बरेली पुलिस ने कई मौके पर कराई विभाग की किरकिरी, पैसों के लिए तो कहीं शादी का झांसा...
बरेली, अमृत विचार। मारना और मारने की कीमत भी वसूल करना, यह कहावत पुलिस के लिए बनी है और कोई दोराय भी नहीं है कि पुलिस का अब इतना ही भर डर लोगों में रह गया है। न्याय दिलाने और उलझे केसों को अपनी काबिलियत के दम पर खोलना पुरानी बात हो चुकी है। साल 2023 में बरेली पुलिस ऐसे एक नहीं, तमाम सवालों में घिरी।
शाही क्षेत्र में नौ महिलाओं की हत्या करने वाला का पता लगाने में नाकामी पूरे महकमे की क्षमता पर सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न बनी। अपराधियों से साठगांठ और भ्रष्टाचार के मामले भी पूरे साल सिर चढ़कर बोलते रहे। कुछ मामलों में निचले दर्जे के पुलिस वालों पर तो कार्रवाई हुई लेकिन किसी भी स्तर पर अफसरों की भूमिका की एक बार भी पड़ताल नहीं की गई। दिग्विजय मिश्रा की रिपोर्ट...
पैसों की दीवानी पुलिस...
1-जुआ नहीं लूट पाए तो बेकसूर किसान को पीटकर मार डाला, पकड़े भी नहीं गए
यह कारनामा थाना भमोरा की सरदारनगर चौकी पर तैनात पुलिस वालों का था। आरोपों के मुताबिक इन पुलिस वालों ने दिवाली से पहले ही जुआ लूटने की मुहिम शुरू कर दी थी। दिवाली से सिर्फ एक दिन पहले अपने इंचार्ज की अगुवाई में चौकी के सारे पुलिस वाले एक दलाल की एंबुलेंस में बैठकर गांव आलमपुर जाफराबाद में जुआ लूटने पहुंचे।
जुआरी हाथ आने से पहले ही निकल भागे तो पुलिस ने गांव के ही 48 वर्षीय किसान संतोष शर्मा को पकड़कर उनके नाम-पते पूछने शुरू कर दिए। गांव में दुश्मनी हो जाने के डर से संतोष ने नाम बताने से इन्कार किया तो पुलिस वालों ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया।
लात-घूंसों और राइफल की बट से इतना पीटा कि दो दिन बाद उनकी अस्पताल में मौत हो गई। प्रारंभिक जांच में पुलिस वालों पर लगे आरोपों की पुष्टि होने पर एसएसपी के आदेश पर इंचार्ज टिंकू कुमार समेत चौकी के सभी पुलिस वालों के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज कर ली गई लेकिन बिथरी विधायक डॉ. राघवेंद्र शर्मा और एसपी देहात मुकेश चंद मिश्रा के आश्वासन के बाद भी आरोपी पुलिस वालों में से एक को भी गिरफ्तार नहीं किया गया।
2- स्मैक की तस्करी करते हुए उत्तराखंड में पकड़ा गया थाना कैंट का सिपाही
थाना कैंट में तैनात सिपाही रविंद्र सिंह को बीडीएस और एमसीए के दो छात्रों के साथ 23 सितंबर को एक किलो से ज्यादा स्मैक के साथ उत्तराखंड के लालकुंआ में पकड़ा गया तो एक बार फिर साबित हुआ कि नाजायज कमाई के लिए कुछ पुलिस वाले किस हद तक गिर चुके हैं।
उत्तराखंड पुलिस ने अपने राज्य में इसे स्मैक की सबसे बड़ी बरामदगी करार दिया था। इससे पहले बरेली में पुलिस वालों पर स्मैक तस्करों की मदद के कई बार आरोप लगे थे। फतेहगंज पश्चिमी की पुलिस चौकी में स्मैक तस्करों की पंचायत कराने और अधिकारियों के नाम पर पैसे मांगने के ऑडियो वीडियो तक वायरल हुए। अफसरों ने कभी स्मैक तस्करों और पुलिस वालों के बीच बढ़ती नजदीकी को गंभीरता से नहीं लिया। इसी वजह से ऐसी साठगांठ के मामले जब-तब लगातार सामने आते रहे।
3- जब सिपाहियों ने ही लगाए थाना प्रभारी और मुंशी पर दिन भर वसूली के आरोप
सितंबर में थाना सिरौली के तीन सिपाहियों की आपसी बातचीत का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वे थाना प्रभारी और मुंशी पर थाने को दलाली का अड्डा बना देने का आरोप लगा रहे थे। सिपाही वीडियो में कहते दिख रहे थे कि थाना प्रभारी और मुंशी दिन भर वसूली करने में जुटे रहते हैं, फरियादियों के काम नहीं हो पा रहे हैं। वीडियो उच्चाधिकारियों तक पहुंचा तो सीओ आंवला को जांच दी गई लेकिन जांच का कोई नतीजा सामने नहीं आया। उच्चाधिकारियों ने भी दोबारा सीओ से कोई पूछताछ नहीं की।
