बड़ा नया खतरा

बड़ा नया खतरा

डीपफेक दुनिया भर में तेजी से बढ़ती हुई समस्या बन गई है, क्योंकि कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) की शक्ति अब इंटरनेट पर उपयोग के लिए आसानी से उपलब्ध है। प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ डीपफेक का पता लगाना कठिन होता जा रहा है। सरकार ने एआई की ताकत को स्वीकार किया है। देश में डीपफेक के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार इसे लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा मान रही है।

गुरुवार को राज्यसभा में भाजपा के सदस्य सुशील कुमार मोदी ने ‘डीपफेक’ के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए इसे लोकतंत्र के लिए खतरा करार दिया। उन्होंने इस पर अंकुश लगाने के लिए सेबी जैसी नियामक संस्था बनाए जाने की जरूरत पर बल दिया। सुशील मोदी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी ‘डीपफेक’ के माध्यम से निशाना बनाया गया है।

सवाल है कि ऐसे कौन से तरीके हैं जिनसे एआई-हेरफेर डिजिटल मीडिया व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित करने के साथ-साथ सार्वजनिक चर्चा को भी प्रभावित कर सकता है? इसे विभिन्न समूहों द्वारा कैसे नियोजित किया जाता है और समाज ‘सूचना महामारी’ से कैसे उबर सकता है? डीपफेक तकनीक शक्तिशाली कंप्यूटर और शिक्षा का उपयोग करके वीडियो, छवियों, ऑडियो में हेरफेर करने की एक विधि है।

इसका उपयोग फर्जी खबरें उत्पन्न करने और अन्य अवैध कामों के बीच वित्तीय धोखाधड़ी करने के लिए किया जाता है। यह पहले से मौजूद वीडियो, चित्र या ऑडियो पर एक डिजिटल सम्मिश्रण द्वारा आवरित करता है, साइबर अपराधी इसके लिए एआई तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। डीपफेक तकनीक का उपयोग अब घोटालों और झांसे, सेलिब्रिटी पोर्नोग्राफी, चुनाव में हेर-फेर, सोशल इंजीनियरिंग, स्वचालित दुष्प्रचार हमले, पहचान की चोरी और वित्तीय धोखाधड़ी आदि जैसे नापाक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है।

पिछले दिनों सरकार ने टेक कंपनियों के साथ बैठक करके घोषित किया कि डीपफेक के खिलाफ नया नियम जल्द बनेगा। बैठक का एजेंडा उन नियमों और विनियमों का पता लगाना था, जो तर्कहीन डीपफेक को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक होंगे। कंपनियां भी रोकथाम, रिपोर्टिंग तंत्र को मजबूत करने और उपयोगकर्ता जागरुकता बढ़ाने जैसे क्षेत्रों में स्पष्ट कार्रवाई योग्य कार्य की आवश्यकता पर सहमत हुई।

ध्यान रहे यूरोपीय संघ के पास डीपफेक के माध्यम से दुष्प्रचार के प्रसार को रोकने के लिए एक अद्यतन आचार संहिता है। जबकि भारत में डीपफेक तकनीक के इस्तेमाल के खिलाफ कोई कानूनी नियम नहीं हैं। इस बारे में सोशल मीडिया के लिए स्व नियमन से काम नहीं चलेगा। इसके लिए इस तकनीक के दुरुपयोग के संबंध में विशिष्ट कानूनों की जरूरत है जिसमें कॉपीराइट उल्लंघन, मानहानि और साइबर अपराध आदि शामिल हों।

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