रामपुर : तापमान बढ़ते ही गिरने लगा पशुओं में दुग्ध उत्पादन, बेहतर रखने के लिए यह करें पशुपालक

दुधारू पशुओं की उचित देखभाल कर बढ़ाया जा सकता है दुग्ध उत्पादन,दूधिये पानी की मात्रा बढ़ाकर भरपाई करने लगे...पशुओं को चारे के साथ खिलाएं नमक और जौ का आटा  

रामपुर : तापमान बढ़ते ही गिरने लगा पशुओं में दुग्ध उत्पादन, बेहतर रखने के लिए यह करें पशुपालक

18- रामपुर की एक पशुशाला में बंधे भैंसवंशीय पशु।

रामपुर, अमृत विचार। तापमान बढ़ने लगा है और इसके साथ दुग्ध का उत्पादन भी कम होने लगा है। आपूर्ति पर इसका असर शुरू हो गया है। शुद्ध दूध मिलने की गारंटी नहीं रह गयी है। दूधिये पानी की मात्रा बढ़ाकर इसकी भरपाई करने लगे हैं। जिला मुख्य पशु चिकित्साधिकारी का कहना है पशुशाला में पंखे चलाने, पशुओं को ठंडे पानी से नहलाने, पशुशाला में छिड़काव करने से पशुओं का दुग्ध कम नहीं होगा। कहते हैं कि पशुओं की देखभाल में लापरवाही भी दुग्ध उत्पादन में कमी का एक कारण है।

प्रतिदिन दूध का उत्पादन का औसत करीब आठ लाख लीटर है लेकिन यह धीरे-धीरे घट रहा है। जिले में 353580 भैंस वंशीय पशु हैं। जिले में इसके पीछे आमतौर पर तापमान में वृद्धि को कारण माना जा रहा है। भैंस के दूध में कुछ ज्यादा ही कमी आई है। कुल उत्पादित दूध का अस्सी प्रतिशत पीने के काम आता है। शेष का इस्तेमाल मिठाई, खोवा और छैना वगैरह के लिये होता है। खास बात यह है कि दूध के उत्पादन में गिरावट के बाद भी आपूर्ति में कोई कमी नहीं हो रही है। साफ है कि दूधिये पानी मिलाकर इस कमी की भरपाई कर रहे हैं। पचास से साठ रूपये के बीच प्रति लीटर दूध की आपूर्ति होती है।

गर्मी और चिलचिलाती धूप से मोटी चमड़ी वाले पशु खासकर भैंस का दूध कम हो जाता है। साहिवाल प्रजाति की गाय की कमी है। फिर चारे की कमी से भी दूध के उत्पादन में गिरावट स्वाभाविक है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. महेश कुमार कौशिक बताते हैं कि मुर्रा भैंस आमतौर पर 18 से 20 लीटर दूध प्रतिदिन देती है। जबकि, देसी भैंस आठ से 10 लीटर दूध प्रतिदिन देती है। जबकि, बंधावरी भैंस 10 से 12 लीटर दूध प्रतिदिन देती है। यदि पशुपालक पशुओं की उचित देखभाल करें तब दुग्ध के गिरते उत्पान पर अंकुश लगाया जा सकता है।

दुग्ध उत्पादन बेहतर रखने के लिए यह करें पशुपालक

  •  पशुओं को शाम के समय नहलाएं।
    पशुओं के बांधने के स्थान पर छाया हो।
    पानी की कमी न होने दें।
    हो सके तो पुराना भूसा दें।
    नया भूसा पानी से धोकर दें।
    पशुशाला में पंखे लगाएं।
    चारा में जौ का आटा और नमक जरूर मिलाएं।
    सप्ताह में एक बार सरसों के तेल में गुड़, बेसन मिलाकर पिलाएं।

किलनी कीट पशुओं पर चिपका रहता है और उनका खून चूसता है। इसके अंडे पशुओं के बांधने के स्थान पर गिर जाते हैं। बाद में ये पनप कर फिर से पशुओं के शरीर पर चिपक जाते हैं। इनसे बचाने के लिए पशुओं को नियत स्थान से हटा कर दूसरे स्थान पर बांधे। उनके बांधने के नियत स्थान पर चूना पाउडर का छिड़काव करें। 10 से 15 दिन के अंदर चार से पांच बार चूना पाउडर डालने से किलनी से निजात मिल सकती है।-डा. महेश कुमार कौशिक, जिला मुख्य पशु चिकित्साधिकारी  

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