Bareilly: 'केसरी' की मौत का कसूरवार गोरखपुर चिड़ियाघर प्रशासन, PM रिपोर्ट ने खोली लापरवाही की परतें

Bareilly: 'केसरी' की मौत का कसूरवार गोरखपुर चिड़ियाघर प्रशासन, PM रिपोर्ट ने खोली लापरवाही की परतें

बरेली, अमृत विचार : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस बाघ की कदकाठी और वजन से प्रभावित होकर केसरी नाम दिया था, उसकी मौत के पीछे गोरखपुर चिड़ियाघर प्रशासन की लापरवाही सामने आई है। बाघ के शव की गहन जांच के बाद आईवीआरआई के विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट शासन और चिड़ियाघर प्रशासन को भेजी है। इसमें मुख्य रूप से तो बाघ की मौत का कारण हाइपोथर्मिया बताया गया है लेकिन उसके भूखे होने के साथ कई और कारणों का भी जिक्र किया गया है।

करीब 10 साल उम्र के पूरी तरह स्वस्थ इस बाघ को पीलीभीत के जंगलों से पकड़कर गोरखपुर भेजा गया था। पीलीभीत में कई लोगों की जान लेने के बाद उसे आदमखोर घोषित किया गया था। करीब 280 किलो वजन के इस बाघ को शुरुआत के तीन महीनों में गोरखपुर के शहीद अशफाक उल्ला प्राणी उद्यान केंद्र में रखा गया था जहां उसे देखने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पहुंचे थे। उन्होंने उसकी कदकाठी से प्रभावित होकर उसे केसरी नाम देने के साथ अधिकारियों को उसका खास ख्याल रखने का निर्देश दिया था। तीन महीने पहले बाघ को प्राणी उद्यान केंद्र से गोरखपुर के ही चिड़ियाघर भेज दिया गया था जहां 30 मार्च को उसकी मौत हो गई थी।

केसरी की मौत के बाद आईवीआरआई (भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एम करीकलन के नेतृत्व में एक टीम 31 मार्च को पोस्टमार्टम के लिए गोरखपुर पहुंची थी। टीम की रिपोर्ट के मुताबिक ठीक से देखभाल न होने की वजह से केसरी चिड़ियाघर में काफी उग्र हो गया था। अपने पिंजरे की सरिया चबाने से उसका जबड़ा जख्मी हो गया था। खाने-पीने में अक्षम होने से भूखे रहने के कारण उसके शरीर में रक्त संचार अवरुद्ध होने लगा। वैज्ञानिकों के अनुसार इसका नतीजा यह हुआ कि उसका शारीरिक तापमान 100 डिग्री फॉरेनहाइट से काफी ज्यादा बढ़ गया। इससे वह हाइपोथर्मिया का शिकार हो गया।

ये लापरवाही बनी मौत की वजह

  • गाइड लाइन के मुताबिक जंगल से रेस्क्यू के बाद करीब छह महीने तक बाघ को डिस्प्ले (आम लोगों के लिए प्रदर्शित) नहीं करना था। गोरखपुर चिड़ियाघर में इस नियम को नजरअंदाज कर दिया गया।
  • बाघ को खाना देने वाला आदमी एक ही होना चाहिए था। चिड़ियाघर प्रशासन ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया। नए-नए चेहरों को देख घबराया बाघ स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करता रहा और नए माहौल में ढल नहीं पाया।
  • इन्हीं कारणों से उसने अत्यधिक उग्र होकर पिंजरे की सरिया चबाने की कोशिश कर अपना जबड़ा जख्मी कर लिया। इसके बाद भी उसके खान-पान का ध्यान नहीं रखा गया।
  • यह भी आशंका जताई गई है कि उग्र हुए बाघ को शांत करने के किए उसे कोई दवा भी नहीं दी गई।
  • गोरखपुर चिड़ियाघर प्रशासन के मुताबिक मौत से एक दिन पहले बाघ को 14-15 किलो मीट दिया गया था लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसका पेट पूरी तरह खाली निकला।

जांच में सहयोग नहीं
पिछले छह महीने की बाघ की ब्लड रिपोर्ट, बुखार, तापमान के साथ अन्य जानकारी चिड़ियाघर प्रशासन ने आईवीआरआई को नहीं दी। इसके साथ उसके छह महीने के वीडियो और फोटोग्राफ भी साझा नहीं किए।

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