भारत मां गुलामी में जकड़ी हैं और तुम्हें मेरी फिक्र है अम्मा; शहीद शिरोमणि चंद्रशेखर आजाद की आज 119 वीं जयंती पर बदरका में ढोलक बजेगी
कानपुर, (शैलेश अवस्थी)। देश की आजादी के लिए क्रांति का बिगुल फूंकने, नौजवानों को संगठित कर अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ाने और भारत मां के लिए कुर्बान हो जाने वाले चंद्रशेखर आजाद की 119 वीं जयंती पर उनकी जन्मस्थली बदरका में बहादुरी के किस्से लोक कथाओं की तरह सुनाए जा रहे हैं।
आजाद का पैतृक घर अब आजाद मंदिर है। यहां उनकी मां जगरानी की प्रतिमा स्थापित है। सोमवार को जयंती से पहले इसे सजाया गया है। जयंती पर माल्यार्पण होगा, गांव में ढोलक बजेगी, गउनई होगी और गुलगुले बांटे जाएंगे। पूरा गांव परंपरागत तरीके से आजाद का जन्मदिन मनाएगा।
चंद्रशेखर आजाद स्मारक से जुड़े बदरका के राजन शुक्ला के बाबा आजाद जी के परिवार के बेहद निकट थे। वह बताते हैं कि जब आजाद 10 साल के थे, तो उन्होंने लगान के लिए गांव के बुजुर्ग कल्लू पासी को बुरी तरह पीट रहे अंग्रेज अफसर का सिर पत्थर मारकर फोड़ दिया था।
इस घटना के बाद पुलिस ने आजाद का घर घेर लिया। पिता सीताराम तिवारी और गांव वालों ने बमुश्किल यह कहकर उन्हें बचाया कि अभी बच्चा है, लेकिन यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांति की चिंगारी थी जो आगे ज्वाला बनी।
इसी तरह जब आजाद कानपुर में रहकर आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे। एक दिन छिपकर मित्र महावीर के साथ बदरका में मां से मिलने पहुंचे। मां के पांव छुए और बोले भूख लगी है। मां के हाथ की सूखी रोटी और सब्जी खाई। आधे घंटे बाद ही उठ खड़े हुए।
मां जगरानी बेटे से लिपटकर कर रोने लगीं। एक रात रुकने की जिद की। आजाद भी भावुक हो गए लेकिन अगले ही पल मां को झटक कर अलग करते हुए बोले भारत की लाखों माताएं रो रही हैं, भारत मां गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी है और तुम्हें अपने बेटे की चिंता है। आजाद चल दिए और प्रण किया कि जब तक देश आजाद नहीं हो जाता, घर नहीं लौटेंगे। इसके कुछ महीने बाद आजाद के बलिदान की खबर आ गई ।
बदरका का ऐतिहासिक किला खंडहर
बदरका में आजाद जी के पैतृक घर से कुछ दूर एक किला है जो अब खंडहर हो चुका है। सात तल के इस किले में दो तल भूमिगत हैं। आजाद और उनके साथी यहीं छिपकर देश की आजादी के लिए योजना बनाते थे और पुलिस आने पर सुरंग के रास्ते गांव से बाहर निकल जाते थे।
स्मारक गुलजार, रंगरोगन और सजावट
आजाद जयंती पर जिला प्रशासन और आजाद ट्रस्ट के बैनर तले बदरका में तीन दिन जयंती आयोजन होगा। उनके स्मारक को सजाया गया है।
कानपुर में बीता जिंदगी का बड़ा हिस्सा
चंद्रशेखर आजाद कानपुर में डीएवी छात्रावास में छिपकर रहते थे। यहीं भगत सिंह सहित कई क्रांतिकारियों को संगठित कर आजादी के संघर्ष की योजना बनाते और अंजाम देते थे। महान पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आए और उनकी मदद से अंग्रेज हुकूमत की नींद उड़ाए रहे। कानपुर में उन्हें कई बार पुलिस ने घेरा, लेकिन हर बार चकमा दे गए।
अंग्रेजों के हाथ नहीं आए, बमतुल बुखारा का खौफ
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 7 जनवरी 1906 को हुआ। कुछ लोग जन्म 23 जुलाई 1906 (भाबरा, मध्यप्रदेश ) में बताते हैं। वह पढ़ाई के लिए बनारस गए और 15 साल की उम्र में क्रांति का बिगुल फूंक दिया। 15 कोड़ों की सजा स्वीकार कर ली, लेकिन माफी नहीं मांगी। प्रण किया कि अब कभी पुलिस के हाथ नहीं आऊंगा और हुआ भी ऐसा ही। उनकी पिस्टल, जिसे वह बमतुल बुखारा कहते थे, का अंग्रेजों में बेहद खौफ था। 27 फरवरी 1931 को प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेज पुलिस ने घेरकर उन पर फायरिंग कर दी तो वह खुद को गोली मारकर भारत मां की आजादी के लिए शहीद हो गए।