4- रिश्वत वसूलने की योजना बनाते दो दरोगा का ऑडियो पहुंचा एसएसपी के पास
नवंबर में थाना शेरगढ़ के दो दरोगा की फोन पर आपसी बातचीत का एक ऑडियो वायरल होकर एसएसपी के पास पहुंचा जिसमें वे किसी फरियादी से दस हजार रुपये की रिश्वत वसूल करने की योजना बना रहे थे। एसएसपी ने दोनों को निलंबित कर दिया था। पूरे साल में ऐसे भ्रष्टाचार के ढेर मामले सार्वजनिक हुए लेकिन अफसरों ने इनमें से सभी मामलों में कार्रवाई नहीं की।
5- एसपी ट्रैफिक के नाम पर वसूली, सिपाही सस्पेंड एसपी सिटी की जांच का नतीजा नहीं आया सामने
अक्टूबर में वायरल हुए एक और ऑडियो ने तत्कालीन एसपी ट्रैफिक जैसे बड़े पुलिस अधिकारी पर भी सवाल खड़े किए। यह ऑडियो यूपी 112 के कार्यालय में तैनात सिपाही पुष्पेंद्र सिंह रजत और पीआरवी 175 पर तैनात हेड कांस्टेबल अब्दुल कादिर के बीच की बातचीत का था। इसमें पुष्पेंद्र अब्दुल से इशारों-इशारों में यूपी 112 के नोडल अधिकारी एसपी ट्रैफिक के लिए पैसों की मांग कर रहा था।
इस ऑडियो ने पुलिस महकमे की जबर्दस्त किरकिरी कराई। एसएसपी ने सिपाही पुष्पेंद्र को तो सस्पेंड किया ही, एसएसपी ट्रैफिक से भी पीआरवी में तबादलों का अधिकार छीन लिया। इस मामले की जांच एसपी सिटी को सौंपी गई लेकिन इस जांच का भी कोई नतीजा सामने नहीं आया।
अय्याशी में भी मशगूल...
1- शादी का झांसा देकर लिव इन में रहा, गर्भवती हुई तो टुकड़े-टुकड़े करने दी धमकी देने लगा
साल 2023 में पुलिस वालों के खिलाफ अय्याशी और महिलाओं के खिलाफ अपराध के भी कई मामले सामने आए। कोतवाली में तैनात सिपाही हरिओम सिंह पर एक युवती को शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगा। युवती के मुताबिक वह तीन महीने तक उसके साथ लिव इन में रहा।
गर्भवती होने के बाद उसने शादी करने को कहा तो इन्कार कर दिया। उससे गर्भपात कराने को कहकर दूसरी जगह शादी की तैयारी में जुट गया। विरोध करने पर उसे टुकड़े-टुकड़े करने की भी धमकी दी। युवती की शिकायत पर तत्कालीन एसएसपी प्रभाकर चौधरी के निर्देश पर हरिओम सिंह चौहान के खिलाफ दुष्कर्म के साथ एससी/एसटी एक्ट और कई दूसरी धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की गई। थाना सुभाषनगर के सिपाही शाहनवाज पर भी इसी तरह एक युवती के साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगा। एसएसपी घुले सुशील चंद्रभान ने उसे निलंबित कर उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी।
2- महिला सिपाही के चक्कर में थाना बहेड़ी में दो सिपाहियों के बीच चलीं गोलियां
यह शर्मनाक घटना सितंबर में हुई। एक महिला सिपाही को लेकर थाने में तैनात दो सिपाहियों के बीच गोलियां चल गईं। छानबीन में पता चला कि थाने के मुंशी मोनू पांडेय के महिला सिपाही से नजदीकी संबंध थे, इसके बावजूद थाने का ही सिपाही योगेश चहल भी महिला सिपाही के पीछे पड़ गया।
मोनू और योगेश के बीच इस पर तनातनी शुरू हुई। पहले महिला सिपाही के घर के बाहर दोनों में मारपीट हुई फिर मोनू ने एक दरोगा की सरकारी पिस्टल से थाने में ही योगेश पर गोली चली दी। एसएसपी ने इस घटना के बाद दोनों सिपाहियों के साथ घटना को छिपाने के आरोप में थाने में तैनात दोनों इंस्पेक्टरों समेत पांच पुलिस वालों को सस्पेंड किया था।
खूनखराबा रोकने में नाकाम...77 हत्याओं से दहला 2023
कटरी में एक साथ तीन लोगों को गोलियों से भूनने की वारदात से हुई शुरुआत
