प्रयागराज : संतोषजनक स्पष्टीकरण न होने पर कंपनी को ब्लैकलिस्ट करना अनुचित
अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक कंपनी को अनिश्चित काल के लिए ब्लैकलिस्ट करने के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि काली सूची में डालने का आदेश सभी पहलुओं पर विचार करते हुए पारित किया जाना चाहिए और इसे लापरवाही से पारित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इसका उस व्यक्ति पर प्रभाव पड़ता है, जिसे ऐसी काली सूची में डाला जाता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि काली सूची में डालने से कंपनी को दीवानी परिणाम भुगतने होते हैं। मौजूदा मामले में कार्यकारी निदेशक, राज्य जल एवं स्वच्छता मिशन, उत्तर प्रदेश, लखनऊ ने याची को जल जीवन मिशन की किसी भी परियोजना को आपूर्ति करने से रोकने का आदेश पारित किया। इस आदेश को इस आधार पर चुनौती दी गई कि याची द्वारा प्रस्तुत उत्तर को संतोषजनक न मानकर विचार नहीं किया गया। यह भी तर्क दिया गया कि अनिश्चित काल के लिए ब्लैकलिस्टिंग नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने पाया कि प्राधिकरण को कोई भी आदेश पारित करने से पहले उत्तर पर पूरी तरह से विचार करना चाहिए था।
केवल "उत्तर संतोषजनक नहीं है" शब्द का उपयोग करना किसी कंपनी को ब्लैकलिस्ट करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं है। हालांकि विपक्षी के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता के उत्तर पर विचार करने और नए आदेश पारित करने के निर्देश के साथ ब्लैकलिस्टिंग आदेश को रद्द कर दिया गया। अंत में न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने बुलंदशहर स्थित मेसर्स हाई टेक पाइप लिमिटेड की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि अगर ब्लैकलिस्टिंग का निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों या आनुपातिकता के सिद्धांत के विरुद्ध है, तो इसकी न्यायिक समीक्षा करने की आवश्यकता है।
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