एक और झटका

एक और झटका

कोरोना महामारी के दौर में देश के लिए एक और झटका लगा है। दक्षिण एशिया की महाशक्ति कहलाने वाला हमारा देश भरण-पोषण का संकेत देने वाली सस्टेनेबल डेवलपमेंट रैंकिग में नेपाल और भूटान जैसे छोटे पड़ोसी देशों से भी पीछे रह गया है। इतना ही नहीं भारत का स्थान लंका और बांग्लादेश से भी नीचे …

कोरोना महामारी के दौर में देश के लिए एक और झटका लगा है। दक्षिण एशिया की महाशक्ति कहलाने वाला हमारा देश भरण-पोषण का संकेत देने वाली सस्टेनेबल डेवलपमेंट रैंकिग में नेपाल और भूटान जैसे छोटे पड़ोसी देशों से भी पीछे रह गया है। इतना ही नहीं भारत का स्थान लंका और बांग्लादेश से भी नीचे है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 में संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों की ओर से अपनाए 17 सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) में भारत गत वर्ष के अपने प्रदर्शन में सुधार नहीं ला सका।

गत वर्ष विश्व में यह रैंकिंग 115 थी, जो इस वर्ष 117 हो गई है। भारत का कुल एसडीजी स्कोर 61.9 है, यह रैंकिंग प्रमुख रूप से खाद्य सुरक्षा का लक्ष्य प्राप्त कर भुखमरी का खात्मा करने, लैंगिक समानता हासिल करने, सतत समावेशी औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने की प्रमुख चुनौतियों की वजह से गिरी है।

नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के आधार पर देश की प्राथमिकताओं के अनुरूप अपना सूचकांक तैयार किया है। रिपोर्ट के अनुसार केरल ने 75 अंक के साथ शीर्ष राज्य के रूप में अपना स्थान बरकरार रखा, जबकि 74 अंक के साथ हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु को दूसरा स्थान मिला। इस साल के सूचकांक में बिहार, झारखंड और असम सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं।

केंद्र शासित प्रदेशों में 79 अंक के साथ चंड़ीगढ़ शीर्ष पर रहा, जिसके बाद 68 अंक के साथ दिल्ली का स्थान रहा। वर्ष 2020-21 में अपने स्कोर को बेहतर बनाने में मिजोरम, हरियाणा और उत्तराखंड सबसे आगे रहे। एसडीजी की ताजा रैकिंग आने के बाद भाजपा सफाई दे रही है। वहीं विपक्ष ताजा आंकड़ों को लेकर हमलावर है। कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर इसका विरोध जताया है। वहीं जदयू ने इसको लेकर बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग की है।

उनका कहना है कि बिहार को जब तक विशेष दर्जा नहीं मिल जाता तब तक इसे दूसरे विकसित राज्यों की श्रेणी मे लाना मुश्किल है। कहा जा सकता है कि जब परिदृश्य इतना हताशाजनक हो तो एसडीजी रैंकिंग को कैसे कायम रखा जा सकता है। पिछले दो साल से तो कोरोना महामारी ने हालत पतली कर रखी है।

इसके अलावा यह भी तथ्य है कि देश के सभी राज्य एक समान उन्नत नहीं हैं। कुछ औद्योगिक दृष्टि से आगे हैं तो बाकी कृषि प्रधान अर्थ व्यवस्था पर निर्भर व पिछड़े हुए हैं। हर राज्य के लोगों की औसत आय भी एक समान नहीं हैं।

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