चिंता की बात

चिंता की बात

देश के कई हिस्सों में अग्निपथ योजना के खिलाफ बेरोजगारों का आक्रोश अब हिंसक होता जा रहा है। विरोध प्रदर्शन का गुरुवार को दूसरा दिन रहा। चिंता की बात है कि बिहार में इस दौरान कई प्रदर्शनकारियों ने ट्रेनों में आग लगा दी और पथराव किया। कई विपक्षी राजनीतिक दलों और सैन्य विशेषज्ञों ने भी …

देश के कई हिस्सों में अग्निपथ योजना के खिलाफ बेरोजगारों का आक्रोश अब हिंसक होता जा रहा है। विरोध प्रदर्शन का गुरुवार को दूसरा दिन रहा। चिंता की बात है कि बिहार में इस दौरान कई प्रदर्शनकारियों ने ट्रेनों में आग लगा दी और पथराव किया। कई विपक्षी राजनीतिक दलों और सैन्य विशेषज्ञों ने भी इस योजना की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे सशस्त्र बलों के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। हालांकि इस योजना के व्यावहारिक व दूरगामी पहलुओं को लेकर विमर्श जारी है।

सरकार की मंशा स्पष्ट रूप से रक्षा वेतन और पेंशन के बढ़ते खर्च में कटौती करने की है। वहीं विरोध प्रदर्शन कर रहे युवा रोजगार की अस्थायी प्रकृति को लेकर चिंता जता रहे हैं। वे सेना भर्ती परीक्षा रद करने का विरोध भी कर रहे हैं। ध्यान दिया जाना चाहिए कि नोटबंदी, लॉकडाउन और कृषि कानून जैसे फैसलों के समय भी सवाल उठे थे कि इनमें विशेषज्ञों से सलाह नहीं ली गई। ये पहल हितधारकों से उपयुक्त चर्चा के बिना की गई थीं।

एक बार फिर यही सवाल उठ रहा है कि क्या सैन्य और रक्षा विशेषज्ञों से परामर्श किया गया था, या फिर पेंशन और बाकी खर्चों से बचने के लिए सैन्य नीति में अपने किस्म का प्रयोग किया गया है। कई सैन्य दिग्गजों की राय है कि अपर्याप्त प्रशिक्षित कर्मी भारतीय सेना के उच्च मानकों को कम कर सकते हैं, खासकर ऐसे समय में जब राष्ट्र को उसकी सीमाओं पर विरोधियों द्वारा चुनौती दी जा रही हो। पड़ोस में पाकिस्तान और चीन जैसे देश हैं, जिनसे सीमा विवाद एक अंतहीन समस्या की तरह चला आ रहा है। सशस्त्र बलों के पारंपरिक रेजिमेंटल ढांचे में भी व्यवधानों को लेकर चिंता है। हालांकि सरकार का कहना है कि सेना की रेजिमेंट प्रणाली में कोई बदलाव नहीं किया जा रहा है।

रेजीमेंट में विशिष्ट क्षेत्रों के साथ-साथ राजपूतों, जाटों और सिखों जैसी जातियों के युवाओं की भर्ती होती है। सवाल सैनिकों की दक्षता और प्रतिबद्धता का भी है। पूर्णकालिक और अंशकालिक सेवाओं में कुछ फर्क तो आ ही जाता है। सामान्य क्षेत्र की नौकरी में इस फर्क से होने वाले नुकसान को झेला जा सकता है। लेकिन जब बात देश की रक्षा की हो, तब यह फर्क भारी पड़ सकता है। इसलिए योजना के क्रियान्वयन में कोशिश हो कि सेना के लिए प्रशिक्षण, अनुशासन, समर्पण व युद्धक क्षमता की गुणवत्ता में गिरावट न आए। उम्मीद है कि केंद्र सरकार योजना के दूरगामी प्रभावों के अध्ययन के साथ अपने इस फैसले के हर पहलू को परखेगी।

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