बहस का मुद्दा

बहस का मुद्दा

उच्चतम न्यायालय ने देश में बढ़ती महंगाई और अर्थव्यस्था के कमजोर होने के लिए मुफ्त रेवड़ी बांटने की राजनीतिक दलों की मानसिकता को बड़ा कारण बताया है। इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है। गुरुवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि जो आम जनता टैक्स देती है। उसे …

उच्चतम न्यायालय ने देश में बढ़ती महंगाई और अर्थव्यस्था के कमजोर होने के लिए मुफ्त रेवड़ी बांटने की राजनीतिक दलों की मानसिकता को बड़ा कारण बताया है। इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है। गुरुवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि जो आम जनता टैक्स देती है।

उसे यह पूछने का हक है कि उनके टैक्स का उपयोग विकास के लिए होना चाहिए न कि चुनावी रेवड़ी पूरी करने में। अदालत ने कहा कि जनता का पैसा बुनियादी ढांचों के विकास पर खर्च होना चाहिए। बता दें कि देश में राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त में उपहार दिए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भाजपा के नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से याचिका दायर की गई है।

दायर याचिका में वोटरों को लुभाने के लिए चुनाव में जनता से मुफ्त का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। गत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनावों में मुफ्त की योजनाओं को ‘रेवड़ी कल्चर’ करार दिया था। वहीं, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह एक जटिल मुद्दा है। कोई भी पार्टी मुफ्त बांटने की परिपाटी से अलग नहीं है।

हर पार्टी अपने घोषणापत्र में एक से बढ़कर एक मुफ्त के प्रलोभन का ऐलान करती है,चाहे क्षेत्रीय हों चाहे राष्ट्रीय सभी पार्टियां इसको चुनाव जीतने का रामबाण हथियार बना चुकी हैं। मुफ्त के उपहार को लेकर अदालत ने चुनाव आयोग से सवाल पूछा, तो आयोग ने कहा कि मुफ्त की योजनाओं को लेकर कोई परिभाषा नहीं बनी है।

हालांकि, चुनाव आयोग ने अदालत से यह भी कहा कि इसके लिए एक समिति का गठन कर दिया जाए, लेकिन इससे हमें दूर ही रखा जाए, क्योंकि हम एक संवैधानिक संस्था हैं। इस संदर्भ में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की इस मामले में श्वेत पत्र जारी करने की राय पर गंभीरता से अमल किया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर बहस होनी चाहिए और इसे राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए।

ध्यान रहे राजनीतिक दल चुनाव पूर्व जनता से मुफ्त की रेवड़ी बांटने का वादा करते हैं, और चुनाव जीतने के पश्चात इस अनाप-शनाप खर्चे को राजकोष से पूरा करते हैं। एक तरह से राजनेता जनता को एक हाथ से मुफ्त का लालच देते हैं और दूसरे हाथ से उससे ज्यादा ही कर के रूप में वसूल कर लेते हैं। इसलिए मामले में जनता को भी गंभीर चिंतन और मनन करने की आवश्यकता है।

 

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