प्रयागराज : जाली शैक्षणिक प्रमाण पत्रों के आधार पर प्राप्त नियुक्ति आरंभ से ही अवैध 

प्रयागराज : जाली शैक्षणिक प्रमाण पत्रों के आधार पर प्राप्त नियुक्ति आरंभ से ही अवैध 

अमृत विचार, प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक सेवानिवृत शिक्षक को सेवानिवृत्ति परिलाभों से वंचित करने के मामले में कहा कि जो व्यक्ति जाली शैक्षणिक प्रमाण पत्रों के आधार पर नियुक्ति प्राप्त करता है, उसकी नियुक्ति शुरू से ही शून्य और अमान्य होगी, साथ ही ऐसे कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले लाभों से वंचित होना पड़ेगा और उसे सुनवाई का कोई अवसर प्रदान नहीं किया जाएगा।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि जहां व्यक्ति जाली मार्कशीट या प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी सेवा में शामिल हो जाता है तो उसे अवैध और धोखाधड़ी वाली नियुक्ति का लाभार्थी माना जाता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकलपीठ ने अशोक कुमार सिंह की तीनों याचिकाओं को खारिज करते हुए पारित किया।

दरअसल जनता इंटर कॉलेज, रामकोला, देवरिया (अब कुशीनगर) में राजनीति विज्ञान के सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता में बी.एड की डिग्री शामिल है। कोर्ट ने मौजूद तथ्यों और साक्ष्यों का परीक्षण कर निष्कर्ष निकाला कि दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की ओर से सत्यापन करने पर याची की बी.एड की डिग्री जाली पाई गई। संबंधित अधिकारियों ने कोर्ट को बताया कि अगर याची ने अपने पास बी.एड की डिग्री होने का दावा नहीं किया होता तो उसे सेवा में शामिल करने का कोई कारण ही उत्पन्न नहीं होता।

कोर्ट ने यह भी माना कि भले ही बी.एड अनिवार्य मानदंड नहीं है बल्कि अधिमान्य मानदंड है। फिर भी उक्त पद के लिए बी.एड अप्रासंगिक योग्यता नहीं है, जिसका उम्मीदवारों के चयन पर कोई प्रभाव न पड़े। जांच समिति के निष्कर्ष से यह स्पष्ट है कि याची को सुनवाई का पर्याप्त अवसर दिया गया था और उसके बाद ही उसकी बर्खास्तगी का प्रस्ताव पारित किया गया। कोर्ट ने मूल नोटिस का जवाब न देने के लिए याची द्वारा प्रस्तुत चिकित्सा कारण निराधार बताए।

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