हाईकोर्ट ने हत्या के आरोपियों को बरी करने के अदालत के फैसले को पलटा, सुनाई आजीवन कारावास की सजा

हाईकोर्ट ने हत्या के आरोपियों को बरी करने के अदालत के फैसले को पलटा, सुनाई आजीवन कारावास की सजा

प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 41 साल पुराने (1983 में) हत्या के एक मामले में दो आरोपियों को बरी करने के स्थानीय अदालत के एक फैसले को पलटते हुए आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने सरकार की अपील स्वीकार करते हुए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के तहत आरोपी प्यारे सिंह और छोटकू को बरी करने के निर्णय को पलट दिया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 

अदालत ने गोरखपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि दोनों आरोपी प्रतिवादियों को गिरफ्तार कर यहां सुनाई गई सजा काटने के लिए जेल भेजा जाए। पुलिस के मुताबिक, गंगा नाम के व्यक्ति की 22 सितंबर, 1978 को नृशंस हत्या कर दी गई थी। 

घटना के अगले दिन गोरखपुर के घुघुली थाना में सात लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज किया गया और जांच के बाद इन आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया। मुकदमा दर्ज होने के बाद गोरखपुर के अपर सत्र न्यायाधीश ने 21 जनवरी, 1981 को आरोपियों अयोध्या, सनहू, छांगुर, लखन और राम जी को हत्या का दोषी पाया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हालांकि इसी निर्णय में दो अन्य आरोपियों प्यारे और छोटकू को बरी कर दिया गया। 

अदालत ने सात मई 2024 को दिए अपने निर्णय में कहा, ''तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने और आरोपियों प्यारे सिंह और छोटकू को निचली अदालत द्वारा बरी किए जाने के निर्णय में दर्ज तथ्यों की समीक्षा के बाद हमारा विचार है कि निचली अदालत ने साक्ष्य को सही दृष्टिकोण से नहीं देखा।'' अदालत ने कहा, ''अभियोजन पक्ष ने साक्ष्य के आधार पर आरोपियों का दोष पूरी तरह से साबित किया। इसलिए प्यारे सिंह और छोटकू को बरी करने का निर्णय पलटा जाता है।''  

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