वर्क प्रेशर से जुझ रहा Corporate कर्मचारी, लाइफ में NO कहना है जरूरी, रिसर्च में हुआ खुलासा

वर्क प्रेशर से जुझ रहा Corporate कर्मचारी, लाइफ में NO कहना है जरूरी, रिसर्च में हुआ खुलासा

लखनऊ, अमृत विचार। डिप्रेशन, एंग्जाइटी और अकेलापन आज के समय में सबसे बड़ी समस्या बनता जा रहा है। इसमें मिलेनियल्स (Millennials) और जेन-जी (Gen-Z) दोनो ही शामिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार अकेले एंग्जाइटी और डिप्रेशन की वजह से हर साल लगभग 12 अरब कार्यदिवसों (Work days) का नुकसान होता है। भेदभाव, उत्पीड़न, खराब कार्य परिस्थितियां, स्टिगमा आदि जैसी विभिन्न परिस्थितियां कार्यस्थलों पर व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने का कारण हो सकती हैं, जिन पर तुरंत ही ध्यान देने की आवश्यकता है। इसी लिए हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मेंटल हेल्थ दिवस मनाया जाता है। जिससे लोग अपने मेंटल हेल्थ पर ध्यान दे सकें।

हाल में हुई एक रिसर्च में यह साबित हुआ हैं कि 10 में से 8 कॉर्पोरेट एंप्लाइज ऑफिस का समय पूरा होने के बाद राइट टू डिसकनेक्ट चाहते हैं। राइट टू डिसकनेक्ट का मतलब है कि ऑफिस का समय पूरा होने के बाद उन्हें ऑफिस का कोई भी डिसटर्ब न करें। Censuswide की रिसर्च में यह भी खुलासा हुआ हैं कि 88 प्रतिशत एंप्लॉइज को ऑफिस के समय के बाद कॉल किया जाता है। वहीं 85 प्रतिशत को बीमार होने या फिर लीव पर होने के बाद भी ऑफिस से कॉल आता है।

 

कहना सीखें NO

लखनऊ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान की एचओडी डॉ. अर्चना शुक्ला ने बताया कि लाइफ में सबसे जरूरी चीज हैं NO बोलना आना। अगर आपको कोई चीज सही नहीं लग रही है तो उसे तुरंत मना कर दें, लेकिन कई बार लोग फियर ऑफ इवैल्यूवेशन की वजह से ऐसा नहीं कह पाते हैं। उन्हें यह लगता है कि सामने वाला उनके बारे में क्या सोचेगा या फिर कही वो आप के लिए कोई निगेटिव इमेज न बना ले। इसलिए प्रेशर में आकर लोग हर वो काम करने लग जाते हैं, जो उन्हें सही नहीं भी लगता है। ऐसा सिर्फ कॉर्पोरेट एंप्लॉयज के साथ में नहीं होता है बल्कि हर उस इंसान के साथ होता है। जो ना कहने में डरता हैं। हाल में कई सारे ऐसे केस सामने आए जहां कंपनी के एक्ट्रा वर्क लोड के चक्कर में लोगों ने अपनी जान गवा दी।

कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को ध्यान देना हर संगठन के लिए जरूरी है क्योंकि इससे व्यक्तियों के परफॉर्मेंस में कमी, काम से अरुचि और कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। एंप्लॉयज का काम के प्रति सेटिस्फेक्शन और प्रोडेक्टिविटी साथ-साथ में ही चलता है, लेकिन जब कार्यस्थलों में भेदभाव और वर्क हैरेसमेंट होता है तो दिमाग में तनाव बढ़ने लगता है और किसी भी काम में मन नहीं लगता है।

क्या कहते हैं बड़ी कंपनियों में काम करने वाले लोग

डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक आबादी का 60% हिस्सा काम पर है, इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि एंप्लॉयज का सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जाए। कुछ नामचीन कंपनियों में काम करने वाले एंप्लॉयज से बता करने पर पता लगा कि लिमिटेड सैलरी पर उनके के हेड उनसे ज्यादा काम करने को कहते हैं। इसके साथ ही कई सारा ऐसा ऑफिस वर्क भी करने को मजबूर करते हैं जिसके लिए वे असाइन भी नहीं हैं और एक्ट्रा समय भे देने को बोलते हैं। ऐसे में अगले दिन काम करने की इच्छा ही नहीं होती है। इस परेशानी से सबसे ज्यादा जेन-जी परेशान हैं। 

क्यों हो रही प्रॉब्लम

एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाली एंप्लॉई ने बताया कि किस तरह लगातार काम करने की वजह से डिप्रेशन का शिकार हो गई थी। एक्स्ट्रा वर्क प्रेशर उन्हें चिड़चिड़ा बना रहा था। वह किसी भी काम को पूरा नहीं कर पा रही थी। साथ ही घर पर भी वह चिड़चिड़ी होती जा रही थी। ऐसे में उन्होंने काम ही छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि सीनियर्स को यह समझ में आना चाहिए की दूसरे एम्पलाई भी ह्यूमन होता है उसे जिस काम के लिए असाइन किया जाता है। उन्हें वही काम करने के लिए देना चाहिए, ना की एक्स्ट्रा वर्क। इससे न सिर्फ उनकी प्रोडक्टिविटी पर असर पड़ता है बल्कि उनकी एक्सटर्नल लाइफ भी प्रभावित होती है।

