पीलीभीत: 400 रुपये के लिए जेल में पिटाई, 29 साल चली सुनवाई.. अब आया फैसला, जानिए मामला

पीलीभीत, अमृत विचार: ईसी एक्ट में जेल भेजे गए अभियुक्त से मारपीट के एक मामले में 29 साल चली सुनवाई के बाद फैसला सुनाया गया। तत्कालीन/रिटायर जेलर और एक बंदी रक्षक की विचारण के दौरान मृत्यु होने पर कार्रवाई उपशमित की जा चुकी थी।
जीवित एक आरोपी (बंदी रक्षक) को अदालत ने दोषी पाते हुए उसे तुरंत दंडित करने के बजाय प्रथम अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1985 की धारा 4 का लाभ देते हुए निर्णय सुनाया है। मुकदमे की सुनवाई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय में चल रही थी।
अभियोजन कथानक के अनुसार, जहानाबाद थाने में वर्ष 1992 में धारा 3/7 ईसी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई थी। इस मुकदमे के अभियुक्त संजीव को जेल भेजा गया था। ईसी एक्ट के मुकदमे के अभियुक्त संजीव ने एक प्रार्थना पत्र स्पेशल जज न्यायालय में दिया।
जिसके अनुक्रम में कोतवाली सदर में 6 मार्च 1993 को धारा 147, 323, 325 आईपीसी में तत्कालीन जेलर शिव सहाय, बंदीरक्षक रामपाल और रामेश्वर दयाल आदि के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। इसमें बताया गया कि जब वह जेल में बंद था, तभी 13 दिसंबर 1992 को जेलर व चार सिपाहियों ने उससे 400 रुपये मांगे।
रुपये न देने पर उसके साथ मारपीट की गई, जिसमें उसका दायां हाथ टूट गया। इसके बारे में उसने 18 दिसंबर 1992 को एक प्रार्थना पत्र न्यायालय में दिया। चूंकि वह जेल से रिहा के बाद बराबर अपना इलाज करा रहा था और डॉक्टरों के मशविरों के मुताबिक घर पर आराम कर रहा था।
अब उसका हाथ कुछ ठीक हुआ तो उसने मारपीट करने वाले जेलर और सिपाहियों के नाम मालूम किए। मारपीट करने वाले जेलर शिव सहाय, बंदी रक्षक रामपाल और रामेश्वर दयाल थे। बाकी दो सिपाहियों के नाम पता नहीं चल सके। आरोप लगाया गया कि रामपाल के हाथ में डंडा था और अन्य सिपाही व जेलर ने लात-घूंसों से मारपीट की।
न्यायालय के आदेश पर संजीव का मेडिकल परीक्षण कराया गया। पुलिस ने विवेचना के बाद सक्षम अधिकारी से अनुमति प्राप्त कर जेलर शिव सहाय, बंदीरक्षक रामपाल और रामेश्वर दयाल के खिलाफ आरोप पत्र न्यायालय में प्रेषित किया।
पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर तीनों आरोपियों के खिलाफ 12 सितंबर 1996 को धारा 323/34, 325/34 आईपीसी के तहत आरोप विरचित किए गए। इस दौरान मुकदमा अभियुक्त शिव सहाय और रामपाल की मृत्यु हो जाने पर 04 मई 2024 को दोनों मृत अभियुक्तों के विरुद्ध वाद की कार्यवाही उपशमित की गई।
तीसरे अभियुक्त रामेश्वर दयाल के विरुद्ध कार्यवाही चली। मुकदमे की सुनवाई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पूजा गुप्ता की अदालत में चली। न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने एवं पत्रावली का परिशीलन करने के बाद अभियुक्त रामेश्वर दयाल को आरोप धारा 323/34 आईपीसी में दोषी पाते हुए उसे तुरंत दंडित करने के बजाय प्रथम अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1985 की धारा 4 का लाभ देते हुए
निर्णय की तिथि से छह माह तक की अवधि के सदाचरण की परिवीक्षा पर, उसके द्वारा तदनुसार सदाचरण बनाए रखने के लिए आदेश की तिथि से पंद्रह दिन के भीतर 20 हजार रुपये का एक व्यक्तिगत बंधपत्र एवं समान राशि की दो प्रतिभू जिला प्रोबेशन अधिकारी पीलीभीत के समक्ष निष्पादित करने की शर्त पर मुक्त किया।
यह भी निर्दिष्ट किया गया कि वह परिवीक्षा अवधि के दौरान परिशांति बनाए रखेगा और सदाचरण बनाए रखेगा। परिवीक्षा अवधि के दौरान अभियुक्त रामेश्वर दयाल द्वारा यदि कोई अपराध किया जाता है तो उसे न्यायालय द्वारा पुन: तलब किया जाएगा और दंड के प्रश्न पर पुन: सुनकर उसे नियमानुसार दंडित किया जाएगा।
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