प्रयागराज : मध्यस्थता अधिनियम सभी क्षेत्रीय बाधाओं से मुक्त है
अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मध्यस्थ मामले में आदेश के क्रियान्वयन के नियमों को स्पष्ट करते हुए कहा कि किसी निर्णय को उसके निष्पादन के माध्यम से लागू करने की प्रक्रिया देश में कहीं भी शुरू की जा सकती है। इसके लिए उस न्यायालय से डिक्री का हस्तांतरण प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जिसके पास मध्यस्थता कार्यवाही के लिए क्षेत्राधिकार हो।
कोर्ट ने आगे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए माना कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा पारित पुरस्कार को अधिनियम, 1996 की धारा 36 के तहत डिक्री माना जाता है और यह मानने के लिए कहीं भी कोई सिद्धांत नहीं है कि जिस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में मध्यस्थ पुरस्कार पारित किया गया है, उसे ही डिक्री पारित करने वाला न्यायालय माना जाना चाहिए।
वास्तव में मध्यस्थता अधिनियम सभी क्षेत्रीय बाधाओं को पार करता है और देश में कहीं भी निष्पादन दाखिल किया जा सकता है। इसके लिए संबंधित न्यायालय से डिक्री के हस्तांतरण को प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की एकलपीठ ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। कोर्ट ने मामले के तथ्यों पर उपरोक्त कानून को लागू करते हुए कहा कि यह निर्विवाद है कि विवाद इटावा जिले में याचियों की भूमि के अधिग्रहण से उत्पन्न हुआ है, क्योंकि याचियों की संपत्ति और परिसंपत्तियां वहीं स्थित हैं, इसलिए भले ही याचियों का कार्यालय कानपुर में हो या मध्यस्थता पुरस्कार कानपुर में सुनाया गया हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई व्याख्या और सीपीसी के प्रावधानों के साथ-साथ अधिनियम, 1996 के प्रावधानों के आलोक में इटावा में निष्पादन कार्यवाही दाखिल करने में कोई अंतर नहीं होगा।
अतः आक्षेपित आदेश को उचित मानते हुए कोर्ट ने कानपुर में दिए गए पुरस्कार के खिलाफ याचियों द्वारा जिला न्यायाधीश, इटावा के समक्ष अधिनियम, 1996 की धारा 34 के तहत दाखिल अपील में आपत्तियों को मध्यस्थता अधिनियम की धारा 4 द्वारा वर्जित माना है।
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