करियर कंस्लटेंट अप्रा द्विवेदी ने भी अपने अनुभव साझा किये हैं, उन्होंने बताया कि “लगातार भोजन न कर पाना, दिनभर चिड़चिड़ा रहना मेरे लिए तनाव की वजह बन गया था। मैं एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गई थी जहां मुझे नहीं पता था कि खुद को कैसे परिभाषित करूं या काम के घंटों के बाद मैं कुछ और भी करूं। यह एक चेतावनी थी। तब से काम को घर न ले जाना प्राथमिकता बन गई। मैं खुद को परेशान किए बिना प्रबंधनीय जिम्मेदारियां निभा रही थी। चाहे कुछ भी हो, दिन में कम से कम एक बार स्वस्थ भोजन करना, परिवार के साथ समय बिताना और वर्कआउट करना अपनी डेली लाइफ में शामिल कर लिया था। काम जरूर ही महत्वपूर्ण है, लेकिन अगर इसके लिए अपने स्वास्थ्य का बलिदान देना हो तो ऐसे में वह काम नहीं रह जाता है। बल्कि इंसान को शारीरिक और मानसिक तौर पर परेशान करने का साधन हो जाता है” ।

ऑफिस के बाद कॉल करना गुन्हा

कई ऐसे देश हैं जो अपने एंप्लॉइज के प्रति बहुत ही संवेदनशील है और ऑफिस की टाइमिंग के बाद उन्हें परेशान नहीं करते हैं। आइए जानते हैं कौन से हैं वो देश-

-जर्मनी
-इटली
-स्लोवाकिया
-फिलीपींस

ऑफिस टेंशन कैसे करें दूर
सुबह से शाम तक ऑफिस में तरह-तरह के वर्क प्रेशर को झेलना और इसके बाद घर के कामों में उलझना। इसकी वजह से दिमाग पर काफी लोड़ पड़ जाता है। लेकिन ये कुछ टिप्स को फॉलो करके आप का मूड फ्रेश हो जाएगा। आइए जानते हैं की क्या कुछ है ये टिप्, एंड ट्रिक्स। अगर आप इसे घंटे-दो घंटे में 5 से 10 मिनट भी करेंगे तो आप बिल्कुल फ्रेश फील करेंगे। 

सुने अपना फेवरेट म्यूजिक 
कहते हैं की म्यूजिक कैन हील ग्रेटेस्ट प्रेशर, ऐसे में आप अपने ब्रेक टाइम में या फिर जब काम से थोड़ा फ्री हो तक म्यूजिक सुनते हैं। इससे आपकी काफी हद तक की परेशानी दूर हो जाएंगी। आप तनाव महसूस कर रहे होंगे तो आपका मूड भी फ्रेश हो जाएगा। 

दोस्तों के साथ समय बिताएं
ऑफिस में ज्यादा प्रेशर फील हो तो आपको थोड़ा समय अपने दोस्तों से साथ बिताना चाहिए। भले आप उनसे पर्सनल न मिल पाए तो वीडियो कॉल या फिर नॉर्मल कॉल पर बात करें उनसे अपनी परेशानी शेयर करें। ऐसा करने से भी मूड फ्रेश लगेगा। इसके अलावा आपके ऑफिस में कोई ऐसा दोस्त हो जिससे आप अपनी परेशानी शेयर कर सकते हैं तो उनसे बात करें या उनके साथ थोड़ा बाहर घूम सकते हैं। 15 से 20 मिनट भी बाहर से घूम कर वापस आएंगे और फिर काम करेंगे तो फ्रेश फील होगा। इससे आप टेंशन फ्री होकर काम कर पाएंगे। 

बॉस से करें खुलकर बात
अगर आपको ऑफिस में कुछ अजीब से लग रहा है। ऑफिस में किसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा है और अगर आपको लगता है की बॉस से बात करने पर कुछ हो सकता है, तो उनसे खुलकर एक बार बात करें। उन्हें अपनी परेशानी बताएं। इससे आपकी परेशानियों का कुछ हल निकल सकता है

संतुलित आहार का करें सेवन
शरीर के लिए संतुलित आहार और पर्याप्त पानी बहुत जरूरी होता है। ऐसे में आप पर्याप्त खाना और पानी नहीं पी रहे है तो आपको काफी लो फील होता है। थकान, नींद, सर दर्द, किसी काम में मन न लगना आदि लगने लगता है। ऐसे में आप घर जाने के बाद थोड़ी देर आराम करें, स्वस्थ और संतुलित आहार का सेवन करें और भरपूर नींद लें। 

काउंसलर की लें मदद
कई बार निजी और ऑफिस लाइफ में व्यक्ति इतना फस जाता है कि वह डिप्रेशन का भी शिकार हो जाता है। छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ापन, गुस्सा, तनाव होने लगता है। ऐसे में आप अपना फैमली या दोस्तों के साथ एक छोटी सी ट्रिप प्लान कर सकते हैं। वहीं अगर आपको लगता है कि आपकी परेशानी ज्यादा बड़ी है तो आप किसी अच्छे काउंसलर या अपने किसी खास दोस्त से अपनी परेशानी शेयर कर सकते हैं।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि हर किसी को काम और जीवन में आगे बढ़ने का अवसर मिले, सरकार, संगठनों और नियोक्ताओं द्वारा प्रभावी उपाय और दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।


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