कथा श्री गणेश के सिर काटने की
भारतीय पौराणिक कथाआों का अक्सर उपहास उडाया जाता है जब कि ये सांकेतिक हैं। कुछ उलटबांसियों जैसी। इनके गहरे अर्थ हैं और आत्मिक विकास के सूत्र समेटे हैं। ऐसी ही एक चर्चित कथा है गणेश का सिर काटने और उसकी जगह हाथी का सिर लगा दिये जाने की। कथा के अनुसार स्नान करने जा रहीं …
भारतीय पौराणिक कथाआों का अक्सर उपहास उडाया जाता है जब कि ये सांकेतिक हैं। कुछ उलटबांसियों जैसी। इनके गहरे अर्थ हैं और आत्मिक विकास के सूत्र समेटे हैं। ऐसी ही एक चर्चित कथा है गणेश का सिर काटने और उसकी जगह हाथी का सिर लगा दिये जाने की। कथा के अनुसार स्नान करने जा रहीं पार्वती ने अपनी संकल्प शक्ति से बुद्धि के देवता विनायक का निर्माण किया और कहा कि दरवाजे पर खडे रहो। किसी को अंदर न आने देना।
संयोग से से कुछ देर बाद पार्वती पति महादेव शंकर आ गये। वह अंदर जाने लगे तो गणेश ने उन्हें रोक दिया। अपने घर में प्रवेश से रोके जाने से हतप्रभ शंकर ने कहा तुम कौन हो ? मेरे घर में जाने से मुझ को ही रोक रहे हो। गणेश ने कहा कि मैं पार्वती का पुत्र हूं। गणेश मां की आज्ञा पालन में अडे रहे तो भगवान शिव ने उनका सिर काट लिया ।
रामायण में शिव को विश्वास और पार्वती को श्रद्धा का प्रतीक कहा गया है। श्रद्धा बुद्धि का सर्वोत्कृष्ट रूप है। गणेश हैं विवेक। विश्वास के बिना श्रद्धाजन्य विवेक अधूरा है। श्रद्धा और विश्वास के योग से ही विवेक में समग्रता व परिपूर्णता आती है। श्रद्धा- विश्वास जन्य विवेक ही महनीय है। विश्वास नहीं है तो श्रद्धा में बुद्धि -दोष है। विवेकरूपी गणेश को विचार करना चाहिए था कि ” किसी को न आने देना ” का वास्तविक मतलब क्या है ? किसी को पहचानने – समझने की चेष्टा न करने का दुराग्रह ठीक नहीं।
उस आदेश का अर्थ था कि अन्य कोई बाहरी न आने पाये।गणेश बुद्धि के देवता हैं । बुद्धि हमारे जीवन की पहरेदार है। उसकाकाम है हमारे जीवन में बुराइयों – असत को आने दे। तभी वह सार्थक है।वह अगर शिव को ही प्रवेश करने से रोके तो काम की नहीं है। गण्ेाश ने केवल शब्द को पकडा , उसके तात्पर्य को नहीं। ‘ किसी को’ में शंकर नहीं आते । वह तो गृह स्वामी हैं। अर्ध नारीश्वर है। आधे शंकर और आधे पार्वती। जो श्रद्धा- विश्वास की अभिन्नता को न समझे उसे बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता।
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