जन्म के साथ हर साल 10 हजार बच्चों को जकड़ लेती है थैलेसीमिया बीमारी, नहीं बन पाती रक्त कोशिकाएं 

जन्म के साथ हर साल 10 हजार बच्चों को जकड़ लेती है थैलेसीमिया बीमारी, नहीं बन पाती रक्त कोशिकाएं 

लखनऊ, अमृत विचार: थैलेसीमिया गंभीर अनुवंशिक बीमारी है। इसमें हमारे शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया बाधित होती है। जिससे रोगी में स्वस्थ्य रक्त कोशिकाएं नहीं बन पाती। नतीजतन मरीज को बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। भारत में हर वर्ष सात से 10 हजार बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित पैदा होते हैं। यह जानकारी लोहिया संस्थान के निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने दी।

वह गुरुवार को लोहिया के हॉस्पिटल ब्लॉक में थैलीसीमिया वार्ड में आयोजित जागरुकता कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने कहा कि थैलेसीमिया केवल मरीज के लिए कष्टदायक होता है बल्कि सम्पूर्ण परिवार के आर्थिक शारीरिक व मानसिक तनाव का कारण बन जाता है। यह रोग अनुवांशिक होने के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार में चलता रहता है। इस रोग में शरीर में लाल रक्त कणिका, रेड ब्लड सेल (आरबीसी) सही नहीं बन पाते हैं। थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को बार-बार खून चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसा न करने पर बच्चा जीवित नहीं रह सकता है। इस बीमारी की सम्पूर्ण जानकारी और विवाह के पहले विशेष जांच कराकर आने-वाले पीढ़ी को थैलेसीमिया होने से रोक सकते हैं। थैलेसीमिया रोग को पूर्ण उपचार केवल बोन मैरो ट्रांस्पलाट द्वारा ही सम्भव है।

ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुब्रत चन्द्रा ने बताया कि शादी से पूर्व थैलेसीमिया बीमारी की जीन टेस्टिंग करा लें। इससे होने वाले बच्चों में थैलेसीमिया बीमारी होने की संभावना शून्य हो जायेगी। इस प्रकार हम थैलेसीमिया मुक्त भारत की स्थापना कर सकते है। भारत में हर वर्ष 7 से 10 हजार बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित हैं।

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