UP News: तलाक पर ही खत्म हो रहा घरेलू विवाद, मयस्थता केंद्र विफल, जानें वजह
परिवार न्यायालय में मध्यस्थता केंद्र की भूमिका सिमट रही
अमित कुमार पाण्डेय/लखनऊ, अमृत विचार। राजधानी के आठ परिवारिक न्यायालयों में मध्यस्थता केंद्रों की भूमिका सिमटती जा रही है। दंपत्तियों के घरेलू विवाद तलाक पर ही जाकर थम रहे हैं। बीते साल से अब तक इन न्यायायलों में करीब 19 हजार केस आए, जिसमें महज चार हजार केस ही निस्तारित हो पाए। बाकी 15 हजार मामले तलाक पर ही जाकर खत्म हुए।
परिवार न्यायालय बार एसोसिएशन के महामंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता सरताज अली ने बताया कि मध्यस्थता केंद्र में दंपतियों को अवसर दिया जाता है कि बातचीत से आपस का मनमुटाव हल कर सकें। लेकिन, कुछ साल से काउंसलिंग के बाद भी पति-पत्नी साथ रहने को राजी नहीं हो रहे। इसकी वजह से उन्हें कानूनी तौर अलग होने की अनुमति देनी पड़ रही है। तलाक के ज्यादातर केस ऐसे हैं जिनमें पति-पत्नी कामकाजी हैं। इसके अलावा कुछ मामलों में छोटे-छोटे झगड़े इतना बड़ा रूप ले रहे कि बात तलाक तक पहुंच रही है।
बहू की नौकरी से हो गई परेशानी
राजाजीपुरम निवासी एक युवती की दिसंबर 2022 में कानपुर देहात के युवक से शादी हुई। शादी के पहले से वो रायबरेली में सरकारी नौकरी कर रही थी। शादी के बाद पति और ससुराल वालों को उसके नौकरी से दिक्कत हो गई।मामला फैमिली कोर्ट पहुंचा तो दोनों को मध्यस्थता केंद्र भेजा गया। लेकिन, दो तारीख के बाद ही दोनों ने तलाक ले लिया।
बच्चा पैदा होने में देर हुई तो खत्म कर दिया रिश्ता
मटियारी निवासी एक दंपत्ति ने सिर्फ इसलिए रिश्ता खत्म कर दिया क्योंकि पत्नी पति के कहे अनुसार बच्चा पैदा करने को राजी नही हुई। दोनों प्राइवेट नौकरी करते हैं। पति बच्चे के लिए दबाव बना रहा था, लेकिन पत्नी आर्थिक रुप से मजबूत होने के बाद बच्चा चाह रही थी। यह मामला मध्यस्थता केंद्र पहुंचा तो पहली बार में दोनों ने नकार दिया।
पति ने परिवार नहीं छाेड़ा, पत्नी ने उसे छोड़ दिया
कृष्णानगर निवासी युवक की 2020 में उन्नाव की युवती से शादी हुई। शादी के कुछ महीने बाद ही पत्नी युवक पर परिवार से अलग रहने का दबाव बनाने लगी। युवक इसपर राजी नही हुआ तो पत्नी ने फैमली कोर्ट में केस फाइल कर दिया। न्यायालय ने मामले को मध्यस्थता केंद्र भेजकर दोनों की काउंसलिंग कराई। लेकिन बात नहीं बनी और दोनों तलाक ले लिया।
तलाक के बढ़ते मामले बड़ी समस्या पैदा कर रहे हैं। इसका असर उन बच्चों पर पड़ रहा जिनके होश संभालने से पहले उनके माता-पिता अलग हो रहे हैं। कई केस ऐसे भी सामने आए जिसमें तलाक के कुछ साल बाद महिला-पुरुष बच्चों के भविष्य का हवाला देकर फिर से साथ रहने को मजबूर हुए। अनुराग अरोड़ा, वरिष्ठ अधिवक्ता, पारिवारिक न्यायालय।
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