Moradabad News : हाशिये पर पहुंच गई चने की खेती, किसानों को नहीं पसंद

जिले में कम हो रहा दलहनी फसलों का रकबा, कम उत्पादन के चलते दाल से मंहगा हुआ साबुत चना

Moradabad News : हाशिये पर पहुंच गई चने की खेती, किसानों को नहीं पसंद

मूंढापांडे, अमृत विचार। रबी में गेंहू की फसल अव्वल दर्जे की खेती मानी जाती है। सरसों और लाही दूसरे तथा तीसरे नंबर पर दलहनी फसलें हैं। फिलवक्त किसानों की रुचि दलहनी फसलों की ओर कम हो रही है। इनमें भी चने की खेती हाशिये पर चली गई है। जनपद में 17-18 सौ हेक्टेयर में दलहनी फसलों की खेती होती है। इसमें चने का रकबा 50-60 हेक्टेयर है। चने का उत्पादन भी अन्य जिंसों से कम है। यानि 12 से 15 सौ कुंतल तक ही चने की पैदावार जनपद में होती है, जबकि खपत पांच हजार कुंतल से भी अधिक है। इसका बाजारी दाम 120 रुपये प्रति किलो तक है। दाल का भाव 80 से 86 रुपये तक है। हालात ये हैं कि चने के दाम आसमान को छू रहे हैं, चने की दाल से महंगा साबुत चना है।

रकबा लगातार हो रहा कम
दो दशक पहले जनपद में चने की खेती पांच सौ से एक हजार हेक्टेयर में होती थी, जो अब मात्र 50-60 हेक्टेयर तक सिमट कर रह गई है। सहकारी समिति सरकड़ाखास के चेयर पर्सन शाहिद हुसैन, जगरम्पुरा के ठाकुर देवेंद्र सिंह, लालपुर तीतरी के हरपाल सिंह, मातीपुर मैनी के वीर सिंह सैनी, पाड़ली बाजे के जयपाल सैनी, रामपुरभीला के नाजिम सैफी, बहोरनपुर के चैधरी सिद्धराज सिंह कहते हैं कि चने की खेती का रकबा कम होता जा रहा है। किसान अब गन्ना, गेहूं, आलू व साठा धान की फसलों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं।

चने पर सट्टा बाजार गर्म
चने पर सट्टे का बाजार गरम है। थोक में चने की दाल की कीमत लगभग 76 रुपये किलो और फुटकर 86 रुपये तक है। चने की पैदावार व आपूर्ति कम होने से बाजार दर 12000 रुपये कुंतल तक पहुंच गई है। सट्टे का बाजार गरम होने से व्यापारियों ने चना साबुत व दालों को स्टोर कर लिया है। दाल विक्रेता अनिल कुमार व पवन कुमार-कटरानाज, अशोक कुमार- छोटी सब्जी मंडी- बाजार गंज और मकबरा के मुहम्मद यासीन कहते हैं कि चने के दामों में बढ़ोत्तरी का असर बिक्री पर दिखाई दे रहा है।

चने की कीमत बढ़ने के आसार
दाल मार्केट में चने की कीमत बढ़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। तर्क ये है कि हर साल चने की फसल का रकबा कम होता जा रहा है। बीते साल भी बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से चने की फसल बर्बाद हो गई थी।

खेतों में दिखाई नहीं देता चना
ग्रामीणों की मानें तो चना खेतों में अब दूर तक दिखाई नहीं देता। किसान इसकी बुवाई करना पसंद नहीं करते। ये बात दीगर है कि शौक पूरा करने के लिए चंद किसान साग भाजी के लिए इसकी बुवाई खेत के किसी कौने में कर लेते हों? किसानों का मानना है चने का पौधा बड़ा होने पर बर्बादी शुरू हो जाती है। ये बात दीगर है कि इक्का दुक्का किसान क्यारी में चने की बुवाई करते हों?

दलहनी फसलों पर नजर
हर साल दलहनी फसलों का रकबा कम होता जा रहा है। सहफसली खेती के बावजूद किसानों का रूझान चने की खेती की ओर से कम होता जा रहा है। जबकि मटर व मसूर की खेती में बढ़ोत्तरी हो रही है। जनद में उड़द का क्षेत्र लगभग सौ हेक्टेयर, मूंग का 50, मटर का 400, अरहर 40-50 और मसूर की खेती कमोबेश 11 सौ हेक्टेयर में होती है।

चने की खेती को बढावा देने के प्रयास जारी हैं
दलहनी खेती की ओर किसानों का ध्यान आकर्षित किया जा रहा है। चने की खेती को बढावा देने के प्रयास जारी हैं। चने की खेती लाभकरी है। किसानों चने की बुवाई करना चाहिए। इससे आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा।-अनीस अहमद, सहायक विकास अधिकारी (कृषि)

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