बाराबंकी ने दिया था पैगाम, जो रब है वहीं राम, हनुमान जी को हाथों से लड्डू खिला दिखाई भक्ति

कवेन्द्र नाथ पाण्डेय, बाराबंकी, अमृत विचार। अयोध्या में बन रहे श्रीराम मंदिर में प्राण- प्रतिष्ठा का उत्साह विश्व भर में है। रामनगरी के साथ बाराबंकी का विकास युद्व स्तर पर किया जा रहा। इसको लेकर बाराबंकी वासियों में दोगुनी खुशी है। सिर्फ राममंदिर और जिले के विकास को लेकर नहीं। यहां के सूफी और संतों का जुड़ाव सदियों से राम और हनुमान से रहा है। यहां के सूफी और संतों ने देश- दुनिया में इसकी पहचान भी कराई। ऐसे में बाराबंकी का विकास इन सूफी संतों की तपोस्थली तक दिखे। इसके भी प्रयास किए जा रहे है।
अवध क्षेत्र का बाराबंकी जिला पहले बारह क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। यहां के देवा में सन 1819 जन्मे सूफी संत हाजी वारिस अली शाह का प्रभु राम से लगाव किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में उनका जो रब है वही राम है का संदेश पूरी दुनिया में सदियों से इंसानियत का पैगाम दे रहा है। यहां के कई सूफी संतो ने तो गुरू दीक्षा में राम नाम लेकर अयोध्या से जुडे़ रहे। वर्तमान में सतरिख कभी सप्तऋषियों की तपोस्थली रही। इस सप्तऋषि आश्रम में प्रभु श्री राम ने भी शिक्षा प्राप्त की।
यहीं नहीं कोटक वन रहे वर्तमान में कोटवाधाम के सतनामी सम्प्रदाय के संस्थापक जगजीवन साहब भी हनुमान जी के उपासक रहे है। इनकी समाधि स्थल के सामने हनुमान जी मंदिर स्थापित है। इनकी चौथी पीढ़ी के संत जसकरन दास की हनुमान जी की भक्ति ने तो कोटवाधाम में दूसरी हनुमान गढ़ी स्थापित कर दी।
बताते है कि जसकरन दास के एक हाथ में चाबुक और दूसरे में हुक्का इनकी पहचान थी। वर्ष 1910 में वह अयोध्या हनुमान गढ़ी पहुंचे। जहां पर सीढि़यों पर बैठकर हुक्का पीने लगे। इस पर मंदिर के कुछ संतों की बात से आहत होकर वह उठे और सरयू के किनारे आकर बैठ गए।
इसी दौरान हनुमान गढ़ी के कपाट अपने आप बंद हो गए। इसकी खबर हनुमान गढ़ी के तत्कालीन महंत रघुनाथ दास को हुई तो उन्होंने कहाकि आप लोगों ने संत का अपमान किया है। उनको ससम्मान वापस लाने पर ही मंदिर के कपाट खुलेंगे।
जब जसकरनदास को लाया गया तो उन्होंने संकटमोचन को अपने हाथ से लड्डू खिलाकर अपनी भक्ति दिखाई। यहीं से हनुमानगढ़ी की रज लाकर उन्होंने कोटवाधाम में दूसरी हनुमान गढ़ी स्थापित की। उसके बाद नियमित हनुमान जी की पूजा कर अपने हाथ से लड्डू खिलाते थे। हनुमान गढ़ी के बंटवारे में 25 प्रतिशत की हिस्सेदारी अभी भी कोटवाधाम की दूसरी हनुमान गढ़ी को भेजी जाती है।
भक्ति व शक्ति से भारत केशरी बने संत
टिकैतनगर के दुल्हदेपुर कुटी के संत बाबा हरीशंकर दास ने कुश्ती के क्षेत्र में भारत केशरी बन देश- दुनिया में अपना नाम कमाया। वह हनुमान गढ़ी से जुडे़ थे हुनमान जी की शक्ति व भक्ति का उनकों आशीर्वाद था। इसी के बल पर टीवी सीरियल रामायण में हनुमान का पात्र निभाने वाले दारा सिंह को भी बाबा हरीशंकर दास ने कुश्ती में चित्त किया। इंग्लैंड से आए एक गोरे पहलवान को मात दी। कुश्ती में भारत केशरी बन बाबा हरीशंकर ने बाराबंकी का गौरव बढ़ाया। हनुमान गढ़ी में उनकी हिस्सेदारी उनके शिष्य बलराम दास निभा रहे है।
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