इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : कर्मचारी अपने खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के शीघ्र निस्तारण का हकदार
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के शीघ्र निस्तारण हेतु निर्देश देते हुए कहा कि एक कर्मचारी अपने खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के शीघ्र निस्तारण का हकदार है। अनुशासनात्मक कार्यवाही में देरी न्याय को पराजित करती है।
कोर्ट ने वर्तमान मामले में कर्मचारी के खिलाफ 15 वर्ष पूरे होने के बाद भी अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित रहने पर संबंधित विभाग से स्पष्टीकरण मांगते हुए पूछा कि 15 वर्षों बाद भी विभागीय कार्यवाही क्यों नहीं समाप्त हुई है। दिसंबर 2009 को आरोप पत्र जारी होने के बाद से लेकर आज तक विभागीय कार्यवाही पूरी न होने के कारण संबंधित अधिकारियों को कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देने का कोई कारण नहीं दिखता।
अतः कोर्ट ने अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त करते हुए याची को उसकी सेवानिवृत्ति की तारीख यानी 31 दिसंबर 2009 से सेवानिवृत्ति के बाद की पूरी राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, साथ ही बकाया राशि पर भुगतान की तिथि से लेकर 6% ब्याज भी देने का निर्देश दिया। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर बकाया राशि का 4 महीने में भुगतान नहीं किया जाता है तो 12% ब्याज दर लागू होगी। उक्त आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की एकलपीठ ने राम बली राम की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। याची ने सेवानिवृत्ति बकाया भुगतान और अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में वर्तमान याचिका दाखिल की थी। मामले के अनुसार याची ग्राम पंचायत अधिकारी था।
31 दिसंबर 2009 को सेवानिवृत्त होने वाला था, लेकिन उसके खिलाफ लंबित जांच के कारण उसे 29 दिसंबर 2009 को निलंबित कर दिया गया और उसी दिन उसे आरोप पत्र दिया गया। उसकी सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन और अन्य देय राशि रोक दी गई। हालांकि उसके खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही के संबंध में कोई तत्परता नहीं दिखाई गई। जिला पंचायत राज अधिकारी, गाजीपुर अपने व्यक्तिगत हलफनामे में 15 वर्षों से लंबित अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त न होने का कोई स्पष्टीकरण नहीं दे सके, जिस पर कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए संबंधित अधिकारी और विभाग को याची को बकाया भुगतान करने का निर्देश दिया।