छठा नवरात्र: मां कात्यायनी को लगाएं शहद का भोग, कुंवारी कन्याओं को मिलेगा यह वरदान
नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम …
नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
पूजा विधि
नवरात्रि के छठे दिन यानि कि षष्ठी को स्नान कर लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनें। सबसे पहले घर के पूजा स्थान या मंदिर में देवी कात्यायनी की मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित करें। अब गंगाजल से छिड़काव कर शुद्धिकरण करें और मां की प्रतिमा के आगे दीपक रखें। अब हाथ में फूल लेकर मां को प्रणाम कर उनका ध्यान करें। इसके बाद उन्हें पीले फूल, कच्ची हल्दी की तीन गांठ अर्पित करें। धूप-दीपक से मां की आरती उतारें। आरती के बाद सभी में प्रसाद वितरित कर स्वयं भी ग्रहण करें।
भोग
मां कात्यायनी के पूजन में कदंब का पुष्प देवी को अर्पित करें। इन्हें लौकी का भोग लगाएं। देवी को प्रसन्न करने के लिए शहद और मीठे पान का भी भोग लगाया जाता है। शहद को मिट्टी के या चांदी के पात्र में रखकर मां को भोग लगाना उत्तम माना गया है।
मंत्र
– या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
– चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः॥
उत्तम और शीघ्र विवाह के लिए
गोधूली वेला के समय पीले अथवा लाल वस्त्र धारण करके मां कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए। इनको पीले फूल और पीला नैवेद्य अर्पित करें। इनको शहद और सुगंधित पुष्प अर्पित करने से शीघ्र विवाह के योग बनेंगे। मान्यता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से शादी में आ रही बाधा दूर होती है। इन्हें अर्पित की गई हल्दी की गांठ को पीले कपड़े में बांध कर युवती को अपने पास रखना चाहिए इससे भगवान बृहस्पति प्रसन्न होकर विवाह उत्तम का योग बनाते हैं।
कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे, उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने मां पराम्बा की उपासना करते हुए कई वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार धरती पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की जिस वजह से यह कात्यायनी कहलाईं। वहीं, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए यमुना नदी के तट पर मां कात्यायनी की ही पूजा की थी।
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