डीजीपी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर न्यायालय ने बिहार, यूपीएससी से मांगा जवाब

डीजीपी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर न्यायालय ने बिहार, यूपीएससी से मांगा जवाब

 नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी एस के सिंघल की पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर बिहार सरकार और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि इस नियुक्ति से शीर्ष अदालत …

 नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी एस के सिंघल की पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर बिहार सरकार और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि इस नियुक्ति से शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लंघन हुआ है।

शीर्ष अदालत ने 1988 बैच के बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी सिंघल को भी नोटिस जारी किया है। सिंघल को दिसंबर 2020 में राज्य का डीजीपी नियुक्त किया गया था। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा, “हम नोटिस जारी करेंगे।

पीठ ने हालांकि बिहार के नरेंद्र कुमार धीरज की पुलिस मानिदेशक पद पर सिंघल की नियुक्ति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को झारखंड के वर्तमान पुलिस प्रमुख नीरज सिन्हा के खिलाफ एक अन्य लंबित मामले के साथ संलग्न करने से इनकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “नहीं हम इसे अन्य मामलों के साथ संलग्न नहीं करेंगे।

सुनवाई की शुरुआत में धीरज की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जय सल्वा ने कहा कि सिंघल को डीजीपी नियुक्त करते हुए प्रदेश सरकार ने प्रकाश सिंह मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लंघन किया है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि झारखंड के डीजीपी की नियुक्ति सहित दो राज्यों के पुलिस प्रमुखों को चुनौती देने वाली दो समान याचिकाएं लंबित हैं।

इसके अलावा, इनमें से एक मामले में झारखंड सरकार, यूपीएससी और अन्य के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी किया गया है। सिंघल को उनके पूर्ववर्ती गुप्तेश्वर पांडे की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद डीजीपी का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया था। बाद में उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना इस पद पर नियुक्त किया गया था।

हाल ही में, शीर्ष अदालत ने झारखंड सरकार और डीजीपी नीरज सिन्हा के खिलाफ लंबित अवमानना ​​याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि वह 31 जनवरी को सेवानिवृत्ति के बाद भी पद पर काबिज हैं।

उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल तीन सितंबर को, शीर्ष अदालत के फैसले के कथित उल्लंघन में एक अंतरिम डीजीपी की नियुक्ति में भूमिका के लिए झारखंड सरकार और यूपीएससी की आलोचना की थी। न्यायालय ने एक राज्य पुलिस प्रमुख के लिए दो साल का कार्यकाल तय किया था जिसका चयन यूपीएससी द्वारा तैयार की जाने वाली वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की सूची में से करना होता है।

प्रकाश सिंह मामले में 2006 के शीर्ष अदालत के फैसले में कहा गया था कि एक राज्य के डीजीपी को “राज्य सरकार द्वारा विभाग के तीन वरिष्ठतम अधिकारियों में से चुना जाएगा, जिन्हें यूपीएससी द्वारा उस रैंक पर पदोन्नति के लिए पुलिस बल का नेतृत्व करने के लिए उनकी सेवा की लंबाई, बहुत अच्छा रिकॉर्ड और अनुभव की व्यापकता के आधार पर पैनल में रखा गया है। न्यायालय ने कहा था कि एक बार पद के लिए चुने जाने के बाद उनका कार्यकाल कम से कम दो साल का होना चाहिए भले ही उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख कुछ भी हो।

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