हाय री बेबसी… बच्चों की ‘मुस्कान’ बेचने वाले हाथ लाकडाउन में मांगने लगे भीख

मुरादाबाद, अमृत विचार। वह चल नहीं सकता, उसकी पत्नी भी दिव्यांग है। न कोई सहारा, न कोई मददगार। किस्मत ने उसे जख्म दिए और व्यवस्था उन जख्मों को कुरेदने में लगी है। उसके सिर पर छह साल की बच्ची के पालन-पोषण की जिम्मेदारी है। बस यही जिम्मेदारी इस बेबसी में भी इस दंपति के मुस्कुराने …

मुरादाबाद, अमृत विचार। वह चल नहीं सकता, उसकी पत्नी भी दिव्यांग है। न कोई सहारा, न कोई मददगार। किस्मत ने उसे जख्म दिए और व्यवस्था उन जख्मों को कुरेदने में लगी है। उसके सिर पर छह साल की बच्ची के पालन-पोषण की जिम्मेदारी है। बस यही जिम्मेदारी इस बेबसी में भी इस दंपति के मुस्कुराने की वजह है। लेकिन लाकडाउन ने उनकी यह मुस्कराहट भी छीन ली।

गली-मोहल्लों में पहले जुगाड़ गाड़ी फिर ट्राई साइकिल से गुब्बारे और खिलौने बांधकर बेचने वाला मेहनतकश दिव्यांग शमशाद आज लाकडाउन के कारण दूसरों के आगे हाथ पसारने के लिए मजबूर है। मासूम बेटी और दिव्यांग पत्नी को ट्राई साइकिल में बैठाकर वह गली-मोहल्लों के अलावा धार्मिक स्थलों के पास दो वक्त की रोजी-रोटी के लिए भटक रहा है।

फिलहाल बच्चों की मुस्कान बेचने वाला यह शख्स मायूस है और उसे किसी मसीहा का इंतजार है। हड्डी मिल कांशीराम कालोनी निवासी मोहम्मद शमशाद दिमागी रूप से तो बड़े हो गए। लेकिन शारीरिक ढांचा बच्चों जैसा रह गया। केवल साढ़े तीन फीट के शमशाद जीवन-यापन के लिए पहले चाय का ठेला लगाने लगे। करीब पांच साल तक ठेला लगाया, जिसे बाद में नगर-निगम वालों ने हटवा दिया। इस बीच उन्होंने दिव्यांग तस्लीमा से निकाह कर लिया। मौजूदा समय में उनके छह साल की बेटी भी है।

पिछले लाकडाउन में हुए थे पुलिस की बबर्रता का शिकार
शमशाद बताते हैं कि चाय की दुकान बंद होने के बाद उन्होंने ट्राई साइकिल से गुब्बारे और खिलौने बेचने का काम शुरू कर दिया। इस काम में उनका साथ देती थीं पत्नी तस्लीमा। ट्राई साइकिल के चारों ओर गुब्बारे बांधकर वह गलियों में फेरी लगाया करते थे। कई साल तक उन्होंने गुब्बारे बेचने का काम किया। रोज कई-कई किलोमीटर तक वह हाथों से ट्राई साइकिल के पहिए खींचा करते थे। आखिरकार एक दिन उनकी यह मेहनत किसी रहमदिल को पसंद आ गई। उसने दूसरा काम करने की सलाह दी तो शमशाद की दिव्यांगता आड़े आ गई। फिर उस रहमदिल ने करीब चालीस हजार की लागत से एक जुगाड़ गाड़ी बनवाकर उन्हें दे दी। शमशाद के छोटे पैर गियर तक नहीं पहुंच पा रहे थे तो उन्होंने गियर पर एक लोहे की राड लगवा ली। लेकिन पिछले साल लगे लाकडाउन में शमशाद को पुलिस की बबर्रता का शिकार होना पड़ा। दो वक्त की रोजी-रोटी के लिए एक दिन वह जुगाड़ गाड़ी लेकर खिलौने बेचने के लिए घर से निकले तो रास्ते में पुलिसिया सख्ती का शिकार होना पड़ गया। पुलिस वालों ने उसकी जुगाड़ गाड़ी को डंडे बरसा कर क्षतिग्रस्त कर दिया।

बेटी व दिव्यांग पत्नी को ट्राई साइकिल पर बैठाकर मांग रहा भीख
शमशाद के अनुसार पुलिस की इस बबर्रता के बाद उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपनी जुगाड़ गाड़ी सही करा सके। इसके बाद फिर वह ट्राई साइकिल से ही खिलौने व गुब्बारे बेचने का काम करने लगा। अभी दो वक्त की रोजी-रोटी का इंतजाम होने लगा था कि एक बार फिर लाकडाउन ने वह इंतजाम भी छीन लिया। उसके अनुसार लाकडाउन व कोरोना के कारण कोई गुब्बारे नहीं खरीद रहा है। नतीजा घर में फाके के हालात हो गए हैं। रुंधे गले से उसने बताया कि पति-पत्नी को एक दिन भूखा रख सकते हैं। लेकिन मासूम बेटी को भूखा सोते नहीं देख सकते। यही वजह है कि मेहनत करने वाले हाथ आज दूसरों के सामने फैलने के लिए मजबूर हो गए हैं। वह बताते हैं कि दिन निकलने के साथ ही बेटी व पत्नी को लेकर ट्राई साइकिल से गली-मोहल्लों व धार्मिक स्थलों के बाहर भीख मांगने लगते हैं। अगर किसी दिन कोई रहमदिल भीख दे देता है तो दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो जाता है वरना सभी भूखे सो जाते हैं। सिस्टम से नाराज शमशाद कहते हैं कि कभी किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला। दिव्यांग पेंशन आती है, वह भी साल में एक बार। कारोबार के लिए लोन के लिए भी आवेदन किया। लेकिन आज तक मंजूरी नहीं मिल सकी है।