राज्यों के जल विवादों में फंसी नदी जोड़ परियोजना

ज्ञानेंद्र सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई द्वारा जोर शोर से शुरु की गई नदी जोड़ परियोजना राज सरकारों के जल विवादों में फंसकर गई है। 17 वर्ष बाद 30 नदियों के बजाय सिर्फ दो पर काम शुरु हुआ। जिसके चलते इस परियोजना की लागत लगातार बढ़ती जा रही है और …
ज्ञानेंद्र सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई द्वारा जोर शोर से शुरु की गई नदी जोड़ परियोजना राज सरकारों के जल विवादों में फंसकर गई है। 17 वर्ष बाद 30 नदियों के बजाय सिर्फ दो पर काम शुरु हुआ। जिसके चलते इस परियोजना की लागत लगातार बढ़ती जा रही है और ज्यादातर राज्य अपने हिस्से का पानी दूसरे राज्यों की नदियों को देने पर सहमत नहीं है।
बाढ़ और सूखे की समस्या से निपटने के लिए उक्त परियोजना पर काम शुरू हुआ था। जिसके तहत गंगा सहित 30 बड़ी नदियों को आपस में नहरों के माध्यम से जोड़ा जाना था और उन नदियों पर कुछ बांध व बिजली प्रोजेक्ट भी बनने थे। अटल सरकार जाने के बाद मनमोहन सरकार के 10 साल के कार्यकाल में इस परियोजना पर कोई कार्य नहीं हुआ। जब पहली बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो तत्कालीन जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने इस परियोजना पर काम करना शुरू किया और उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं केंद्र सरकार के बीच 3 पक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए।
जिसके तहत उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त क्षेत्र को सिंचित बनाने के लिए केन एवं बेतवा नदी जोड़ परियोजना पर काम शुरू हुआ। यह कार्य इसलिए संभव हो पाया था क्योंकि उमा भारती पहले मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री थी और बाद में वे झांसी से सांसद बनी तो उन्होंने दोनों राज्यों को अपने-अपने हिस्से का पानी अदला-बदली करने के लिए राजी कर लिया था।
लेकिन बाकी राज्यों ने इस परियोजना पर कोई रुचि नहीं दिखाई। अब यह परियोजना पर जमीनी काम भी नहीं शुरू हुआ था कि उमा भारती का मंत्रालय बदल दिया गया। जिसके चलते जल संसाधन मंत्रालय में बैठके तो बहुत होती रहीं, मगर कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पा रहा है।
इस परियोजना को पूरा करने के लिए समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ने भी दिशा निर्देश जारी किए है और केंद्र सरकार ने भी कुछ कमेटियां बनाई है। 2003 में परियोजना की लागत 56 लाख करोड़ थी जो अब कई गुना ज्यादा बढ़ गई है। इसमें 25 – 25 फीसद धन राज्य सरकारों को और 50 फीसद केंद्र सरकार को देना था।
जिसके तहत 15 हजार किलोमीटर लंबी नहरों का निर्माण एवं नदियों के किनारे 3 हजार पर्यटन स्थल बनाए जाने थे। परियोजना पूरी होने के बाद सिंचित रकबा में 15 फीसद वृद्धि का लक्ष्य था। परियोजना पूरी न होने से हजारों क्यूबिक पानी प्रतिवर्ष समुद्र में बह जाता है और कई नदियां बरसात में उफनती हैं तो कई नदियां पानी के लिए तरसती है, जहां पर सूखा रहता है। जिसकी वजह से सरकार को बाढ़ एवं सूखा राहत के नाम पर हजारों करोड़ों रुपए अलग-अलग राज्यों में खर्च करने पड़ते हैं।