बरेली: महंगी हुई मिट्टी, नहीं बढ़ाए दीयों के दाम...फिर भी चेहरे पर मुस्कान

दिवाली की तैयारियों में जुटे कुम्हारों के यहां पिछले एक महीने से दिन रात चल रही चाक

बरेली: महंगी हुई मिट्टी, नहीं बढ़ाए दीयों के दाम...फिर भी चेहरे पर मुस्कान

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बरेली, अमृत विचार : दिवाली में मिट्टी के दीयों से रोशनी करने वाले कुम्हारों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। मिट्टी महंगी होने के बावजूद उन्होंने इस बार दीयों की कीमत नहीं बढ़ाई है। पिछले साल थोक में 100 दीयों का दाम 60 रुपये था, जो इस साल भी है।

कुम्हारों का कहना है कि पहले चीनी झालरों और मोमबत्ती के चलते दीयों की बिक्री कम थी। अब लोगों की सोच में परिवर्तन होने से मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ी है। दूसरी तरफ इलेक्ट्रिक चाक से अब काम आसानी से हो जाता है।

इसलिए दिवाली पर कारोबार के लिए आर्डर पूरा करने में जुटे हैं। सुर्खा बानखाना, बांस मंडी और पीलीभीत रोड पर मिट्टी के दीये बनाए जाते हैं। दीयों का आर्डर अधिक होने की वजह से परिवार के सभी सदस्य जुटे हुए हैं। करवाचौथ नजदीक है ऐसे में करवे भी बनाए जा रहे हैं।

मिट्टी की ट्राली के दाम भी पांच सौ रुपये तक बढ़े: पहले प्रति ट्राली मिट्टी की कीमत 1200 से 1300 रुपये थी जो बढ़कर अब 1800 रुपये तक हो गई है। वहीं, मिट्टी लाने वालों की मजदूरी 500 रुपये से 700 रुपये प्रति ट्रॉली हो गई है। महंगाई की मार का असर लकड़ी के बुरादे और उपले पर भी पड़ा है।

पहले जो बुरादा डेढ़ रुपये में मिलता था आज उसकी कीमत तीन रुपये है और तीन रुपये का उपला अब पांच रुपये में मिल रहा है। कुम्हारों ने इस बार तीन महीने पहले से ही दीये बनाना शुरू कर दिया था। प्रति एक कुम्हार का परिवार करीबन 60 से 70 हजार दीये दिवाली पर बनाता है।

ईको फ्रेंडली होते हैं दीये: बांस मंडी में पुस्तैनी काम करने वाले राजू प्रजापति बताते हैं कि चीनी झालरों और मोमबत्ती के चलते दीयों की बिक्री कम हो गई थी। पिछले कुछ समय से लोगों की सोच में परिवर्तन हुआ है। मिट्टी से निर्मित दीपक, मूर्तियां, बर्तन, खिलौने आदि ईको फ्रेंडली होते हैं। इसकी बनावट, रंगाई व पकाने में किसी तरह के केमिकल का प्रयोग नहीं होता है। दीये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इस कारण मिट्टी से निर्मित खिलौने, दीपक, सुराही, बर्तन आदि की मांग बढ़ी है।

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बोले कुम्हार---------- महंगाई तोड़ रही कमर: कुम्हार चंद्रसेन ने बताया कि इस कार्य में जितनी मेहनत है, उतने दाम उन्हें नहीं मिल पाते। अगर पूरा खर्च जोड़ें तो दिहाड़ी भी मुश्किल से बचती है। पहले इस कार्य में बचत ठीक हो जाती थी, क्योंकि उस वक्त मिट्टी व अन्य संसाधन महंगे नहीं थे, अब एक तो संसाधन महंगे हो गए और मिट्टी की ट्रॉली भी। लेकिन, मांग ठीक ठाक होने की वजह से दाम नहीं बढ़ाए हैं। लेकिन, आने वाले कुछ दिनों में दाम बढ़ने की उम्मीद बनी है।

इस बार नहीं बढ़ाए दाम: कालीबाड़ी के सीता राम ने बताया कि सरकार की ओर से बिजली से चलने वाला इलेक्ट्रानिक चाक दिया गया है, इससे उत्पादन बहुत बढ़ गया है। पहले चाक चलाते हाथ थक जाते थे।

इस काम में पूरा परिवार जुटता था, लेकिन अब आसानी से काम हो जाता है। पिछले साल मिट्टी की कीमत कम थी, इस बार दाम बढ़ गए हैं। बावजदू, पिछले साल की तरह की 55 से 60 रुपये में 100 दीये ग्राहकों को दिए जा रहे हैं।

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