गोंडा: कॉशन देने में हुई 2 मिनट की देरी के चलते पलटी थी चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस, CRS टीम ने संरक्षा आयुक्त को सौंपी जांच रिपोर्ट 

गोंडा: कॉशन देने में हुई 2 मिनट की देरी के चलते पलटी थी चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस, CRS टीम ने संरक्षा आयुक्त को सौंपी जांच रिपोर्ट 

गोंडा, अमृत विचार। 18 जुलाई को जिले में हुए रेल हादसे के मामले में जांच कमेटी ने इंजीनियरिंग विभाग को दोषी माना है। जांच रिपोर्ट के मुताबिक ट्रैक की खराबी की जानकारी होने के बावजूद इंजीनियरिंग विभाग ने समय रहते कार्रवाई नहीं की। ट्रेन को कॉशन भी समय से नहीं दिया गया। कॉशन देने में हुई 2 मिनट की देरी के कारण चंडीगढ़ डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस मोतीगंज स्टेशन से बिना कॉशन गुजर गई और आगे जाकर पिकौरा गांव के समीप हादसे का शिकार हो गई। सीआरएस की 6 सदस्यीय जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट रेलवे संरक्षा आयुक्त को सौंप दी है। 

चंडीगढ़ से असम जा रही चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस ट्रेन 18 जुलाई दोपहर 2.31 बजे झिलाही स्टेशन के पहले पिकौरा गांव के समीप दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। ट्रेन की 3 बोगियां पटरी से उतरकर ट्रैक किनारे पलट गई थी जबकि अन्य कई डिब्बे भी पटरी से उतर गए थे। हादसे के बाद जांच के लिए रेल संरक्षा आयुक्त ने 6 सदस्यीय टीम का गठन कर मौके पर भेजा था। टीम ने घटनास्थल की पड़ताल करने के बाद अपनी रिपोर्ट संरक्षा आयुक्त को सौंप दी है। जांच टीम ने इस हादसे के लिए पूरी तरह से इंजीनियरिंग विभाग को जिम्मेदार ठहराया है। जांच टीम के मुताबिक इंजीनियरिंग विभाग को रेल ट्रैक में खराबी होने की जानकारी पहले से थी। 

हादसे के एक दिन पहले ट्रैक की मरम्मत भी हुई थी। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि रेल ट्रैक सही से नहीं बंधा था। हादसे वाले दिन दोपहर 1:30 बजे ट्रैक पर गड़बड़ी पकड़ी गई थी। इसके बाद ट्रेनों को 30 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलाने का कॉशन देना था लेकिन कॉशन देने में देरी हुई। मोतीगंज स्टेशन मास्टर को 2:30 बजे 30 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से कॉशन का मेमो प्राप्त कराया गया लेकिन उसके पहले 2.28 बजे मोतीगंज स्टेशन से चंडीगढ़ डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस ट्रेन गुजर चुकी थी। इससे ट्रेन के लोको पायलट को कॉशन की जानकारी नहीं हो सकी और ट्रेन अपनी रफ्तार से चलती रही।

कॉशन देने में देरी के कारण ट्रेन के लोको पायलट को घटना का अंदेशा नहीं हुआ इसके चलते ट्रेन 86 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गुजर गई। इसके ठीक तीन मिनट बाद ट्रेन 2.31 बजे पिकौरा गांव के समीप ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई। जांच रिपोर्ट में कहा गया पटरी की आईएमआर से गड़बड़ी मिलने के बाद कॉशन ऑर्डर मिलने तक साइट पर सुरक्षा का इंतजाम किया जाना चाहिए था जो कि नहीं किया गया।इसी के चलते ट्रेन बेपटरी हुई।‌

लोको पायलट समेत 6 रेल अधिकारियों के दर्ज‌ किए गए बयान 
जांच टीम ने हादसे की सच्चाई जानने के लिए ट्रेन के लोको पायलट त्रिभुवन नारायण और सहायक लोको पायलट राज समेत 6 रेल अधिकारियों ट्रैफिक इंस्पेक्टर गोंडा सीसी श्रीवास्तव, लोको इंस्पेक्टर दिलीप कुमार, सीनियर सेक्शन इंजीनियर गोंडा वेद प्रकाश मीना, सीनियर सेक्शन इंजीनियर पीवे मनकापुर पीके सिंह के बयान दर्ज किए गए‌। 

ट्रेन के लोको पायलट त्रिभुवन नारायण ने बताया कि मोतीगंज स्टेशन से दोपहर 2.28 बजे ट्रेन 25 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से निकली थी। किलोमीटर संख्या 638/12 पर उसे ज़ोर का झटका लगा। खड़खड़ की आवाज आने के साथ बीपी प्रेशर कम होने लगा। लगभग 80 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से दौड़ रही ट्रेन में इमरजेंसी ब्रेक का इस्तेमाल कर पेंटो डाउन किया। पीछे देखा तो ट्रेन की बोगियां उतर चुकी थी। फ्लैश लाइट जलाकर सहायक लोको पायलट राज को बगल की लाइन की सुरक्षा के लिए भेज दिया। 

रेल अफसरों की ज्वाइंट रिपोर्ट में कहा गया कि पटरी के तीन मीटर तक फैलाव के कारण पहिया उतरा। इंजन निकलने के बाद यह स्थिति बनी। लोको पायलट को झटका लगा तो उसने इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया। इस पर ट्रेन 400 मीटर दूर जाकर रुकी। लेकिन तब तक 19 बोगियां पटरी से उतर चुकी थी। इस दौरान 3:30 मीटर की दूरी तक ट्रैक भी क्षतिग्रस्त हो गया।

जांच टीम के एक‌ सदस्य ने रिपोर्ट पर उठाए सवाल 
संरक्षा आयुक्त को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में टीम के पांच सदस्य एक मत दिखे। जबकि एक सदस्य ने इस रिपोर्ट पर सवाल खड़ा किया। टीम के सदस्य पीके सिंह ने कहा कि बिना सभी तथ्यों को देखें रिपोर्ट बनाई गई है। जो कि बिल्कुल गलत है। पीके सिंह की तरफ से स्पीड मापने के पैमाने, मैकेनिक की ओर से कोई मेजरमेंट नहीं देने और कमर्शियल की तरफ से पार्सल लोड की जानकारी देने पर सवाल उठाया गया है। उन्होंने कहा कि यह टोटली इंप्रॉपर ब्रेकिंग के कारण हुआ है। इसके साथ ही व्हील मेजरमेंट के बिना पहियों में बताई गई गड़बड़ी पर सवाल खड़ा किया गया है।

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