लखनऊ: जल्द 90 मीटर पार होगा मेरा भाला- नीरज चोपड़ा

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Published By Vishal Singh
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- टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण और पेरिस ओलंपिक में रजत पदक विजेता पहुंचे लखनऊ 

लखनऊ, अमृत विचार: 90 मीटर के बैरियर को पार करना आसान नहीं है। कहने में यह दूरी बेहद आसान लगती है। लेकिन इसके लिए अभी मुझे और अभ्यास की जरूरत है। मुझे भी उस दिन का बेसब्री से इंतजार है कि मेरा भाला 90 मीटर पार कर सकेगा। यह कहना था अंतरराष्ट्रीय जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा का। वह यहां पर एक ब्रांड के प्रमोशन के लिए आये थे।

यहां पर उन्होंने बताया कि फिलहाल मेरा ध्यान अपने प्रदर्शन में निरंतरता को बनाये रखने का है। रही बात 90 मीटर पार करने की तो पेरिस ओलंपिक में 89 मीटर की दूरी पार कर चुका हूं। ईश्वर ने चाहा तो जल्द ही 90 मीटर की दूरी भी तय कर लूंगा। उन्होंने बताया कि 87 मीटर के आसपास थ्रा कर टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था। पेरिस ओलंपिक में पहले छह थ्रोअरों ने इससे अच्छा प्रदर्शन किया। फाइनल के दौरान मैंने 89 मीटर के ऊपर थ्रो लगाया और रजत पदक जीता। यह थ्रो 90 मीटर थ्रो के काफी करीब था। 

नये कोच का इंतजार
नीरज चोपड़ा ने बताया कि अभी तक वह जिन कोच के निर्देशन में अभ्यास कर रहे थे, वे अब अपने परिवार के साथ समय बिताना चाहते हैं। जर्मनी के कोच जर्मनी के डॉ. बार्टोनिट्ज ने अपना पद छोड़ने का मन बना लिया है। बार्टोनिट्ज अपनी बढ़ती उम्र और पारिवारिक प्रतिबद्धता के चलते कोचिंग से किनारा कर रहे हैं। नीरज ने बताया कि बार्टोनिट्ज के साथ अच्छा समय गुजरा। उनके निर्देशन में ओलंपिक, विश्व चैंपियनशिप, कॉमनवेल्थ, एशियन गेम्स, डाइमंड लीग जैसे बड़े खेल मंचों पर पदक जीतने का मौका मिला। उनकी कमी जरूर खलेगी। नए कोच को लेकर अभी तक कोई नाम फाइनल नहीं हुआ है। जल्द ही इस पर फैसला हो जाएगा। इसके लिए मैं काफी उत्साहित हूं।

बना रहता है चोट का खतरा
पिछले दो-तीन वर्षों से इंटरनेशनल खिलाड़ी नीरज चोटों से जूझ रहे हैं। पेरिस ओलंपिक के पूर्व भी वह चोटों से जूझ रहे थे। उन्होंने बताया कि बाएं हाथ की सर्जरी सफलतापूर्वक करा ली है। लेकिन चोटों का डर बना रहता है। फिटनेस को लेकर हमेशा ही परेशानियां मेरे ऊपर हावी रही। मुकाबलों के दौरान भी डर लगा रहता था कि कहीं चोटिल न हो जाऊ।

उन्होंने बताया कि अब मेरी नजर अगले वर्ष सितंबर में होने वाली विश्व चैंपियनशिप पर है। इसके लिए तैयारी शुरू कर दी है। इस खेल को बढ़ावा देने के लिए उन्हों ने कहा कि स्कूल-कॉलेजों
के अलावा जमीनी स्तर पर इस खेल की सुविधाएं बढ़ानी होंगी। अच्छे कोच उपलब्ध कराने पड़ेगे। अधिक से अधिक प्रतियोगिताएं करानी होगी। निजी क्षेत्र को आगे आना होगा। निजी अकादमियां खोलने की जरूरत है। साथ ही अभिभावकों को कम उम्र से अपने बच्चो को इसके लिए प्रोत्साहित करना होगा।

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