हैदरगढ़/बाराबंकी। राजधानी लखनऊ और कांग्रेस के गढ़ अमेठी से सटी हैदर गढ़ विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं का रुख कभी इन दोनों क्षेत्रों से प्रभावित नहीं हुआ। यहां के नतीजे हमेशा चौकानेवाले रहे हैं। आजादी के बाद जब पूरे देश में कांग्रेस का परचम लहरा रहा था यहां के मतदाताओं ने 1957 में निर्दलीय उम्मीदवार को जिता कर सदन में भेजा। यह सिलसिला 1962 तक बरकरार रहा। दो बार मुख्यमंत्री का क्षेत्र रहने के बावजूद यह क्षेत्र अत्यंत पिछड़ा हुआ है। यहां ना तो शिक्षा के क्षेत्र में समुचित काम हुआ और न ही स्वास्थ्य के ही क्षेत्र में।

यहां के छात्रों को विवश होकर या तो निजी विद्यालयों में प्रवेश कराना पड़ता है या फिर उन्हें राजधानी के विद्यालयों में एडमिशन के लिए जूझना पड़ता है। इस बार भारतीय जनता पार्टी ने अपने सिटिंग विधायक को टिकट न देकर दिनेश कुमार को चुनाव मैदान में उतारा है। जिसको लेकर विधायक बैजनाथ रावत की नाराजगी सामने आ रही है। उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक राम मगन रावत के साथ-साथ बहुजन समाज पार्टी के श्री चंद, कांग्रेस की उम्मीदवार उर्मिला कुमारी, आजाद समाज पार्टी के राम हेत निर्दलीय दयाशंकर संजय गौतम तथा आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार शिवानी से है।

1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का उम्मीदवार यहां से चुनाव जीत कर पहली बार विधानसभा में पहुंचा। लेकिन 1969 में कांग्रेस की हमीदा हबीबुल्लाह पहली बार इस सीट पर चुनाव जीती। 1974 में एक बार फिर यहां के मतदाताओं ने करवट ली और प्रांतीय और भारतीय क्रांति दल के उम्मीदवार को जिता कर सदन में भेजा। 1980 में कांग्रेस के सुरेंद्र नाथ उर्फ पुत्तू अवस्थी यहां से चुनाव जीते।

लेकिन अगला ही चुनाव 1989 में वे भाजपा के सुंदरलाल दीक्षित से हार गए। 1991 में सुरेंद्र नाथ अवस्थी चुनाव जीते। लेकिन 1997 में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के लिए यह सीट खाली कर दी। मुख्यमंत्री रहते राजनाथ सिंह ने 2002 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। 2003 में यहां से समाजवादी पार्टी से उम्मीदवार अरविंद सिंह गोप को चुनाव मैदान में उतरे और जीत हासिल की। वे 2012 तक यहां से विधायक रहे। 2012 में यह सीट सुरक्षित हो गई। 2012 के चुनाव में सपा के राम मगन रावत ने बसपा के रामनारायण को पराजित किया। 2017 में वे फिर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन उन्हें भाजपा के बैजनाथ रावत से पराजय का सामना करना पड़ा।

यह करेंगे फैसला

हैदरगढ़ के भाग्य का फैसला इस बार 348530 मतदाता करेंगे। जिनमें 182471 पुरुष तथा 166050 महिला मतदाताओं के साथ साथ नौ ट्रांसजेंडर भी मतदान करेंगे। यहां युवा मतदाताओं की संख्या इस बार बढ़ी है तो महिला मतदाताओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है।

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