साल की शुरू में ही खूनखराबे की घटनाओं ने जिले के लोगों को दहलाना शुरू कर दिया। शुरुआत 10 जनवरी को फरीदपुर इलाके में बदायूं की सीमा से सटी कटरी के गांव गोविंदपुर में जमीनों पर कब्जे के लिए ताबड़तोड़ गोलियां चलीं और तीन लोगों की हत्या कर दी गई। इसके बाद पूरा साल हत्या की वारदातों से थर्राता रहा।
साल के अंत में हर महीने छह हत्या के साथ यह ग्राफ 77 लोगों की हत्या तक पहुंच गया। जिन घटनाओं में नामजदगी हुई, उनमें तो पुलिस ने हत्यारोपियों को गिरफ्तार किया, बाकी में हाथ झाड़कर बैठ गई। शाही इलाके में नौ महिलाओं की हत्या का सिलसिला पुलिस के लिए अंत तक रहस्यमयी बना रहा।
नौ महिलाओं की हत्याओं के बाद खेतों पर ड्रोन उड़ाकर रह गई पुलिस
शाही क्षेत्र में एक के बाद एक नौ महिलाओं की हत्या की घटनाओं से आसपास के इलाकों की महिलाएं कई महीने तक सहमी रहीं। हत्या की ज्यादातर वारदातें नदी से ढाई किमी दायरे में दोपहर 12 से शाम सात बजे के बीच हुईं। शुरू में पांच हत्याओं को पुलिस ने गंभीरता से ही नहीं लिया। इसके बाद पूरे इलाके में जब भारी दहशत फैलनी शुरू हुई, तब कहीं अधिकारी सक्रिय हुए। एडीजी पीसी मीना और आईजी डॉ. राकेश सिंह खुद घटनास्थलों का निरीक्षण करने पहुंचे।
इसके बाद हत्यारे की तलाश के लिए इलाके में खेतों के ऊपर ड्रोन उड़ाने और रास्तों पर सीसीटीवी कैमरे लगवाने का दौर चला लेकिन हत्यारे का पता नहीं लग पाया। दो महिलाओं की हत्याओं का पुलिस ने जरूर खुलासा करने का दावा किया लेकिन उन पर भी सवाल उठते रहे। इन हत्याओं पर पुलिस की नाकामी और बेपरवाही का मुद्दा मीरगंज विधायक डॉ. डीसी वर्मा ने विधानसभा में भी उठाया। पुलिस इसके बाद और सक्रिय हुई लेकिन हत्यारे का पता फिर भी नहीं लगा पाई।
बलवे की हर महीने सात घटनाएं
ताबड़तोड़ हत्याओं के साथ बलवे की घटनाएं भी खूब हुईं। हर माह सात बलवे होने का औसत आया। पूरे साल में ऐसी 87 घटनाएं हुईं। दहेज के लिए 48 महिलाओं को मारा गया। दहेज हत्याएं हुई।
फिर भी पुलिस रिकॉर्ड में घट गए अपराध
पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 2022 में डकैती की एक वारदात हुई थी लेकिन 2023 में कोई वारदात नहीं हुई। लूट नौ से घटकर 26 और हत्या 81 से घटकर 81 रह गईं। दहेज हत्या में भी 54 और 48 का फर्क रहा। हत्या की कोशिश की घटना 149 की तुलना में 133 हुई। बलवे की घटनाएं 117 से कम होकर 87, अपहरण 320 से घटकर 244, दुष्कर्म 26 से 17 और पॉक्सो एक्ट के मामले 236 से घटकर 228 रह गए। हालांकि पुलिस पर अपराधों के संक्षिप्तीकरण के भी आरोप लगते रहे। इनमें सबसे प्रमुख सीबीगंज की जलआकाश फैक्ट्री के गोदाम में हुई डकैती की वारदात को चोरी में दर्ज करने का था।
2022 की तुलना में 2023 में अपराधों की संख्या में गिरावट आई है। अपराधों को और नियंत्रित करने के लिए सभी थाना प्रभारियों को सख्त निर्देश दिए हैं। सभी थाना क्षेत्रों गश्त बढ़ाने के साथ जनता से संवाद कर जनता और पुलिस में समन्वय और बेहतर बना कर काम करें--- घुले सुशील चंद्रभान, एसएसपी।
जाम की चिंता छोड़ नोट गिनती रही ट्रैफिक पुलिस
पुलिस ने शहर का ट्रैफिक संभालने की जिम्मेदारी भी पूरी नहीं की। साल भर चालान काटने के रिकॉर्ड जरूर बनाए। शहर में ताबड़तोड़ चालान काटने से भी काम नहीं चला तो गांव-देहात के चकरोडों पर जाकर भी किसानों के चालान काटे। इस बीच शहर की हर सड़क जाम से जूझती रही।
कई बार पुलिस-प्रशासन के उच्चाधिकारी भी जाम में फंसे लेकिन फिर भी कोई बदलाव नहीं आया। तत्कालीन एसपी ट्रैफिक राममोहन सिंह के प्रयोगों ने ट्रैफिक सिस्टम की और रेड़ मार दी। बदायूं ट्रांसफर होने से पहले उनका ऑनलाइन चालान प्रक्रिया को ठप कर देने का भी कारनामा कमिश्नर सौम्या अग्रवाल ने पकड़ा।
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