लाॅकडाउन में कुष्ठ आश्रम के 100 परिवारों को खाने के लाले

समीर बिसारिया, बरेली। कोरोना काल में 30 अप्रैल से लागू लाॅकडाउन ने कुष्ठ आश्रम में रह रहे 100 से अधिक परिवारों की दिक्कतें बढ़ा दी हैं। उन्हें पर्याप्त राशन नहीं मिल रहा है। लाॅकडाउन लगने से भिक्षा भी नहीं मिल रही है। इसकी वजह से सभी लोगों को सिर्फ दाल-रोटी पर निर्भर रहना पड़ रहा …
समीर बिसारिया, बरेली। कोरोना काल में 30 अप्रैल से लागू लाॅकडाउन ने कुष्ठ आश्रम में रह रहे 100 से अधिक परिवारों की दिक्कतें बढ़ा दी हैं। उन्हें पर्याप्त राशन नहीं मिल रहा है। लाॅकडाउन लगने से भिक्षा भी नहीं मिल रही है। इसकी वजह से सभी लोगों को सिर्फ दाल-रोटी पर निर्भर रहना पड़ रहा है। लेप्रोसी से ग्रसित मरीजों की तरफ से लॉकडाउन के दौरान शासन और प्रशासन दोनों ने ही मुंह फेर लिया है।
बरेली-बदायूं मार्ग स्थित स्वामी विवेकानंद कुष्ठ आश्रम के मैनेजर नरेश पाल ने बताया कि इस आश्रम का निर्माण करीब 38 साल पहले कराया गया था। इसके बाद से आज तक न ही इस आश्रम की मरम्मत हुई है और न ही लोगों को रहने के लिए नए भवन का निर्माण हुआ। बताया कि ज्यादातर लोग शहरों में जाकर भीख मांगते हैं और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। लॉकडाउन के चलते यहां के लोगों का शहर जाना बंद हो गया है, जिसकी वजह से परिवारों को खाने-पीने के भी लाले पड़ गए हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि पिछले एक साल से स्वास्थ्य विभाग की टीम भी नहीं पहुंची है। जिसकी वजह से मरीजों को दवाओं की भी आपूर्ति नहीं हो पाती है। कोरोना काल में आश्रम के किसी भी व्यक्ति की कोविड जांच भी नहीं हुई है। आश्रम में रहने वाले लोगों ने बताया कि पानी की निकासी की भी इतनी समस्या है कि बारिश के समय आश्रम में जलभराव की काफी समस्या हो जाती है।
सरकारी योजना के तहत बने शौचालयों की बदहाली आश्रम की महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। बताया कि जलभराव के समय शौचालयों की गंदगी भी आश्रम में भर जाती है। जिसकी वजह से लोगों में जानलेवा बीमारियों का भी खतरा बना हुआ है। मैनेजर ने बताया कि इन समस्याओं के निस्तारण के लिए विधायक पप्पू भरतौल को भी पत्र लिखा था, लेकिन कोई फायदा नहीं निकला। कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को भी सूचित कर चुके हैं लेकिन किसी प्रकार से मदद नहीं मिली।
आश्रम में रहने वालों ने बयां किया अपना दर्द
बिलारी की रहने वाली मायादेवी बताती हैं कि कोढ़ की बीमारी होने के बाद परिवार में बहन-भाई की शादी होने में दिक्कत होने लगी। जिसकी वजह से मजबूरन उन्हें यहां आना पड़ा। खाने के लिए सूखा राशन और भंडारों पर निर्भर रहना पड़ता है। -मायादेवी
बिहार के रहने वाले कैलाश ने बताया कि कोढ़ होने के बाद स्थानीय लोगों ने गांव से निकाल दिया था। जिसके बाद यहां आ गए। शहर में घरों से मांगकर लाते थे और परिवार को पाल रहे थे, लेकिन अब लॉकडाउन में बहुत परेशानी हो गई है। -कैलाश
कोढ़ की बीमारी होने के बाद आसपास के लोगों ने रहना मुश्किल कर दिया। जिसके बाद यहां आना पड़ा। यहां आने के कुछ साल बाद शादी की और बच्चे भी हैं। घर चलाने के लिए लोगों से मांगकर सूखा राशन लाना पड़ता है। अब वह भी बंद है। -बेलावती
बीजामऊ के रहने वाले बुजुर्ग मेवाराम बताते हैं कि चर्म रोग होने के बाद घर से आना पड़ा। इसके बाद रोजी-रोटी के लिए भीख मांगकर खा रहे हैं। जांच और दवाओं की भी काफी दिक्कत रहती है, न ही डॉक्टर आते हैं न ही दवाएं मिलती हैं। -मेवाराम
बुजुर्ग कमलेश बताती हैं कि की सालों से वह यहां रह रही हैं। घरों से मांगकर लाती हैं और खाती हैं। जिस कमरे में रहते हैं उसमें भी पानी टपकता है, बारिश में पानी इस कदर भर जाता है कि कमरों में से निकालने में भी दिक्कत होती है। -कमलेश