मुरादाबाद : विषम परिस्थितियों में मुकाम हासिल कर बेटियों के लिए प्रेरणा बनीं दीप्ति
मुरादाबाद,अमृत विचार। दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो रुकावटें कोई मायने नहीं रखतीं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है सिविल लाइंस निवासी दीप्ति यादव ने। उनके पिता लड़कियों की पढ़ाई के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने दीप्ति को पढ़ाई से रोकने के लिए उनकी किताबें तक जला दी थीं। मगर इसके बावजूद दीप्ति …
मुरादाबाद,अमृत विचार। दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो रुकावटें कोई मायने नहीं रखतीं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है सिविल लाइंस निवासी दीप्ति यादव ने। उनके पिता लड़कियों की पढ़ाई के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने दीप्ति को पढ़ाई से रोकने के लिए उनकी किताबें तक जला दी थीं। मगर इसके बावजूद दीप्ति ने हार नहीं मानी। विषम परिस्थितियों में कठिन परिश्रम से अपनी पढ़ाई पूरी करके ऐसा मुकाम हासिल किया। वह हजारों बेटियों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।
सिविल लाइंस स्थित सीएमओ कार्यालय में प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना की जिला कार्यक्रम समन्वयक दीप्ति यादव हजारों महिलाओं को प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना का लाभ दिलाने में मदद कर रही हैं। दीप्ति के अनुसार इस मुकाम तक पहुंचने में उनकी मां मिथलेश यादव का बड़ा योगदान है।
उन्होंने बताया कि उनके पिता स्वर्गीय खेमकरन यादव बेटियों की पढ़ाई-लिखाई के सख्त खिलाफ थे। वह चाहते थे कि बेटियां केवल घर का चूल्हा चौका संभालें। उनका विरोध इतना बढ़ गया था कि जब वह केवल छह साल की थीं तभी पिता ने उनकी सारी किताबें अंगीठी में डालकर जला दी थी। अपनी आंखों के सामने दीप्ति किताबों की हाेली जलते हुए देखती रही। बाद में उनकी मां ने किसी तरह पिता को समझाया। इसके बाद उन्हें पढ़ाई की इजाजत मिली।
आर्थिक स्थित बदहाल होने पर पढ़ाए ट्यूशन : दीप्ति यादव ने बताया कि कुछ समय बाद ही पिता को क्षय रोग हो गया। हालात ऐसे हो गए कि घर का खर्च भी चलाना मुश्किल हो गया। तब वह दसवीं कक्षा से छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगीं। बारहवीं के बाद उन्होंने खुद की कमाई से अपनी पढ़ाई भी की। इसके साथ ही नौकरी करके परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी भी उठाई। उन्होंने डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ, उत्तर प्रदेश टेक्निकल सपोर्टिव यूनिट व स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहीं कुछ संस्थाओं के साथ काम किया। मार्च 2019 से वह सीएमओ कार्यालय में अपनी सेवाएं दे रही हैं।
बेघर महिलाओं और बुजुर्गों के लिए आशियाना बनाना है सपना
बेघर महिलाओं और बुजुर्गों के लिए आवास बनाना उनका सपना है। ताकि अपनों के ठुकराए लोगों को सिर छिपाने का सहारा मिल सके। उन्हें इस बात का बेहद अफसोस है कि आज उनकी इस कामयाबी को देखने के लिए पिता जीवित नहीं हैं। मां तो उन्हें शुरू से ही बेटी नहीं बेटा ही मानती हैं।
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